हिमाचल की हिंदी कहानी के पद चिह्न

By: Apr 17th, 2017 12:05 am

डा. हेमराज कौशिक

चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,यशपाल,योगेश्वर गुलेरी,कृष्न कुमार नूतन के बाद सुशील कुमार अवस्थी का नाम आता है, जिनका राखी शीर्षक संग्रह सन् 1957 में प्रकाशित हुआ। अवस्थी की कहानियां सपाट शैली की रचनांए हैं। इसके बाद सत्येन शर्मा का ‘संपादित  संग्रह ‘बर्फ  के हीरे’ उल्लेखनीय है।ं इस संग्रह में प्रकाशित होने वाले कहानीकारों में से रत्न सिंह हिमेश, और खेमराज गुप्त मात्र  दो कहानीकार ही ंबाद तक सक्रिय रहे। सन् 1963 में किशोरी लाल वैद्य का कहानी संग्रह ‘सफेद प्रतिभा काले साये’ प्रकाशित हुआ। प्रस्तुत संग्रह में उनकी अधिकांश कहानियां मध्यवर्गीय जीवन के अभाव और आकांक्षाओं को चित्रित करती हैं। सन् 1966 में पहली महिला कहानीकार सन्तोष शैलजा का कहानी संग्रह ‘जौहर के अक्षर’ प्रकाश में आया। इस कहानी संग्रह की कहानियों का प्रतिपाद्य वैदिक, पौराणिक और ऐतिहासिक चरित्रों और घटनाओं से संबंध है। सारिका के नवंबर 1968 के अंक में जब गद्दी जनजीवन पर सुशीलकुमार फुल्ल की कहानी ‘बढ़ता हुआ पानी‘  प्रकाशित हुई, तो हिंदी जगत ने पहली बार हिमाचल की उपस्थिति को राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार किया । आठवें दशक के प्रारंभ में सन् 1972 में किशोरी लाल वैद्य द्वारा संपादित कहानी-संकलन ‘एक कथा परिवेश’ आया ।  पर्वतीय लोगों के जीवन की नियति प्रस्तुत संकलन की कहानियों में व्यंजित की गई है। ‘एक कथा परिवेश’ हिमाचल की हिंदी कहानी के इतिहास के प्रांरभिक प्रयासों में महत्त्वपूर्ण कदम कहा जा सकता है। ‘एक कथा परिवेश’ के बाद सन् 1973 में गंगाराम राजी का स्वतंत्र कहानी संग्रह ‘युगों पुराना संगीत’ शीर्षक से प्रकाशित हुआ। गंगाराम राजी के बाद सुशील कुमार ‘फुल्ल’ हिमाचल के हिंदी कहानी साहित्य में ‘सहज कहानी’ के प्रवर्तक के रूप में सामने आते हैं। हिंदी कहानी को नई कहानी, अकहानी, सचेतन कहानी, समांतर कहानी, सक्रिय कहानी आदि विभिन्न कहानी आंदोलनों के कारण नए-नए नामों से विभूषित किया गया है। फुल्ल ने इन कहानी आन्दोलनों की सार्थकता निरर्थकता को देखते हुए ‘सहज कहानी’ का प्रतिपादन अन्य कहानी आंदोलनों की तरह किया। अपने इस लक्ष्य की सिद्धि के लिए उन्होंने सन् 1976 में ‘सहज कहानियां’ शीर्षक से हिमाचल प्रदेश के कुछ कहानीकारों की कहानियों का सम्पादन किया। इस संग्रह में कांगड़ा लोक साहित्य परिषद के सत्रह सदस्यों की कहानियां संकलित हैं।  इसके बाद सन् 1977 में शांता कुमार और सन्तोष शैलजा का सांझा कहानी-संग्रह ‘पहाड़ बेगाने नहीं होंगे’ वीणा प्रकाशन, पालमपुर से प्रकाशित हुआ, जो 1978 में ‘ज्योतिर्मयी’ शीर्षक से राजपाल एंड संज से दूसरे संस्करण के रूप में सामने आया।  सन् 1978 में सुशील कुमार ‘फुल्ल’ की दूसरी संपादित कहानियों की पुस्तक ‘पगडंडिया’ शीर्षक से आई। सन् 1978 में ही कहानीकार केशव का प्रथम कहानी संग्रह ‘फासला’ शीर्षक से सामने आया। उनकी कहानियों में पहाड़ी जीवन का अकेलापन और उसकी पीड़ा मूर्तिमान होकर अभिव्यंजित हुई है। ‘फासला’ शीर्षक कहानी इस तरह की कहानियों में प्रमुख है। सन् 1978 में सुशील कुमार ने ‘पहचान’ शीर्षक से तीसरे कहानी संकलन का संपादन किया, जिसमें हिमाचल प्रदेश के सोलह कहानीकारों की कहानियां इस क्रम में प्रस्तुत की गई हैं।

— डा हेमराज कौशिक आलोचना में जाना पहचाना नाम है ।  अतिथि संपादक


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