गज़ल

By: May 29th, 2017 12:05 am

कश्ती में छेद कर डुबाने की साजिश किस की थी

आप शामिल नहीं उसमें तो फिर साजिश किस की थी।

अपने ही तो थे सवार कोई गैर न था,

फिर हमें अलग करने की साजिश किस की थी।

जानती हो फिर भी न जाने क्यों चुप हो,

कि घर ढहाने की पुरजोर साजिश किस की थी।

दिल अगवा कर, दिल में छिपा लिया चुपके से

रिहाई के बदले फिरौती की साजिश किस की थी।

तेरी बात मान के हमदिल है तू दिल भी,

बता दीक्षित को तबाह की साजिश किस की थी।

-सुदेश दीक्षित, पंतेहड़, घरथोली, बैजनाथ

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