‘आप’ की उल्टी गिनती
ललित गर्ग
लेखक, स्वतंत्र पत्रकार हैं
आप एवं केजरीवाल के पतन का मुख्य कारण नकारात्मक, अवसरवादी, स्वार्थी और झूठ पर आधारित राजनीति है। इसका एक बड़ा कारण अपने स्वार्थ एवं सत्ता की भूख भी है। राष्ट्र की मजबूती के लिए संकल्पित होने का ढोंग करने वाले जब देश को बांटने वाली विचारधारा से जुड़ जाते हैं, तो उनका पतन निश्चित है। अन्ना आंदोलन की पैदाइश केजरीवाल की अधिनायकवादी मानसिकता ने देश की राजधानी को तो धुंधलाया ही, साथ ही दिल्ली के प्रशासनिक-सामाजिक क्षेत्र में भी अराजकता ही फैलाई है…
आजकल उल्टी गिनती एक ‘सूचक’ बन गई है, किसी महत्त्वपूर्ण काम की शुरुआत के लिए या किसी बड़े बदलाव के लिए। हमारे यहां भी कई उल्टी गिनतियां चल रही हैं। एक महत्त्वपूर्ण उल्टी गिनती पर देश की निगाहें लगी हैं। जुमा-जुमा चार साल पहले पैदा हुई आम आदमी पार्टी (आप) की इस उल्टी गिनती की आग में दिल्ली नगर निगम चुनाव के नतीजे ने तेल का काम किया है। उसके बाद कुमार विश्वास को लेकर एक बड़ा संकट खड़ा हो गया था। उनकी नाराजगियां तो ऐसी थीं कि पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल को आईना दिखा गईं। निगम चुनाव के नतीजे एक तरह से मीडिया संस्थानों द्वारा कराए गए सर्वेक्षणों का प्रतिबिंब ही थे। उसके बावजूद केजरीवाल ने राजनीतिक अपरिपक्वता और अहंकार का परिचय देकर धमकाते हुए कहा कि चुनाव परिणाम उनके पक्ष में नहीं आए, तो वह ईंट से ईंट बजा देंगे। अब लगता है उनकी ईंट से ईंट बज रही है। यहां से भी आप की उल्टी गिनती थमती हुई प्रतीत नहीं हो रही है। अब दिल्ली के पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं। कपिल ने पार्टी फंड के नाम पर कालेधन को सफेद करने का आरोप लगाया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि अरविंद केजरीवाल ने पार्टी फंड की जानकारी छिपाई, चुनाव आयोग को कम चंदा बताया और वेबसाइट पर भी चंदे से कम रकम दिखाई गई। साथ ही केजरीवाल के करीबियों ने फर्जी कंपनियां बनाकर आम आदमी पार्टी को चंदा दिया, पार्टी ने एक्सिस बैंक की मदद से हवाला से पैसे लिए और कालेधन को सफेद किया गया। यह सब तो होना ही था।
आप एवं केजरीवाल के पतन का मुख्य कारण नकारात्मक, अवसरवादी, स्वार्थी और झूठ पर आधारित राजनीति है। इसका एक बड़ा कारण अपने स्वार्थ एवं सत्ता की भूख भी है। राष्ट्र की मजबूती के लिए संकल्पित होने का ढोंग करने वाले जब देश को बांटने वाली विचारधारा से जुड़ जाते हैं, तो उनका पतन निश्चित है। अन्ना आंदोलन की पैदाइश केजरीवाल की अधिनायकवादी मानसिकता और अहंकार ने देश की राजधानी को तो धुंधलाया ही, साथ ही दिल्ली के प्रशासनिक, राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में भी केवल अराजकता ही फैलाई है। जनता से सादगी और आदर्शवादी राजनीति का वादा करके प्रचंड बहुमत से दिल्ली में शासक बनने वाले केजरीवाल ने न केवल लोकतांत्रिक मूल्यों का उपहास किया, बल्कि राजनीति को ही एक मखौल बना दिया। सरकारी सुविधाएं नहीं भोगने एवं ईमानदार-पारदर्शी सरकार चलाने का दावा करने वाले आप नेताओं ने क्या कुछ गलत नहीं किया? पहले गाड़ी और बंगले लिए, फिर संवैधानिक प्रक्रियाओं और नियमों को ताक पर रखकर इक्कीस विधायकों को लाभ का पद दिया। पार्टी के कार्यक्रम में जनता के पैसों से 12 हजार रुपए की शाही थाली परोसने का आरोप लगा।
यही नहीं, आप के कई विधायक किसी-न-किसी गंभीर आपराधिक मामले में आरोपित होते गए। इनमें से कुछ को गिरफ्तार भी किया जा चुका है। ईमानदारी, नैतिकता एवं पारदर्शिता का चोला ओढ़े आप की सच्चाई धीरे-धीरे जनता के समक्ष बेनकाब होती गई। दो वर्ष के कार्यकाल में दिल्ली में एंबुलेंस घोटाला, आटो परमिट घोटाला, टैंकर घोटाला, प्रीमियम बस सर्विस घोटाला और वीआईपी नंबर प्लेट घोटाला न जाने कितने घोटाले एवं अपराध सामने आते गए। यही कारण है कि दिल्ली विधानसभा की 70 में से 67 सीटों पर ऐतिहासिक जीत हासिल करने वाली आम आदमी पार्टी को नगर निकाय चुनावें में करारी हार झेलनी पड़ी। केजरीवाल को अभी इससे भी अधिक शर्मनाक हार एवं बदनामी को झेलना होगा, क्योंकि उन्होंने अहंकार एवं सत्ता मद में अपने गुरु तक का अपमान किया है। समाजसेवी अन्ना हजारे का सारा जीवन राजनीतिक शुचिता एवं प्रशासनिक ईमानदारी के लिए समर्पित रहा, उनके नेतृत्व में चला भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के शासनकाल में हुए 2-जी, राष्ट्रमंडल खेल, कोयला घोटाले जैसे करोड़ों रुपए के घोटालों एवं भ्रष्टाचार के खिलाफ था। सत्य कब जीतेगा और सत्ता कब जीतेगी, यह कोई नहीं जान पाया, पर यह निश्चित है कि असत्य कभी नहीं जीतता। अन्ना के मंच से बड़े-बडे़ दावे करने वाले केजरीवाल और उनकी पार्टी की इन मूल्यों के प्रति कोई आस्था नहीं है।
नगर निगम में चुनाव में मिली करारी शिकस्त, लगातार हार और ईवीएम पर ब्लेम की राजनीति करने के बाद अब केजरीवाल अपने पार्टी कार्यकर्ताओं या आमजन के सामने किस मुंह से आएं? हो सकता है कि ईवीएम के साथ कुछ समस्याएं हों, परंतु आप की दिल्ली, पंजाब और गोवा में हार के लिए इन मशीनों को दोषी ठहराना गलत होगा। सत्तारूढ़ भाजपा ने ईवीएम मशीन से छेड़छाड़ की है, तो फिर पंजाब में उसको सत्ता से क्यों बाहर होना पड़ा? पार्टी ने खुद ही अपनी यह दुर्गति की है और इसके लिए पूरी तरह के केजरीवाल ही जिम्मेदार हैं। भारतीय राजनीति के वह एक ऐसे काले अध्याय के रूप में याद किए जाएंगे, जिन्होंने सिद्धांतों के बजाय अवसरवादिता को प्राथमिकता दी। प्रधानमंत्री की कुर्सी के लालच में वह अच्छे मुख्यमंत्री एवं राजनेता नहीं बन पाए। चले थे बाघ बनने, लेकिन बघेला बन कर रह गए। ऐसे में मैथिलीशरण गुप्त की प्रसिद्ध कविता की पंक्ति याद आती है ‘हम क्या थे, क्या हो गए, क्या होंगे अभी…’
इतिहास सदैव हिम्मत और कुर्बानी से बनता है। बघेले तो बघेले ही रहते हैं, वे बाघ नहीं बन सकते। इसका प्रमाण है कि मुख्यमंत्री बनने के तत्काल बाद उन्होंने लुटियन जोन में दिल्ली के लोगों से मिलने के लिए बंगला मांगा, जिसमें एक दर्जन से अधिक एसी लगे थे। बाद में उनके घर के बाहर धरने-प्रदर्शन होने लगे, तो मुख्यमंत्री ने उन पर प्रतिबंध लगा दिया। इस तरह से धरने-प्रदर्शन से राजनीति की शुरुआत करने वाले केजरीवाल सत्ता में आते ही धरने के खिलाफ हो गए। हर मोर्चे पर विकास की जगह विनाश की राजनीति करने वाले केजरीवाल का राजनीतिक जीवन अब अंधकारमय है। स्वयं एक जिम्मेदार संवैधानिक पद पर होते हुए भी संविधान के विभिन्न स्तंभों से निरंतर टकराने की उनकी प्रवृत्ति एवं मानसिकता उनके और उनकी पार्टी के पतन का कारण बनी है। जनता इतनी भी मूर्ख नहीं है कि दिल्ली को दिन-ब-दिन तबाही एवं बर्बादी को ओर जाते हुए देखती रहे और उसके शासक के बड़बोले बयानों में झूठ और फरेब को सुनती रहे। ‘मुफ्त’ और ‘सस्ते’ के लोकलुभावन वादों की सचाई लंबे समय तक नहीं छिपी रह सकती। असल में केजरीवाल की विचारधाराविहीन राजनीति, उनकी महत्त्वाकांक्षाएं, अराजक कार्यशैली और नकारात्मक एवं झूठ की राजनीति के कारण आप को अल्पकाल में ही इतिहास के पन्नों में सिमटने को तैयार होना पड़ रहा है।
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