डाकू की बेटी राजकुमारी

By: May 7th, 2017 12:05 am

ताजपुर राज्य के राजा राजसिंह बहुत ही दयालु और प्रजा के चहेते राजा थे। उनके कोई संतान  नहीं थी। उन दोनों ने इसे भगवान की मर्जी  मानकर स्वीकार भी कर लिया था। राज्य की जनता भी राजा के गम से दुखी थी। राजा तो शिकार करके या जनता की सेवा करके अपना समय गुजार लेते थे और इससे उनका मन लगा रहता था, लेकिन रानी तो पूरा दिन  खाली रहने के कारण सिर्फ  अपनी संतान न होने के बारे में सोचती रहती। राजा को शिकार का बहुत शौक था। एक दिन वह शिकार करने जंगल की तरफ  चल दिए। जंगल में राजा के सिपाही पीछे छूट गए और वह आगे निकल गया।  राजा आगे पहुंचा तभी उसने किसी बच्चे की रोने की आवाज सुनी। वह आवाज के पास पहुंचा तो देखा कि दो डाकू एक बच्चे को तलवार से काटने वाले थे। राजा ने उन्हें ललकारा और अपनी वीरता से उन्हें मार दिया। राजा ने बच्चे को देखा तो वह एक सुंदर कन्या थी। राजा ने उसे गोद में उठाया। उसको लेकर वह अपने राज्य की तरफ  चल दिए। महल में पहुंचकर राजा ने कन्या को अपनी रानी को दिया और उन्हें सारी बात बताई। रानी ने  उसे भगवान का उपहार बताया, जिससे उनकी खाली झोली भर गई थी। रानी ने कन्या का नाम  ‘भागवती’ रखा।  समय बीतता गया। राजा ने भागवती को राजकुमारों की तरह रखा। उसे कभी भी यह एहसास  नहीं होने दिया कि वह लड़की है। समय के साथ भागवती शिक्षा में ही नहीं, बल्कि अस्त्र-शस्त्र  चलाने में भी निपुण हो गई थी।  अब भागवती जवान हो गई थी और राजा राजसिंह के साथ राजपाट चलाने में उनकी पूरी मदद करती थी। वह भी राजा राजसिंह की तरह राज्य की प्रजा की चहेती थी। वह प्रजा के हर दुःख को अपना दुःख और उनकी खुशी को अपनी खुशी समझती थी। राज्य में चारों तरफ  खुशहाली थी, लेकिन यह खुशहाली ज्यादा दिन नहीं चली। कुछ समय से ताजपुर राज्य में आरा डाकू  का आतंक छा गया। वह डाकू बहुत चालाक था। हमेशा वह लूट  और कत्ल को अंजाम देता और गायब हो जाता था। आज तक उसकी असली शक्ल किसी ने नहीं देखी थी।  किसी को पता  नहीं चलता था। राज्य की सेना और यहां तक कि सेनापति और राजा भी उसको पकड़ नहीं  पाए। इसी फिक्र में राज दरबार में सभी बैठे थे कि उसी समय भागवती बोली- ‘पिता महाराज, यदि आप आज्ञा दें तो मैं इस आरा डाकू को पकड़ने  की कोशिश करूं।  राजा बोला-‘भागवती’ सारी सेना और सेनापति सहित हम भी कोशिश करके हार गए, लेकिन  यदि तुम भी कोशिश करना चाहती हो, तो जैसी तुम्हारी इच्छा,लेकिन सावधान रहना वह बहुत  खूंखार है।  भागवती ने उन्हें धन्यवाद कहा और उनकी आज्ञा लेकर वह दरबार से बाहर निकल गई। भागवती ने एक मर्द का भेस बनाया और राज्य में घूमने लगी। बाजार, गलियों, खेतों आदि में घूमते हुए उसे 5 दिन बीत गए, लेकिन वह आरा डाकू का  पता नहीं लगा पाई। भागवती ने आरा डाकू के बारे में और जानकारी जुटाई। उसको आरा डाकू के बारे में पता लगा कि वह जवान लड़कियों का कत्ल नहीं करता था और जाने से पहले उस घर की लड़की का कंधा जरूर देखता था। इस जानकारी से भागवती को आश्चर्य हुआ, लेकिन इसी से उसे पकड़ने की  एक तरकीब सूझी।  अगले दिन उसने राज्य में घोषणा करवाई कि राजा राजसिंह के जंगल वाले पुराने महल में सब राज्य की लड़कियां इकट्ठी होकर गौरी की पूजा करेंगी जिससे कि उन्हें मनचाहा वर मिल सके।  इसमें कोई भी मर्द शामिल नहीं होगा। भागवती कुछ बहादुर लड़कियों को साथ लेकर जंगल के महल में पहुंची और डाकू का इंतजार करने लगी। उसे पूरा विश्वास था कि डाकू इस घोषणा को सुनकर यहां जरूर आएगा। भागवती को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा। उसने देखा कि एक साया दीवार फांदकर अंदर दाखिल हो गया था। राजकुमारी भागवती सतर्क थी। उसने तलवार के बल पर उसे अपने काबू में कर लिया। अब राजकुमारी भागवती ने आरा डाकू से लूटपाट और लड़कियों का कत्ल न करने का कारण पूछा तो उसने बताया कि वह जन्म से डाकू नहीं था। कुछ डाकू उसकी नवजात बेटी को उठाकर ले गए और उसे मार दिया और इसी गुस्से में वह डाकू  बना। मेरी बेटी के बाएं कंधे पर एक गुलाब का गोदना बना हुआ था। मैं हर लड़की का कंधा इसलिए देखता था कि शायद मेरी बच्ची अभी जिंदा हो। अब चौंकने की बारी राजा राजसिंह की थी।  उसने पूछा ‘आरा डाकू क्या तुम्हारी बेटी 18 साल पहले मारी गई थी। आरा ने आश्चर्य से ‘हां’ में जवाब दिया।  राजा बोलाः ‘आरा, तुम्हारी बेटी जिंदा है। जिसने तुम्हें पकड़ा है, वह राजकुमारी भागवती ही तुम्हारी बेटी है। राजा ने उसे सारी बात बताई कि किस तरह उसने उस छोटी लड़की को बचाया था। अब आरा डाकू के चेहरे पर मिश्रित भाव थे। उधर राजकुमारी भागवती आश्चर्यचकित थी कि  पिता महाराज ने उसे आज तक इस बात का एहसास नहीं होने दिया था कि वह उनकी बेटी  नहीं है। भागवती भागकर राजा के गले लग गई।  राजा राजसिंह बोला- ‘आरा हम भागवती को तो तुम्हें देंगे नहीं और आज से तुम यह गलत  काम छोड़ दो और अपने किए का पश्चाताप करो। आरा ने कहा जब मेरी बेटी जिंदा है, तो मैं यह काम छोड़ता हूं और मैं यही सोचकर खुश हूं कि  वह अब राजकुमारी है। आरा डाकू अब संन्यासी बन गया था और राजा राजसिंह ने उसे अपने महल के मंदिर की  देखभाल का जिम्मा दे दिया था।  पूरी प्रजा और सारे दरबारियों ने भागवती के साहस और बुद्धि की प्रशंसा की ।

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