अपनी सफलता और असफलता के लिए हम खुद जिम्मेदार

By: May 10th, 2017 12:05 am

अपने लिए आप खुद जिम्मेदार हैं। सफल हैं या असफल, खुश हैं या नाखुश। जो करना है, आपको ही करना है। अपने हालात के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराने का कोई मतलब नहीं होता। हर कोई अपने सुख-दुख, अपने ढंग से जी रहा है…

जो स्नेह, अपनापन एवं सौहार्द रखने वाले असल में बड़े होते हैं, जीवन को सफल बना रहे होते हैं।। ऐसे गुणों के कारण ही वे महान कहे जाते हैं। अशांति फैलाने वाले, तेरा-मेरा करने वाले एवं स्वार्थी तो छोटे हैं और छोटे ही रहेंगे। ईर्ष्या और द्वेष रखने से हम अपने आप पर बोझ बनाए रखते हैं तथा अप्रसन्नता और दुख को बुलावा देते हैं। जान सलडेस ने जीवन का सत्य उजागर करते हुए कहा है कि निराशावादी हरदम बुराई ही देखता है। आशावादी की नजर अच्छी चीजों पर रहती है। निराशावादी तो अपनी फि क्र में ही कमजोर पड़ जाता है। आशावादी अपनी खुशी में परेशानी दूर कर लेता है। अकसर हम अपने अहंकार के कारण दुःख और अशांति को आमंत्रित करते है। ‘हम’ शब्द हमें आपस में जोड़ता है जबकि ‘मैं’ दूरियां पैदा करता है। इसलिए ‘मैं’ की जगह ज्यादा से ज्यादा ‘हम’ शब्द का इस्तेमाल करें। आदर्श स्थिति यह है कि दोनों पक्षों की जीत हो। इसका तात्पर्य है कि दोनों पक्षों के लिए कुछ अर्थपूर्ण चीजें सामने आएं। छोटी-छोटी चीजें, जैसे कि ध्यानपूर्वक सुनने, सराहना करने और आभार जताने से ‘हम’ की भावना पुष्ट होती है। डायन सॉयर, जूलिया रॉबर्ट्स, अब्राहम लिंकन, एमा वॉटसन, क्रिस्टीना ऑगिलेरा और बिल गेट्स जैसी शख्सियतें ‘हम’ होने की भावना को लेकर जिए और इसी से वे सफल भी बने और लोकप्रिय भी हैं। हमारी दुनिया में हर कोई मेरे लिए टीचर जैसा है, इसी सोच से हम करिश्माई शख्सियत बन सकते हैं। महान बनने और जीवन को सार्थक बनाने के लिए जरूरी है कि हम दूसरों को महत्त्व दे। अपनी सोच में खुलापन लाएं। लोगों के साथ वैसा ही व्यवहार करें जैसा कि आप अपने लिए दूसरों से अपेक्षा करते हैं। जब आप लोगों की सराहना करते हैं, तो वे भी आपको पसंद करने लगते हैं। अगर लोग आपके साथ अच्छा व्यवहार नहीं कर रहे और उनकी सोच भी नकारात्मक है, लेकिन आपका रवैया सकारात्मक रहता है, तो बहुत मुमकिन है कि धीरे-धीरे उनका व्यवहार आपके लिए सौम्य हो जाए। अगर आप चाहते हैं कि दूसरे आपका हौसला बढ़ाएं तो आप उनका हौसला बढ़ाने से शुरुआत करें। इस तरह की सकारात्मकता से आप दूसरों के करीब जा सकते हैं। लेकिन ऐसा संभव होता नहीं है, क्योंकि हम हर अच्छाई की उम्मीद दूसरों से करते हैं। सभी यही चाहते हैं कि कोई भगतसिंह पड़ोसी के घर ही पैदा हो। तभी तो स्वेट मार्डेन ने कहा है कि निराशावादी वह है जो हर किसी को अपनी ही तरह से मलिन समझता है और इसीलिए उनसे घृणा करता है। अपने लिए आप खुद जिम्मेदार हैं। सफल हैं या असफल, खुश हैं या नाखुश। जो करना है, आपको ही करना है। अपने हालात के लिए दूसरों को जिम्मेदार ठहराने का कोई मतलब नहीं होता। हर कोई अपने सुख-दुख, अपने ढंग से जी रहा है। ओशो के अनुसार, ‘यहां कोई भी आपका सपना पूरा करने के लिए नहीं है। हर कोई अपनी तकदीर बनाने में लगा है।

– ललित गर्ग, पटपड़गंज, नई दिल्ली

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