फिजूलखर्ची को न मिले पनाह

By: May 17th, 2017 12:05 am

newsगुरुदत्त शर्मा

लेखक, शिमला से हैं

प्रदेश के आधे से ज्यादा सरकारी उपक्रम घाटे में चल रहे हैं और सभी निगमों, बोर्डों का घाटा अब तक वर्ष (2015-16) में 3167 करोड़ तक पहुंच गया है। निरंतर रुग्णता की ओर अग्रसर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के संबंध में एक नई एवं निश्चित नीति प्रदेश सरकार को प्रतिपादित करनी चाहिए…

प्रदेश में अनुत्पादक खर्च प्रति वर्ष बढ़ता ही जा रहा है, जो कि चिंता का विषय है। इसके साथ ही कृषि उत्पादन स्थिर हो रहा है। हमें यह याद रखना होगा कि प्रदेश की सत्तर फीसदी आबादी कृषि क्षेत्र से जुड़ी हुई है, लेकिन अब प्रदेश में लाभ का व्यवसाय नहीं रहा। इसके कुछ कारण जैसे सिंचाई सुविधा का अभाव, समय पर वर्षा न होना और बिचौलियों द्वारा किसानों को ठगना व बंदरों, जंगली जानवरों द्वारा खेती को नुकसान पहुंचाना हो सकता है। प्रदेश में विद्युत उत्पादन में भी स्थिरता दर्ज की जा रही है और निजी क्षेत्र का विकास करीब-करीब स्थिर हो चुका है, जैसा कि प्रदेश का आर्थिक सर्वे यह दर्शाता है कि इस वर्ष ग्रोथ रेट 6.8 फीसदी रहने का अनुमान है, जबकि तीन वर्ष पूर्व यह आठ फीसदी से भी अधिक था। प्रदेश सरकार के लिए संतोष का विषय यह है कि प्रति व्यक्ति आय 9.1 फीसदी के हिसाब से वर्ष 2015-16 में बढ़ोतरी दर्ज की गई है।

सरकार अधोसंरचना के विकास के लिए गंभीर कोशिश नहीं कर रही है। इसी कारण पढ़े-लिखे युवा रोजगार के लिए दूसरे राज्यों की ओर रुख कर रहे हैं।  यदि प्रदेश में बेरोजगारी बढ़ी है, तो इसका कारण सरकार की गलत आर्थिक नीतियां, पूंजी की कमी, विभिन्न क्षेत्रों का पिछड़ापन व श्रम की अधिकता है। प्रदेश में रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए औद्योगिकीकरण व पर्यटन विकास अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, जिस पर और भी ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। क्या सरकार प्रदेश के उद्योगों को बुनियादी सुविधा व उचित औद्योगिक वातावरण उपलब्ध करवा रही है, वरना उद्योग मुख्यतः टैक्स की छूट का फायदा उठाने के लिए प्रदेश में आएंगे और टैक्स की छूट समाप्त होने के बाद यहां से पलायन कर जाएंगे। इसे रोकने के लिए सरकार को कार्य करना चाहिए और उद्योगों में हिमाचलियों को 70 भर्ती सुनिश्चित करनी चाहिए। शिक्षा को व्यवसाय के तौर पर हमारे प्रदेश ने एक मिसाल कायम की है, लेकिन अब समय तेजी से बदल रहा है और उसी हिसाब से इनसानी सोच भी बदल रही है। प्रदेश तब तक अपने आर्थिक अधिकारों की जंग में सफल नहीं हो सकता, जब तक वह समयानुसार अपनी आर्थिक नीतियों में आमूलचूल परिवर्तन न करे। नई आर्थिक नीति को लागू हुए अढ़ाई दशक से भी अधिक का समय हो चुका है। इसका समावेश आज तक हमारे बजट में पूर्ण रूप से नहीं हो पाया, राजस्व बढ़ाने की ओर भी कोई कार्य नहीं किया गया और न ही अभी तक कर्ज लेने की नीति का कोई विकल्प सोचा गया। कर्जा लेना क्या विकास और प्रगति का सूचक है, शायद नहीं। सरकार की फिजूलखर्ची ऐसी ही रहेगी और प्रदेश में घाटे में चल रहे उपक्रमों की बाबत सरकार के पास उसका कोई हल नहीं बचेगा।

प्रदेश के आधे से ज्यादा सरकारी उपक्रम घाटे में चल रहे हैं और सभी निगमों, बोर्डों का घाटा अब तक वर्ष (2015-16) में 3167 करोड़ तक पहुंच गया है। समाज में राज्य की भूमिका सीमित होनी चाहिए, जो कार्य समाज स्वयं संपादित कर सकता है, उसमें सरकार की दखलअंदाजी नहीं होनी चाहिए। प्रदेश सकार वर्षों से उन सरकारी उपक्रमों के घाटे पर ध्यान नहीं दे रही है। निरंतर रुग्णता की ओर अग्रसर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों के संबंध में एक नई एवं निश्चित नीति प्रदेश सरकार को प्रतिपादित करनी चाहिए। इसके लिए एक ऐसे बोर्ड या निगम का पुनर्गठन किया जाए, जो आर्थिक रूप से स्वायत्त हो सकने की क्षमता रखता हो। उन बोर्डों व निगमों को बंद कर देना चाहिए, जिनका पुनर्वास किन्हीं कारणों से संभव न हो तथा उसमें कार्यरत कर्मचारियों की पूर्ण सुरक्षा की जाए। बोर्ड व निगमों के निदेशक मंडलों का व्यावसायीकरण करके उन्हें अधिक उत्तरदायी बनाने के साथ-साथ उनके कार्य की समय-समय पर समीक्षा की जानी चाहिए। जो सार्वजनिक उपक्रम सरकार के लिए सफेद हाथी साबित हो रहे हैं, उनमें विनिवेश व निजीकरण की प्रक्रिया प्रारंभ करनी चाहिए, परंतु इसके लिए कठोर राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है। पूर्व में प्रदेश सरकार ने जनता से अपील की थी कि प्रदेश के आर्थिक संसाधन बढ़ाने और फिजूलखर्ची को रोकने के लिए सरकार को सुझाव दे और सरकार में आर्थिक साधन जुटाने के लिए रिसोर्स मोबिलाइजेशन कमेटी का भी गठन किया गया। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट सरकार के पास जमा करवा दी है। यहां सवाल किया जा सकता है कि उस रिपोर्ट पर सरकार ने क्या कार्रवाई की। सरकार को भविष्य में फिजूलखर्ची को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। अनुत्पादक खर्चों पर लगाम लगानी होगी। प्रदेश सरकार व अफसरशाही को समझना होगा कि जो पैसा सरकार ऐशो आराम पर खर्च कर रही है, वह जनता के खून-पसीने की कमाई है। नई गाडि़यां खरीदना, घर की सजावट, सरकारी वाहनों का घरेलू दुरुपयोग जैसे अनुत्पादक खर्चों पर अंकुश लगाने की सख्त जरूरत है। मितव्ययता की आवश्यकता को नजरअंदाज करना प्रदेश के आर्थिक हितों के लिए हानिकारक होगा। राज्य में सेवा क्षेत्र की आपार संभावनाएं हैं, जरूरत सिर्फ आधारभूत व बुनियादी संरचना को खड़ा करने की है और यह बुनियादी सुविधा पीपीपी मोड के आधार पर जुटाई जा सकती है, परंतु सरकार इस दिशा में सार्थक पहल नहीं कर रही है।

भविष्य में जरूरी है कि सरकारी लोक लुभावन घोषणाओं से बचते हुए आधारभूत संरचना के विकास की ओर ध्यान दे, ताकि राजस्व प्राप्त करने के नए रास्ते खोजे जा सकें। इसके अलावा जरूरत इसकी भी है कि उपयुक्त नीति के माध्यम से सेवा क्षेत्र के फैलाव की ओर विशेष ध्यान दिया जाए, ताकि राजस्व प्राप्त करने के साथ-साथ रोजगार के नए रास्ते खोजे भी जा सकें।

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