हिमाचल में हिंदी कहानी की प्रकृति

By: Apr 10th, 2017 12:05 am

त्रिलोक नाथ

कहानी के क्षेत्र में हिमाचल की समृद्ध देन है। कहानी लेखन के इतिहास की जांच परख करते समय दिवंगत और वरिष्ठ कहानीकारों के योगदान का वर्णन अधिकतर होता रहता है। मेरे लिए वरिष्ठ वे हैं जो सत्तर वर्ष पार कर चुके हैं। उनमें पद्म गुप्त अभिताभ और सुंदर लोहिया के संकलन उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। पद्म गुप्त अमिताभ मूलतः कवि हैं, उनकी कहानी भाषायी आधार पर कमजोर हो सकती है, लेकिन अंत तक पहुंचते अपना संपूर्ण प्रभाव दे जाती है। ‘हिल स्टेशन पर एक शाम’ ऐसी ही कहानी है। सुंदर लोहिया जनवादी आंदोलनों से जुड़े रहे हैं। वह कुल्लूत जनपद की देव आस्था पर गहरी चोट करते हैं। उनकी चर्चित कहानी मंगलाचारी बजंतरियों के शोषण की कहानी है। इस कहानी के पश्चात बजंतरियों की स्थिति पर अन्य लेखकों की कई कहानियां आईं। वरिष्ठ कहानीकार प्रायः अपनी कलम कहानी से अन्यत्र लेख, कविता या संकलन आदि निकालने में भी आजमा रहे हैं। डा. सुशील कुमार फुल्ल साहित्यिक आलोचना और साहित्यिक इतिहास लेखन पर अधिक केंद्रित हैं। वह हिमाचल के हिंदी साहित्य लेखन के आलोचनात्मक इतिहास के एकमात्र स्वीकृत विद्वान माने जाते हैं। वह सहज कहानी आंदोलन के सूत्रधार रहे और कहानी में कलात्मकता और संलिष्टा के पक्षधर हैं। इनकी कहानियों के तेवर अन्य कहानीकारों से बिलकुल भिन्न हैं। पाठक कहते हैं कि इनकी कहानियां एकदम सिर के ऊपर से गुजर जाती हैं। मींच्छव, मेंमना और मुक्ति द्वार कहानियां कलात्मकता के सुंदर उदाहरण हैं। सुदर्शन वशिष्ठ कोमल शब्दावली के मालिक हैं। ‘घर बोला’ और ‘गेट संस्कृति’ ग्राम्य जीवन की विद्रूप्ताओं को उद्घाटित करती हैं। साहित्य अकादमी से उनके द्वारा संपादित ‘पहाड़ गाथा’ चर्चित कहानी संग्रह है। अरुण भारती की ‘भेडि़ये’ कहानी पर्याप्त समय तक पाठकों को झकझोरती रही है। इनकी और कहानियां भी ध्यान आकर्षित करती रही हैं। एसआर हरनोट की ‘जीनकाठी’ कहानी निरमंड में भूंडा यज्ञ में निभाई जाने वाली जानलेवा प्रथा पर आधारित है, जो नर-नारायण और छूत-अछूत के मध्य अदृश्य अंतर को प्रकट करती है। गंगा राम राजी और बद्री सिंह भाटिया कहानी लेखन में निरंतर सक्रिय हैं। डा. गंगा राम राजी के दस से अधिक संग्रह आ चुके हैं। उनकी कहानियां सरलता से बहकर अंत में विस्फोट करती हैं। उनमें व्यंग्य, गांव-कस्बों के गंधमय चित्र, संघर्ष, घुटन, टूटन, शाश्वत प्रेम की अभिव्यक्ति, यथार्थ की पहचान और सुनहरे भविष्य के संकेत मिलते हैं। बद्री सिंह भटिया जमीन से जुड़े कहानीकार हैं। ‘बची हुई आदमियत के नाम’ और ‘लक्कड़बघा’ हिमाचल में आए सीमेंट उद्योग के कारण उत्पन्न सामाजिक समस्याओं की कहानियां हैं। किशोरी लाल वैद्य के ‘एक कथा परिवेश’ संकलन से निकल कर कहानी हिमाचल में जल विद्युत परियोजनाओं के परिणामस्वरूप विस्थापन, टिटिहरियां-त्रिलोक मेहरा सीमेंट उद्योग के कारण विस्थापन-पर्यावरण असंतुलन, धर्म के नाम पर अवैध कब्जे अधर्मी-राकेश कुमार पत्थरिया प्रवासी मजदूर खिचड़ी विनोद ध्रब्याली जंगली जानवर के आतंक अंतिम राय का सच-त्रिलोक मेहरा और विश्वविद्यालय का वातावरण मिलन-कृष्ण चंद्र महादेविया नवीनतम विषय वस्तु हिंदी कहानी के हैं। अभी दूरस्थ क्षेत्र जैसे पांगी, लाहुल-स्पीति और बड़ा भंगाल में बसे लोगों का जीवन कहानियों में आना शेष है। प्रदेश में आतंकवाद की छुटपुट घटनाओं के कारणों पर एक-दो लेखकों का ध्यान गया है। त्रिलोक मेहरा ने ग्राम्य क्षेत्र की उपेक्षित समस्याओं एवं साधारण पात्रों पर यादगार कहानियां लिखी हैं।

अतिथि संपादक

त्रिलोक मेहरा, गांव मेहड़ा, डाकघर भवारना, पिन 176083.


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