नियत समय में होती है सेहराबंदी और दूल्हे का प्रस्थान

By: May 17th, 2017 12:05 am

सेहराबंदी तथा दूल्हे का प्रस्थान शुभ नियत मुहूर्त में किया जाता है। पालकी जिसे स्थानीय बोली में सुकपाल या सुखपाल कहते हैं, उसमें दूल्हे से पूर्व कुछ इलाकों में कुल पुरोहित बैठता है…

रीति-रिवाज व संस्कार

सेहराबंदी (शौरा लगाना) : पूजन के बाद वर को पुरोहित पगड़ी बांधकर मामें द्वारा शोरा (सेहरा) बांधने का रिवाज है। पहले मलोखी फिर अन्य संबंधी लाड़े को टीका लगाते हैं। तिलक के साथ 11 या 21 रुपए यथाशक्ति या रिवाज के अनुसार भेंट करते हैं। यह लोक व्यवहार है। शोरा लगने के बाद वर फिर घर में वापस नहीं जाता, जब तक दुल्हन न ले आए ऐसी मान्यता है। सेहराबंदी तथा दूल्हे का प्रस्थान शुभ नियत मुहूर्त में किया जाता है। पालकी जिसे स्थानीय बोली में सुकपाल या सुखपाल कहते हैं, उसमें दूल्हे से पूर्व कुछ इलाकों में कुल पुरोहित बैठता है।

आगमन बारात : निश्चित दिन वर अपने पिता एवं संबंधियों के साथ बारात लेकर बाजे-गाजे सहित कन्या पक्ष वालों के यहां जाता है। बारात में सबसे आगे सुहाग पिटारी वाला होता है जिसकी पीठ पर पिटारी तथा हाथ में तेल पात्र होता है। कन्या पक्ष वाले बारात का स्वागत करते हैं तथा फिर समधोला (समधी मिलावा) या मिलनी या कुड़माई होती है। कन्या के पिता, चाचा, मामा, वर के पिता, चाचा, मामा को तिलक आदि लगाकर गले मिलते हैं और उन्हें कंबल या तौलिए आदि भेंट देते हैं। फिर मंडप में आकर वर मंडप पूजन गरी गोले से करता है। वर पुरोहित आदि के पैर धुलाए जाते हैं। फिर भोजन होता है। महिलाएं इस अवसर पर सिठणियां (छेड़छाड़ वाले पहाड़ी गीत) गाती हैं। कई इलाकों में इन्हें गालियां कहा जाता है।

बेदी : वेदोक्त मंत्रों द्वारा संपन्न करवाई गई प्रक्रिया को यहां की बोली में बेदी कहते हैं। विद्वान आचार्यों, पुरोहितों द्वारा सुंदर मंडप रचना कर वर से तथा कन्या के माता-पिता से गणपति नवग्रह पूजन कलश पूजन करवाया जाता है। फिर अग्नि स्थापना के बाद कन्या को मंडप में लाया जाता है। कन्या दाहिना हाथ पिता के हाथ में देकर कन्य माता सवोषधी दुग्ध गंगाजल मिश्रित जल, शंख, चंदन पंचरत्न से युक्त कन्या पिता व कन्या के हाथ पर जल धारा गिराती है। आचार्य कन्या दान संकल्प पढ़कर कन्या का हाथ वर के हाथ में दिलवा देते हैं। शंख और पंचरत्न साथ होने का अर्थ है कन्या अंतिम समय तक उसी के साथ रहे जिसे उसे सौंपा जा रहा है। चंदन का अर्थ वह अपने गुणों से चंदन की तरह वर के घर को सुगंधित कर दे। फिर पहले धान की वर वधू अग्नि की तीन परिक्रमा करते हैं। उसके बाद कन्या भ्राता फुल्लियां (खिलां) वर के हाथ में देता है। फिर वर कन्या के हाथ में कन्या उसे अग्नि में अर्पण कर देती है। (खिलां)की आहुति से यह अभिप्राय है कि जिस प्रकार धान की पौध कहीं लगाई जाती है और फिर अनाज वह किसी दूसरे खेत में जाकर भरती है। वैसे ही कन्या भी पलती-बढ़ती कहीं और है और फलती-फूलती दूसरे कुल में है।

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