कविता

By: May 29th, 2017 12:05 am

बेटियां

क्या सच में घर का शृंगार हैं बेटियां,

फिर समाज में क्यों दिखती आज भी लाचार हैं बेटियां

माना कि पापा की लाड़ली, मां की दुलारी हैं बेटियां,

पर सड़क पर आज भी वहशी दरिंदों की शिकार हैं बेटियां ।

नवरात्रों में देवी और घर की लक्ष्मी हैं बेटियां,

पर क्यों कोख में आज भी मार दी जाती हैं बेटियां,

कहने को दो घरों की शान हैं बेटियां,

पर सच इतना है कि

अपने घर में भी मेहमान हैं  बेटियां।

खेल, शिक्षा हर जगह कमाती नाम हैं बेटियां

पर समाज में आज भी गुमनाम हैं बेटियां

कहां ख़ुद के लिए जीती हैं बेटियां,

घर समाज को संवार खुद को भूल जाती हैं बेटियां

कुछ पैसों के लिए आज भी बेच दी जाती हैं बेटियां ।

बेटों से आज कहां कम हैं बेटियां,

हर जगह नित नया आगाज हैं बेटियां

पर आज भी दहेज के लिए जला दी जाती हैं बेटियां

खुद को भूल दूसरों के लिए जीती हैं बेटियां,

मां, बहन, और पत्नी कई रूपों में फर्ज निभाती हैं बेटियां

पर समाज में आज भी ठुकरा दी जाती हैं बेटियां

खुद ही खुद से जंग लड़ आगे बढ़ रही हैं बेटियां

मतलब की इस दुनिया में प्यार सिखा रही हैं बेटियां,

दुनिया की इस भीड़ में अकेली ही चल रही हैं बेटियां,

पोस्टरों, भाषणों में ही बचा रहे हैं बेटियां,

वरना सच यह है कि कोख में मरवा रहे हैं बेटियां,

खुदगर्ज इस दुनियां में आज भी

अस्तित्व की तलाश में भटक रही हैं बेटियां।

आशीष बहल, चुवाड़ी, जिला चम्बा

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