आतंक के ‘दलाल’ अलगाववादी

By: May 23rd, 2017 12:02 am

साधुवाद, शाबाश, बधाई, भई! कमाल कर दिया….‘आज तक’ के स्टिंग ‘आपरेशन हुर्रियत’ पर ये शब्द अचानक ही बोलने को मन करता है। उस स्टिंग ने सैयद अली शाह गिलानी,यासीन मलिक और उनके ‘पिल्लों’ को बेनकाब कर दिया है। यदि राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने अलगाववादी नेताओं और पाकिस्तान से मिलने वाली फंडिंग पर जांच शुरू की है, तो यह स्टिंग आपरेशन एक मजबूत साक्ष्य साबित होगा। गिलानी के खास सलाहकार, एक ताकतवर नेता नईम खान ने खुद कबूल किया है कि पाकिस्तान और उसके पाले-पोसे हाफिज सईद सरीखे आतंकियों की ओर से लगातार पैसा आता रहा है। गिलानी को ही 10-20 करोड़ रुपए नहीं, उससे कहीं ज्यादा पैसा मिलता है। अलगाववादी नेताओं को औसतन 20-20 करोड़ रुपए पहुंचाए जाते हैं। एक अंदाजा है कि बीते 6 माह के दौरान करीब 70 करोड़ रुपए अलगाववादी नेताओं को मुहैया कराए गए हैं। यह पैसा हवाला के जरिए सऊदी अरब, कतर आदि देशों से दिल्ली में आता है और फिर श्रीनगर में हुर्रियत नेताओं में बांटा जाता है। ‘आज तक’ के साहसी स्टिंग ने देश के गद्दारों को चौराहों पर नंगा कर दिया है, नतीजतन गिलानी को अपने खास ‘चंपू’ नईम खान और उसके ‘नेशनल फं्रट’ को पार्टी से सस्पेंड करना पड़ा है। ऐसा नहीं है कि हिंदोस्तान की सरकारी एजेंसियों को ‘आतंक की इस दलाली’ की जानकारी नहीं थी, लिहाजा एक सवाल सहज है कि इससे पहले अलगाववादी नेताओं को तिहाड़ में क्यों नहीं ठूंसा गया? उनकी सियासत और हिंदोस्तान विरोधी हरकतों पर तालाबंदी क्यों नहीं की गई? आसान और सीधा-सपाट जवाब देश की जानकारी में होना चाहिए कि 1993 में हुर्रियत कान्फ्रेंस के गठन के बाद से ही विभिन्न भारत सरकारें, पाकिस्तान के खिलाफ मुकाबलों के मद्देनजर, अलगाववादी नेताओं को फंडिंग करती रही हैं। इनमें कांग्रेस सरकारों का ज्यादा योगदान रहा है, क्योंकि उन्हें मुस्लिम वोट बैंक की चिंता सताती रही है। कश्मीर में यह सिलसिला आज भी जारी है। हिंदोस्तान से फिरौती मिलती है और पाकिस्तान सुपारी देता है। दोनों हाथों लड्डू…! इस तरह कश्मीर में मौजूदा अलगाववादी नेता ‘हराम की रोटियां’ तोड़ते रहे हैं और यह बेहिसाब पैसा कश्मीर घाटी की अर्थव्यवस्था बन गया है। हुर्रियत के सस्पेंड नेता नईम खान का यह भी कबूलनामा है-कश्मीर में तोड़फोड़ करानी है, अराजकता फैलानी है, स्कूल-कालेज-पुलिस स्टेशन, पंचायतें और रेलवे स्टेशन बगैरह को जलाना है। सिर्फ अस्पतालों को छोड़ना है। ऐसी करतूतों के लिए कुछ तो पैसा होना ही चाहिए। वह पाकिस्तान और आतंकी गुट मुहैया कराते रहे हैं। नईम खान का 3500 स्कूल जलाने का मकसद चौंकाता और भयभीत भी करता है। वह अलगाववादी यह भी कहता है कि अभी तो 35 स्कूल ही जलाए हैं, अल्लाह खैर करे, हमें तो 3500 का आंकड़ा पार करना है। पाकिस्तान की इस नापाक सुपारी से ही ‘पत्थरबाज’ पैदा किए गए हैं, जो सेना और सुरक्षा बलों समेत विधायकों को भी निशाना बना रहे हैं। अब गिलानी के सहायक नेताओं-नईम खान, गाजी जावेद बाबा, फारूक अहमद डार बगैरह के खिलाफ केस भी दर्ज कर लिए गए हैं। कुछ अलगाववादी नेताओं से एनआईए ने पूछताछ भी की है। जैसा कि ऐसी जांचों में हुआ करता है, एजेंसियां एक लंबा वक्त खर्च करती रही हैं, लेकिन एनआईए को ‘ऊपर’ से आदेश हैं कि यथाशीघ्र जांच पूरी की जाए और ‘आतंक के दलालों’ को तिहाड़ के अंदर फेंका जाए। इस संदर्भ में गिलानी के अलावा, शेष हुर्रियत नेता भी ‘काले चोर’ हैं। उन सभी के खिलाफ ‘देशद्रोह’ के केस चलाए जाने चाहिए। गिलानी से पूछा जाना चाहिए कि पाकिस्तान जाकर आतंकी सरगना हाफिज सईद के साथ मुलाकातों के सबब क्या हैं? अलगाववादी नेताओं को आगाह कर देना चाहिए कि ‘हिंदोस्तान से गद्दारी और पाकिस्तान से यारी ‘ या ‘भारत में रहना और पाक-पाक जपना’ बगैरह हरकतें नहीं चलेंगी। अब ये स्वीकार्य नहीं हैं। हुर्रियत 26 विभिन्न राजनीतिक, सामाजिक,धार्मिक संगठनों का एक साझा मंच है। कश्मीर की तकलीफों और तनावों का एक बुनियादी कारण हुर्रियत ही है। वह कश्मीर में चुनावों का बहिष्कार करता रहा है और पाकिस्तान के साथ गलबहियां डालता रहा है। हुर्रियत के मायने ही ‘आजादी’ से हैं,जो पाकिस्तान के दुष्प्रचार का एक जुमला है। हुर्रियत को कमजोर किया गया, उसके बड़े नेताओं को जेल की सलाखों के पीछे धकेला गया, तो कश्मीर की आधी समस्या का समाधान तय है। हिंदोस्तान की सरकार सख्त कार्रवाई का मन बना ले, उसपर जिसको जो बोलना है, उन्हें बकने दें। फिलहाल कश्मीर को बचाना जरूरी है।

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