औदुंबरों के वंशज माने जाते हैं हिमाचल के गद्दी

By: May 17th, 2017 12:05 am

हिमाचल के गद्दी लोगों में प्राचीन औदुंबरों की अनेक विशेषताएं दिखाई देती हैं, जिससे लगता है कि हिमाचल के वर्तमान गद्दी लोग औदुंबरों के वंशज हैं। गद्दी लोग उन्हीं क्षेत्रों में रहते हैं, जो प्राचीनकाल से औदुंबरों से संबंधित रहे हैं। गद्दी स्थान को शिव भूमि कहा जाता है…

गणराज्य व्यवस्था

औदुंबर- कुछ अन्य विद्वानों का मत है कि वह निरंकुश एकाधिपति राजा था जिसने उपाधि का नाम लिखना जरूरी नहीं समझा, परंतु दासगुप्त जैसे अन्य विद्वानों का मत है कि ‘महादेव’ में दोनों उद्देश्यों की पूर्ति हो जाती है, शासक के नाम की भी और उपाधि के नाम की भी। अधिक उचित यही लगता है कि महादेव से दोनों उद्देश्यों की पूर्ति होने के कारण शब्द को दोहराना उचित नहीं समझा गया है। तीसरी श्रेणी की मुद्राएं उन शासकों द्वारा चलाई गई हैं जिनके नाम ‘मित्र’ से अंत होते हैं, यथा-आर्यमित्र, अजयमित्र, महीमित्र, भानुमित्र तथा महाभूतिमित्र आदि। इसका समय प्रथम शताब्दी का उत्तरार्द्ध है। इनमें नामों के अतिरिक्त अन्य प्रकार के बौद्ध धर्म के प्रभाव दृष्टिगत होते हैं। औदुंबरों को बौद्ध धर्म के अनुयायी मानने वाले विद्वान इन सिक्कों में वृक्ष को बोधि-वृक्ष, सर्प को नाग और पाद-चिन्ह को चैत्य-चिन्ह मानते हैं, परंतु यह वस्तु-स्थिति नहीं है। औदुंबर शैव धर्म के अनुयाया थे और उनका बौद्ध धर्म से कोई सीधा संबंध नहीं था। औदुंबरों के सिक्कों में ब्राह्मी और खरोष्ठी में लेख प्रायः इस रूप में रहे हैं। ‘महादेवस राजराजस धरघोषस औदुबरसा।’ इस उक्ति से स्पष्ट होता है कि औदुंबर मुख्यतया शिवभक्त थे और शिव के उपासक थे। उनके शासकों के नाम में यथा रुद्रदास, शिवदास, महादेव, घरघोष में भी शिव के ही भिन्न रूप लक्षित होते हैं। ‘राजराजस’ शब्द से इस बात की पुष्टि होती है कि औदुंबर जाति में कुनिंदों की तरह संघ प्रकार के शासन का प्रचलन था। यह भिन्न गणों का एक संघ था और इनमें से एक भिन्न गणों के राजाओं का राजा होता था, जो राजराजा कहलाता था। हिमाचल के गद्दी लोगों में प्राचीन औदुंबरों की अनेक विशेषताएं दिखई देती हैं, जिससे लगता है कि हिमाचल के वर्तमान गद्दी लोक औदुंबरों के वंशज हैं। गद्दी लोग उन्हीं क्षेत्रों में रहते हैं, जो प्राचीनकाल से औदुंबरों से संबधित रहे हैं। गद्दी स्थान को शिव भूमि कहा जाता है। मणिमहेश इनका आराध्य देव है। औदुंबरों के सिक्कों में दो छतीय मंदिर का स्वरूप गद्दी क्षेत्र के अनेक मंदिरों से मेल खाता है। इसकी शिखर शैली की छत है, अनेक स्तंभ हैं, जिन्हें अलग से स्तूप कहा गया है। कुछ विद्वान इसे पैगोडा शैली का मंदिर मानते हैं और हिमाचल में इस प्रकार के अनेक मंदिर हैं। मंदिर के साथ नंदी-त्रिशूल, नंदी-पाद और वृक्ष आदि गद्दी क्षेत्र के मंदिरों की पूरी झांकी प्रस्तुत करते हैं। इसके अतिरिक्त अनेक विद्वानों का मत है कि औदुंबर लोग ऊनी और पशम आदि के अमूल्य वस्त्रों का व्यापार करते थे। बौद्ध जातक कथाओं में गांधार और औदुंबर के ऊनी वस्त्रों की बड़ी प्रशंसा की गई है। यह बात भी गद्दियों से मेल खाती है।

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