गज़लें

By: May 22nd, 2017 12:05 am

1

तेरे वादों का  कैलेंडर दीवार पर लगा रखे हैं

कितने निभाए तूने एक-एक कर निशां लगा रखे हैं।

बाकी बचे वादे कब निभाओ खुदा जाने,

तेरे सच और झूठ साथ दिल में लगा रखे हैं।

हमारी एक खता को बार-बार दोहराने मे मशगूल

तेरी खताओं के मैंने घर में ढेर लगा रखे हैं।

गर पाक दिलों की मोहब्बत से खुदा मिलता है

तो अपने गिर्द तूने पहरे क्यों लगा रखे हैं।

‘दीक्षित’ हिसाब करने बैठोगे तो उम्र निकल जाएगी,

क्या वे इल्जाम कम हैं, जो उन्होंने लगा रखे हैं।

2

जब से तुम्हें बेवफा कहना छोड़ दिया,

लोगों ने हम पे इल्जाम लगाना छोड़ दिया।

कहां तक निभाई तूने वफा तुम जानो,

हमने यह हिसाब लगाना छोड़ दिया।

बिकने वाली चीज को क्या पता  मोल का,

मोल-भाव लगाना सच तुम पर छोड़ दिया।

बेवजह शक भरी निगाहों से देखते हो,

हमने तुम्हारी गली से आना-जाना छोड़ दिया।

खुद मर्जी में हद पार नहीं किया करते

‘दीक्षित’ ने उन्हें यह समझाना छोड़ दिया।

-सुदेश दीक्षित, पंतेहड़, घरथोली, बैजनाथ

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