हिंदी कहानी का वर्तमान

By: Apr 17th, 2017 12:05 am

अरुण भारती

कुछ दिन पहले मेरे एक मित्र ने मुझे हिमाचल प्रदेश के एक चर्चित कहानीकार की एक कहानी को पढ़ने का आग्रह किया। वह कहानी प्रदेश से बाहर छपने वाली एक पत्रिका में छपी थी और उस पत्रिका में नामी गिरामी तथा कथित आलोचकों द्वारा लगभग सभी कहानियों पर कहानियों से भी लंबी प्रतिक्रियाएं छपी हुई थीं। मित्र ने यह आग्रह इसलिए किया था कि उस कहानी का कथ्य एक ऐसी परंपरा से जुड़ा था, जो मेरे गांव से जुड़ी थी। मैंने वह पत्रिका खरीदी और कहानी पढ़नी शुरू की। पहले तो लगा कि अखबार की कोई खबर ली है। फिर लगा कहानी में सच को ढूंढना मुश्किल सा लग रहा है, क्योंकि उस घटना का मैं स्वयं हर साल का गवाह हूं। खैर पढ़ते-पढ़ते लगा कि अचानक ही मैं उत्तर प्रदेश या बिहार पहुंच गया हूं, जो घटनाएं उस कहानी में घट रही थीं, वह परिवेश या स्थिति कम से कम इस प्रदेश की तो कतई नहीं थी। आज भी नहीं हैं। दुख हुआ कि इस तरह की फर्जी स्थितियों और परिवेश की रचना कर हम कहानी के वर्तमान के साथ कितना बड़ा धोखा कर रहे हैं और उस पर आलोचना के नाम पर आलोचक का जो स्तुति गान हो रहा है, क्या वह कहानी के वर्तमान के लिए सही है? कहानी, कहानी न रहकर अगर एजेंडा बन जाए तो वह अपनी विश्वसनीयता खो देती है, लेकिन सोशल मीडिया को इस युग में प्रबंधन और पहुंच के जरिए जो माल बिक रहा है, वह कितना साहित्य है कितना कचरा? यह मंथन का विषय है। साहित्य की सभी विद्याएं समाज और समय सापेक्ष होती हैं। यह भी एक सत्य है कि आज के युवा साहित्यकार खासकर कथा को अपनी पैनी दृष्टि और बेबाक कलम से यथार्थ को बड़ी कुशलता के साथ कहानियों  में उकेर रहे हैं। साहित्य जीवन के बदलाव के नैरतर्य और सांस्कृतिक सामाजिक सरोकारों में आ रही तबदीली को अपने ढंग से देखने और लिपिबद्ध-कलमबद्ध करता है। यही इसकी विश्वसनीयता का सबसे बड़ा पैमाना है। हिंदी कहानी का वर्तमान इस बात से आश्वस्त तो करता है कि उसने पारंपरिक खांचों से बाहर निकल कर नई दुनिया, आधुनिकता और उत्तर आधुनिकता के नए आयामों को छुआ है। कहानी को लेकर अनेक आंदोलन छिड़े। इन आंदोलनों की आहटें प्रदेश में रचे जा रहे कथा साहित्य पर हमेशा से मौजूद रही हैं, जिसने पिछली सदी के छठे-सातवें दशक से लेकर आज के समय तक अनेक श्रेष्ठ कथाकार दिए हैं। अलबत्ता प्रबंधन और प्रचार के इस युग में साहित्यिक व्यभिचार भी बहुत बड़ा है। खासकर पुरस्कारों की राजनीति तथा राजनीतिक पहुंच ने कथा के वर्तमान को अवश्य प्रभावित किया है।

मूल नाम हेमानंद शर्मा तथा लेखकीय नाम अरुण भारती। उपर्युक्त टिप्पणी में जिस कहानी का प्रसंग है, उसका नाम है ‘पत्थर का खेल’… अंधविश्वासों पर प्रहार आज भी भारती ने यथार्थपरक मार्मिक कहानियां लिखी हैं।

अतिथि संपादक


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