हिमाचली पुरुषार्थ : पटकनी को पहचान बनाते जोनी चौधरी

By: Apr 26th, 2017 12:07 am

जोनी चौधरी ने अपने जीवन में पहलवानी की शुरुआत आठ साल की उम्र से की, जब वह तीसरी कक्षा में पढ़ते थे। उनके  पिता स्वयं पहलवान होने की सूरत में इस खेल की शुरुआत घर से ही हुई और उनके पिता के मार्गदर्शन से आज जोनी चौधरी इस मुकाम पर है। दसवीं की पढ़ाई यहां के कनैड़ स्कूल में करने के  बाद वह दिल्ली में छत्रशाल स्टेडियम में रहे, जहां पर उन्होंने पढ़ाई के साथ- साथ साढ़े चार साल तक पहलवानी के दांव-पेंच सीखे…

CEREER 26cr4-6अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर की खेलों में जीत का सेहरा अपना सिर बांध कर 11 मेडल प्रदेश समेत देश की झोली में डालने का श्रेय पहलवान जोनी चौधरी को ही जाता है। मल्ल युद्ध में उत्कृष्टता के साथ आगे बढ़ते हुए अपना नाम चमकाकर देश व प्रदेश का नाम रोशन करने वाला 28 साल के युवा पहलवान जोनी चौधरी को कुश्ती इतिहास में पहले परशुराम अवार्ड फिर भारत कुमार और अब युवा खेल पुरस्कार समारोह में मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने शान- ए- हिमाचल की शीर्षक से नवाजा गया है। सुंदरनगर उपमंडल के ग्राम पंचायत जुगाहण के जरल में माता सरला देवी और पिता राम सिंह चौधरी के घर जन्मे जोनी चौधरी ने अपने जीवन में पहलवानी की शुरुआत आठ साल की उम्र से की, जब वह तीसरी कक्षा में पढ़ते थे। उनके  पिता स्वयं पहलवान होने की सूरत में इस खेल की शुरुआत घर से ही हुई और उनके पिता के मार्गदर्शन से आज जोनी चौधरी इस मुकाम पर है। दसवीं की पढ़ाई यहां के कनैड़ स्कूल में करने के  बाद वह दिल्ली में छत्रशाल स्टेडियम में रहे, जहां पर उन्होंने पढ़ाई के साथ- साथ साढ़े चार साल तक पहलवानी के दांव-पेंच सीखे। पिता की सोच से वह आगे बढ़ते रहे  और उनके सफल जीवन की शुरुआत वर्ष 2002-03 से हुई। वर्ष 2005 में स्कूल नेशनल गेम्ज में जोनी ने पहला गोल्ड मेडल जीता, उस दौरान व जमा दो में दिल्ली में ही पढ़ते थे। सफलता की शुरूआत इस कद्र हुई कि जोनी ने आल इंडिया इंटर यूनिवर्सिटी में गोल्ड, आल इंडिया यूनिवर्सिटी में गोल्ड, जूनियर नेशनल में कांस्य, आल इंडिया चैंपियनशिप में गोल्ड, सीनियर नेशनल में गोल्ड, वर्ष 2011 में आयोजित नेशनल गेम्ज में  गोल्ड मेडल प्राप्त किए हैं। इसके अलावा इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा  ‘भारत कुमार’ पुरस्कार प्राप्त करने का श्रेय भी जोनी चौधरी के नाम वर्ष 2008 से 2012 तक लगातार रहा। वहीं वर्ष 2011 से 2013 तक शेरे हिंद का खिताब भी जोनी के नाम ही रहा। नेशनल और इंटरनेशनल  पटल पर शहीद भगत सिंह चैंपियनशीप में कांस्य और बाबा राम देव के  दंगल में भी विजेता रहे। जोनी चौधरी की काबिलीयत के आगे प्रदेश सरकार ने  उन्हें आबकारी एवं कराधान विभाग में इंस्पेक्टर रैंक की उपाधि देकर सम्मानित किया। वर्तमान में जोनी चौधरी हमीरपुर में सेवारत हैं। वहां बडसर स्थित सेवन स्टार स्कूल में 20 बच्चों को पहलवानी के गुरु फ्री में सिखा रहे हैं, जहां पर स्कूल प्रबंध्ान ने 11 लाख रुपए उपकरणों पर व्यय करके व्यवस्था की है। कुश्ती प्रेमियों और अपने जमाने में पहलवानी में नाम कमा चुके दर्जनों नामी पहलवानों में राष्ट्रीय स्तर के इस पहलवान की कड़ी मेहनत से परशुराम अवार्ड से भी प्रदेश सरकार द्वारा नवाजा गया है।

– जसवीर सिंह, सुंदरनगर

CEREERजब रू-ब-रू हुए…

कुश्ती में हिमाचल 50 साल पीछे…

क्या पहलवान बाकी खिलाडिय़ों से भिन्न होता है और कैसे?

जी हां, रेस्लिंग एक ऐसी गेम है, जिसमें आपकी सिर से लेकर पांव तक की एक्टिविटी होती है और हमें पूरी बॉडी को उस तरीके से तैयार करना पड़ता है। रेस्लिंग को दूसरे खिलाडियों से अलग उनका खान पान और वर्कआउट स्टाइल बनाता है ।

हिमाचल में छिंजों के आयोजन में कुश्तियां कितनी गंभीरता से हो रही हैं,  इस जोश में खेल है कहां?

हिमाचल में छिंजें तो बहुत गंभीरता से हो रही हैं और इन छिंजों का फायदा सिर्फ  पैसों तक सीमित है क्योंकि छिंजों से गवर्नमेंट कोई नौकरी नहीं देती, नौकरी के लिए आपको मैट पर उतरना ही पड़ेगा।

आपकी पसंद के अखाड़े

मेरी पसंद का अखाड़ा हमारा खुद का अखाड़ा है, जो हमने सेवन स्टार इंटरनेशनल स्कूल में  स्टार्ट किया है।

हिमाचल की कुश्तियों में आपकी पसंदीदा जगह

जिला हमीरपुर में अच्छी कुश्तियां होती हं और अच्छे इनाम बांटे जाते हैं।

हिमाचल में पहलवानों के लिए कोई स्थान है भी या यूं ही मेलों को बाहरी पहलवान लूटते रहेंग?

फिलहाल तो हिमाचल के पहलवानों का कुश्ती में कोई स्थान नहीं है क्योंकि हिमाचल के लोगों में रेस्लिंग देखने का शौक है, लेकिन अपने बच्चों को रेस्लिंग करवाने का नही।

भारत में कुश्तियों के लिए सबसे अच्छे प्रयास किस राज्य में हुए, इस दृष्टि से हिमाचल को कहां देखते हैं?

भारत में कुश्तियों के लिए सबसे ज्यादा प्रयास हरियाणा और पंजाब स्टेट ने किए हैं क्योंकि वहां पर हर दूसरे गांव में रेस्लिंग अकादमी है। मेरे ख्याल से हिमाचल इन राज्यों से 50 साल पीछे चल रहा है।

सुना है पहलवान की डाइट का कोई मुकाबला नहीं, इस हिसाब से आपका डाइट चार्ट?

एक रेस्लर को प्रोटीन फाइबर मिनरल एंड कैल्शियम की भरपूर आवश्यकता होती है इसलिए मेरी डाइट में भी वो सब कुछ शामिल है।

ऐसी कौन सी शर्तें  हैं जो पहलवान को हर सूरत निभानी पड़ती हैं,

ब्रह्मचर्य का पालन, कंपलीट रेस्ट और डाइट का विशेष ध्यान रखना पड़ता है।

कोई एक कुश्ती जिसने आपको सर्वश्रेष्ठ बना दिया?

वैसे तो सभी कुश्तियां सर्वश्रेष्ठ रही हं,ै लेकिन नेशनल गेम्स के गोल्ड मेडल ने मुझे अच्छे मुकाम पर पहुंचाया।

जोनी चौधरी को पहलवान किसने बनाया और आपमें ऐसा क्या है, जिस पर गर्व महसूस करते हैं,

मुझे पहलवान बनाने में मेरे पिता जी का बहुत बड़ा हाथ है और मेरे गुरु जगदीश जी ने भी मुझे पूरा सहयोग दिया है।

हिमाचल के किन पहलवानों में भविष्य देखते हैं?

कुछ नए लड़के हैं जो कोशिश कर रहे है। मैं कामना करता हूं कि वे हिमाचल के लिए अच्छे मेडल भविष्य में लाएं।

खेल विभाग ने कुश्तियों को लेकर कुछ खास किया है?

खेल विभाग ने रेस्लिंग पर कुछ खास ध्यान नही दिया हैं, लेकिन मैं आशा करता हूं कि हिमाचल की रेस्लिंग के अच्छे दिन जरूर आएंगे।

हिमाचल को कुश्ती में आगे निकलना हो, तो क्या क्या करना होगा?

हिमाचल की कुश्ती को आगे लाने के लिए हर जिला में अकादमी शुरू की जानी चाहिए और उसमें एनआईएस क्वालिफाइड कोच को रखा जाना चाहिए, तभी हिमाचल की रेस्लिंग का  भविष्य उज्ज्वल हो सकता है। मैं चाहता हूं कि हिमाचल सरकार भी इसमें सहयोग देद्व ताकि हिमाचल की कुश्ती में छिपी प्रतिभा सामने आए और प्रदेश का नाम रोशन हो।

समाज की भूमिका में क्या बच्चों को खेलों के प्रति प्रोत्साहन मिल रहा है ताकि फिटनेस का स्तर सही रहे?

हिमाचल का जो समाज है वह खेल के प्रति जागरूक नहीं है। पहले हमें पूरे समाज को जागरूक करना पड़ेगा। हमारे युवा तभी स्पोर्ट्स कर सकते हैं, जब उनके माता- पिता स्पोर्ट्स के बारे में कुछ जानते हों। अगर हमारे माता- पिता को  स्पोर्ट्स का ज्ञान नहीं होता, तो हम सारे भाई आज इस मुकाम पर नहीं होते।

 


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