कृषि हेल्पलाइन

By: May 9th, 2017 12:05 am

भंवरा पालन से बढ़ाएं उत्पादन-गुणवत्ता

भंवरा एक वन्य कीट है, जो कृत्रिम परपरागण क्रिया में सहायक है, विदेशों, जैसे कि यूरोप, उत्तर अमरीका, हॉलैंड, चीन, जापान, तुर्की, कोरिया आदि में भंवरा पालन बड़े पैमाने में व्यावसायिक तौर पर किया जाता है। मुख्यतः इसका प्रयोग स्यंत्रित प्रक्षेत्रों (हरितगृह) में फसलों के परपरागण हेतु उनकी उत्पादन एवं गुणवत्ता के स्तर को बढ़ाने के लिए किया जाता है। फसलें जैसे कि टमाटर, खीरा, बैंगन, तरबूज, सेब, नाशपाती, स्ट्राबेरी, ब्लैकबेरी, ब्लूबेरी, किवी इत्यादि में अच्छे उत्पादन के लिए परपरागण क्रिया पर निर्भर करती है। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि इन फसलों की पूर्ण एवं पर्याप्त स्तर पर परागण क्रिया हो।

उपयोगिता : भंवरा अपने विशेष गुणों जैसे कि ठंडे तापमान पर परपरागण क्रिया, लंबी जिव्हा, कम जनसंख्या, अधिक बालों वाले शरीर आदि के कारण मधुमक्खियों की अपेक्षा अधिक निपुणता से परागण क्रिया करता है।  इसलिए हरितगृह में भंवरे अधिक निपुण परागकीट माने  गए हैं। भारत में भंवरा पालन की शुरुआत सन् 2000 में डा. वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग में की गई। कड़ी मेहनत के पश्चात भंवरा पालन तकनीक इजाद की गई, जिसमें बसंत के आगमन पर भंवरा रानियों को जाली की मदद से एकत्रित करके प्रयोगशाला में लाया जाता है, जहां इन रानियों को लकड़ी के डिब्बों में (एक रानी एक डिब्बे में) रखा जाता है। इन डिब्बों में रानियों को खाने के लिए 50 प्रतिशत सुकरोस, चीनी का घोल एवं मधुमक्खियों द्वारा एकत्रित परागण एक छोटे ढक्कन (लोहे अथवा प्लास्टिक के) में डालकर दिया जाता है। इन डिब्बों को 65-70 प्रतिशत आर्द्रता एवं 25-28 डिग्री सेल्सियस तापमान में अंधेरे कक्ष अथवा इनक्यूबेटर में रखा जाता है कुछ दिन पश्चात (सामान्यतः 8-15 दिन में) रानी भंवरा मक्खी अपने शरीर की मोम ग्रंथियों से मोम निकालकर कोष्ठक बनाती हैं, जिसमें लगभग दो-चार अंडे देती हैं और उन्हें सेकती हैं। अंडे 36-72 घंटों बाद फूटते हैं, जिनसे सफेद रंग के सुंडीनुमा शिशु निकलते हैं। रानी मक्खी इन शिशुओं को परागणकण एवं चीनी को मिलाकर प्रतिदिन भोजन के तौर पर देती है। शिशु मोम से बने कोष्ठ में ही बड़े होते हैं और लगभग 26-33 दिनों में व्यसक भंवरा मक्खी बनकर कोष्ठ से बाहर निकलता है।

अविनाश चौहान, बीएस राणा, हरीश शर्मा और सपना कतना

सौजन्यः डा. राकेश गुप्ता,  छात्र कल्याण अधिकारी,  डा. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय,सोलन

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