बूढ़े पुलों पर दौड़ता पर्यटन
(सुरेश कुमार, योल)
चाहा तो यह था कि हिमाचल अपने पर्यटन के लिए पहचाना जाता, अपने शक्तिपीठों के लिए जाना जाता, पर आज हिमाचल की पहचान जाम और ब्रिटिश टाइम के बूढ़े पुलों की वजह से है। पर्यटन सीजन में जब हम पर्यटकों का कारवां हिमाचल की ओर बढ़ते देखते हैं, तो लगता है कि हम भी कुछ हैं जो लोग हमारी तरफ खिंचे चले आ रहे हैं। जब उन्हीं पर्यटकों को जाम में फंसे देखते हैं और उन्हें हिमाचल की व्यवस्था को कोसते देखते हैं तो हमें हमारी औकात पता चलती है कि हम कितने पानी में हैं। कई पर्यटक तो यह तक कहते सुने गए कि दोबारा हिमाचल नहीं आएंगे। बर्फबारी हुई तो हमारे प्रशासनिक अधिकारी यह कहते सुने गए कि पर्यटक अभी हिमाचल न आएं। यानी हम हर साल बताकर आने वाली आपदा से भी निपटने में असमर्थ हैं। समर्थ हैं तो पर्यटकों को रोकने का अलर्ट देने में। बात पुलों की करें तो ब्रिटिश टाइम के बूढ़े पुल शताब्दी से भी ज्यादा इस प्रदेश को ढो चुके हैं। कोटला का पुल तो मैं बचपन से देखता आ रहा हूं और साथ बन रहे वैकल्पिक पुल को भी 10-15 साल से देख रहा हूं। न पुराना पुल टूटा और न नया पुल बना। ऐसे ही मनूणी का पुल और मांझी पुल बेचारे ढोए जा रहे हैं। मांझी पुल तो अस्थायी रूप में बन गया है, पर ऐसा कब तक चलेगा। सरकार हर साल करोड़ों का बजट खर्च करती है, पर इन पुलों का ख्याल पता नहीं क्यों नहीं आता। ये तंग पुल और सड़कें ही जाम की वजह बनते हैं। भला हो अंग्रेजों का जो ये पुल बना गए, वरना आजादी के बाद का कोई पुल शताब्दी जीकर दिखा दे। हमारे बनाए पुलों में सरिया-सीमेंट तो होगा, पर उसमें भ्रष्टाचार भी जरूर होगा, जो पुलों की उम्र कम कर देता है। सरकार संज्ञान ले तो बात बने।
विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं? निःशुल्क रजिस्टर करें !
Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also, Download our Android App