बाहुबली का दक्षिण मार्ग

By: May 22nd, 2017 12:05 am

बाहुबली को लेकर सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात इसके रचयिताओं का आत्मविश्वास है, रामायण और महाभारत के फ्यूजन से भरी कहानी, जिसे पहले भी अलग-अलग रूपों में असंख्य बार दोहराया जा चुका है। भारी-भरकम बजट और रीजनल सिनेमा के कलाकार, उस पर भी फिल्म को दो हिस्सों में बनाने का निर्णय अलग स्तर के आत्मविश्वास को दर्शाता है…    

बाहुबली भारतीय सिने इतिहास में मील का पत्थर साबित हुई है। यह देशी फैंटेसी से भरपूर एक भव्य फिल्म है, जो अपने प्रस्तुतिकरण, बेहतरीन टेक्नोलॉजी, विजुअल इफेक्ट्स और सिनेमाई कल्पनाशीलता से दर्शकों को विस्मित करती है। एसएस राजामौली के निर्देशन में बनी यह फिल्म भारत की सबसे ज्यादा कमाने वाली फिल्म बन चुकी है। इसे लेकर पूरे भारत में एकसमान दीवानगी देखी गई, लेकिन इसी के साथ ही बाहुबली को हिंदुत्व को पर्दे पर जिंदा करने वाली एक ऐसी फिल्म के तौर पर भी पेश किया जा रहा है, जिसने प्राचीन भारत के गौरव को दुनिया के सामने रखा है एक ऐसे समय में जब भारत में दक्षिणपंथी विचारधारा का वर्चस्व अपने उरूज पर है, बाहुबली को इस खास समय का बाइप्रोडक्ट बताया जा रहा है, एक वरिष्ठ पत्रकार ने अपने फेसबुक पर लिखा ‘मनमोहन की जगह मोदी, अखिलेश की जगह योगी और अब दबंग की जगह बाहुबली…देश बदल रहा है…।

बाहुबली को लेकर सबसे ज्यादा गौर करने वाली बात इसके रचयिताओं का आत्मविश्वास है, रामायण और महाभारत के फ्यूजन से भरी कहानी, जिसे पहले भी अलग-अलग रूपों में असंख्य बार दोहराया जा चुका है। भारी-भरकम बजट और रीजनल सिनेमा के कलाकार, उस पर भी फिल्म को दो हिस्सों में बनाने का निर्णय, अलग स्तर के आत्मविश्वास को दर्शाता है। इसकी कहानी रामायण और महाभारत से प्रेरित है, जिसे तकनीक, एनिमेशन और भव्यता के साथ पर्दे पर पेश किया गया है। इस कहानी में वो सब कुछ है, जिसे हम भारतीय सुनने के आदि रहे हैं। राजामौली अपनी इस फिल्म से हमारी पीढि़यों की कल्पनाओं को अपनी सिनेमाई ताकत से मानो जमीन पर उतार देते हैं। तेलुगू सिनेमा, जिसे टालीवुड भी कहा जाता है, की एक फिल्म ने बालीवुड को झकझोर दिया है। एक रीजनल भाषा की फिल्म के लिए पूरे देश भर में एक समान दीवानगी का देखा जाना सचमुच अद्भुत है। बाहुबली की  सफलता बालीवुड के सूरमाओं के लिए यकीनन आंखें खोल देने वाली होगी। रामगोपाल वर्मा ने तो कहा भी है कि ‘भारतीय सिनेमा की चर्चा होगी तो बाहुबली के पहले और बाहुबली के बाद का जिक्र होगा। ऐसे में सवाल उठता है कि इस फिल्म में ऐसा क्या है, जो भारतीय जनमानस की चेतना को छूता है और एक साथ पूरे भारत की पसंद बन जाता है।

इसे बहुत ही खुले तौर पर बाहुबली सीरीज की फिल्मों को हिंदू फिल्म के तौर पर पेश किया जा रहा है और इसके खिलाफ  जरा सा भी बोलने वालों को निशाना बनाया जा रहा है। फिल्म समीक्षक एना वेट्टीकाड ने जब अपने रिव्यू में बाहुबली- 2 की आलोचना की तो सोशल मीडिया पर उन्हें बुरी तरह से ट्रोल किया गया, उनके खिलाफ सांप्रदायिक जहर उगले गए। उन्हें बहुत ही भद्दी और अश्लील गालियां दी गईं। इसको लेकर एना वेट्टीकाड ने जो चिंता जताई है, उस पर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। उन्होंने लिखा है कि सोशल मीडिया पर मेरे खिलाफ जो कहा गया वो समाज में आ रहे बदलाव का संकेत है, फिल्मों और फिल्मी सितारों को लेकर फैंस में एक तरह का जुनून रहता है और समीक्षक जब उनकी पसंदीदा सितारों की फिल्मों पर सवाल खड़े करते हैं, तो वे नाराज होते और गाली-गलौज भी करते हैं, लेकिन बाहुबली के समर्थक ट्रॉल्स का बर्ताव इससे भी आगे का है। इस तरह के व्यवहार का जुड़ाव 2014 के भगवा उभार और बॉलीवुड में खान सितारों के वर्चस्व व फिल्मी दुनिया की धर्मनिरपेक्षता से भी है। 2015 में पांचजन्य के बाहुबली से खलबली वाले अंक में खान अभिनेताओं पर निशाना साधते हुए कहा गया था कि इस फिल्म ने साबित किया है कि खान अभिनेता ही फिल्म हिट होने की गारंटी नहीं हो सकते हैं। इसी साल फरवरी में शाहरुख खान की फिल्म रईस और ऋतिक रोशन की काबिल रिलीज हुई, तो रईस के खिलाफ सोशल मीडिया पर मुहिम चलाई गई थी और शाहरुख के मुकाबले हिंदू सुपरस्टार ऋतिक रोशन की फिल्म को तरजीह देने की बात की गई थी।  इस मुहिम में बीजेपी महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने भी बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया था, उन्होंने ट्विटर पर लिखा था कि जो रईस देश का नहीं, वो रईस किसी काम का नहीं। 2015 में भी दिलवाले, के समय भी शाहरुख खान को इसी तरह के अभियानों का सामना करना पड़ा था, जिसके पीछे अहिष्णुता के मुद्दे पर दिया गया उनका बयान था कि देश में बढ़ रही असहिष्णुता से उन्हें तकलीफ  महसूस होती है, इसी तरह के अभियान आमिर खान के खिलाफ  भी चलाए जा चुके हैं।

निर्देशक एसएस राजमौली कि इस अभूतपूर्व सफलता के पीछे का राज यही है कि उन्होंने इस खास समय में भारतीय जनमानस की ग्रंथि को समझा, देश में बहुसंख्यकवाद का उभार, दक्षिणपंथी खेमे का दिल्ली की सत्ता पर पूर्ण कब्जा और नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना ऐसे समय में बाहुबली को तो आना ही था। राजमौली ने इस बदलाव को बहुत अच्छे से समझा, जहां हिंदुत्व की भावना अपने ज्वार पर है और भारतीय संस्कृति के वैभवशाली अतीत के पुनःस्थापन की बात हो रही है, न केवल हिंदुत्ववादियों ने बाहुबली सीरीज का जोरदार स्वागत किया है बल्कि इसने भारतीय जनमानस को भी उद्वेलित किया है। यह सही मायने में जनता से कनेक्ट करती है। हमारी राजनीति और समाज का सांप्रदायीकरण तो पहले ही हो चुका है, अब सिनेमा जगत में भी इस प्रवृत्ति की घुसपैठ हो रही है। बाहुबली ने हिंदुत्व और भारत के वैभवशाली अतीत पर  फिल्म बनाने की राह को खोल दिया है।

  -जावेद अनीस

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