पहचान की भूमि उज्‍मा

By: May 28th, 2017 12:07 am

UtsavUtsavउजमा का प्रकरण किसी भारतीय नागरिक के  सम्मोहन भंग होने की कहानी भर नहीं है। इसने अपनी पहचान के प्रश्न से जुड़े भ्रमों को दूर करने और अपनी पहचान पर गर्व करने के मौके भी उपलब्ध कराए हैं। तमाम नकारात्मक छवियों के बीच उजमा के प्रकरण ने अपने देश की खूबसूरती से हमें रू-ब-रू कराया है। भारत वापसी के बाद जिस तरह से उजमा ने अपने देश की मिट्टी को प्रणाम किया और इस देश के प्रति अपने एहसासों को बयां किया, उससे एक स्पष्ट संदेश जाता है कि सामूहिक संघर्षों के वर्तमान दौर में हमारी राष्ट्रीय पहचान ही, सबसे बड़ी संकटमोचक है…

तथ्यों से परिचित न  होने पर सम्मोहित होने की संभावनाएं बन ही जाती है। कई बार स्वार्थ साधने के लिए सम्मोहक छवियां जानबूझकर गढ़ी जाती हैं। यह सम्मोहन जब टूटता है, कठिनाइयां शुरू होती हैं, सगे-संबंधी साथ देने के लिए आगे आते हैं तो हम खुद को ठीक ढंग से पहचानते हैं और उस पहचान पर गर्व भी करते हैं। उज्मा अहमद की भारत वापसी की कहानी में यह सब कुछ दिखता है। उज्मा का प्रकरण किसी भारतीय नागरिक के सम्मोहन भंग होने की कहानी भर नहीं है। इसने अपनी पहचान के प्रश्न से जुड़े भ्रमों को दूर करने और अपनी पहचान पर गर्व करने मौके भी  उपलब्ध कराए हैं। तमाम नकारात्मक छवियों के बीच उजमा के प्रकरण ने अपने देश की खूबसूरती से हमें रू-ब-रू कराया है। भारत वापसी के बाद जिस तरह से उजमा ने अपनी देश की मिट्टी को प्रणाम किया और इस देश के प्रति अपने एहसासों को बयां किया, उससे एक स्पष्ट संदेश जाता है कि सामूहिक संघर्षों के वर्तमान दौर में सबसे बड़ी संकटमोचक हमारी राष्ट्रीय पहचान ही है। भारत वापसी के बाद उजमा ने देश और अपनी पहचान को लेकर जो कहा, वह पहचान का सबसे बड़ा यथार्थ जैसा है। उजमा ने कहा कि ‘मेरी मां-बहन या पिता नहीं हैं।’ आज मुझे पहली बार पता चला कि मेरी जिंदगी की कोई कीमत है। भारतीय नागरिक होना अपने आप में एक गर्व का विषय है। मैं जब वहां परेशान होती थी, तो सुषमा मैम का फोन आता था कि बेटा आप परेशान न होना, हम आपके लिए लड़ रहे हैं। तुम हिंदोस्तान की बेटी हो, मेरी बेटी हो। इससे मुझे हिम्मत बंधती थी कि मेरे लिए मेरा देश और मेरी सरकार इतना कुछ कर रही है।’ इस प्रकरण के बाद उजमा के मन में अपने देश की खूबियों की एक स्पष्ट छवि बन चुकी थी। वह पहचान की ऊहापोह से बाहर निकल चुकी थीं। भारत और पाकिस्तान के बारे में उनके विचार उनकी मनःस्थिति के बारे में काफी कुछ बयां करते हैं। उन्हीं के शब्दों में ‘पाकिस्तान मौत का कुआं है, वहां जाना आसान है लेकिन आना मुश्किल है। मैं सभी को सलाह दूंगी कि कभी पाकिस्तान न जाना। पाकिस्तान को लेकर मेरे मन में खौफ बैठ गया है। हमारा देश भारत बहुत अच्छा है। हमारे पास सुषमा मैम जैसी विदेश मंत्री हैं। मैंने दो-तीन देश देखे हैं लेकिन मुझे गर्व है कि मैं भारतीय हूं। अपने साथ घटी घटनाओं का जिक्र करते हुए उजमा ने पाकिस्तान की एक अलग ही तस्वीर हमारे सामने रखी। बकौल उजमा ‘पाकिस्तान की हद में पांव रखते ही उसकी जिंदगी बर्बाद हो गई, ताहिर ने न सिर्फ उसको बंधक बनाकर रखा, बल्कि निकाहनामे पर जबरन हस्ताक्षर करवा लिए। वहां मैंने देखा कि एक बहुत अजीब गांव था, भाषा अजीब थी, लोग अजीब थे। वहां पर कुछ भी सही नहीं था। मुझे मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक तौर पर प्रताडि़त किया गया। बुनेर गांव को अगर आप गूगल पर सर्च करोगे तो पता चलेगा कि 2008-2010 तक वहां पर तालिबान का कब्जा था, बुनेर में कई तरह के मिलिट्री आपरेशन भी होते रहते हैं। वहां ताहिर ने मुझे मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक तौर पर प्रताडि़त किया। मुझे धमकी भी दी गई कि दिल्ली में भी हमारे रिश्तेदार हैं। अगर तुम मेरी बात नहीं मानोगी, तो दिल्ली में तुम्हारी बेटी को अगवा करवा लेंगे। मेरी बच्ची को लेकर उन्होंने जो खौफ दिखाया, उसी के चलते मैंने साइन किए। अगर मैं वहां दो-चार दिन और रुकती तो शायद वो मुझे वहां मार देते या फिर किसी को बेच देते। बुनेर में शायद अभी मुझ जैसी और भी लड़कियां होगीं। यह जरूरी नहीं है कि भारतीय हों। वहां पर किसी का अपना कोई बिजनेस नहीं है, सब मलेशिया में रहते हैं और वहां लड़कियों को बहला फुसला कर लाते हैं। उजमा के अनुसार मेरे लिए यह बड़ी बात है कि भारतीय उच्चायोग ने मुझ पर भरोसा किया। मैंने पाकिस्तान में डिप्टी हाई कमिश्नर को अपनी बात बताई। वहां मुझसे कहा गया कि हम आपको बाहर नहीं जाने देंगे और आपकी मदद करेंगे। गौरतलब है कि इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने उजमा को वापस अपने वतन लौट जाने की इजाजत देने के बाद उनकी वापसी का रास्ता साफ हो गया था। उजमा ने आरोप लगाया था कि उसे बंदूक की नोक पर जबरन शादी करने के लिए मजबूर किया गया था।  उजमा अहमद का प्रकरण यह बताता है कि पहचान और सुरक्षा और अधिकार, राष्ट्र के अस्तित्व पर ही निर्भर करते हैं। व्यक्तिगत मान्यताएं, स्वतंत्रताएं, राष्ट्रीय सुरक्षा कवच में ही पल-बढ़ सकती हैं। हवा में असीमित स्वतंत्रता की बात करने वाले कुछ भारतीय यथार्थ की इस भूमि को पहचान लें तो पहचान के कुहासे छंट सकते हैं और कर्त्तव्यों की भावभूमि पैदा हो सकती है।

-डा.जयप्रकाश सिंह

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