भारत का इतिहास
असफल रहा क्रिप्स मिशन
मार्च 1942 में सर स्टेफर्ड क्रिप्स भारत की सांविधानिक समस्या के समाधान के लिए जो प्रस्ताव लाए थे, उसमें युद्ध की समाप्ति के बाद सविधान-सभा की स्थापना का विचार स्पष्टतः स्वीकार किया गया था। इस संविधान सभा में ब्रिटिश भारत और देशी राज्यों के प्रतिनिधि सम्मिलित होते। योजना में बताया गया था कि संविधान सभा के निमार्ण के लिए प्रांतीय विधान मंडलों के निम्न सदनों के सारे सदस्य एक निर्वाचक मंडल के रूप में गठित होंगे और आनुपातिक प्रतिनिधित्व के आधार पर संविधान सभा का निर्वाचन करेंगे। संविधान सभा की सदस्य- संख्या इस निर्वाचक मंडल की सदस्य संख्या का दशांश होगी। देशी राज्य इस संविधान सभा में अपने प्रतिनिधि अपनी जनसंख्या के अनुपात से नियुक्त करेंगे। ब्रिटिश सरकार संविधान सभा द्वारा तैयार किया गया संविधान तभी स्वीकार करेगी जबकि दो शर्तें पूरी होती हों।
(क) यदि ब्रिटिश भारत का कोई प्रांत नए संविधान को स्वीकार न करना चाहे तो उसे वर्तमान सांविधानिक स्थिति को कायम रखने का अधिकार हो। यदि किसी प्रांत को विधानसभा 60 प्रतिशत बहुमत से संघ में रहने का निश्चय नहीं करती, तो उसकी संघ में प्रविष्टि का अंतिम निर्णय जनमत संग्रह के द्वारा होना चाहिए। नए संविधान में सम्मिलित न होने वाले प्रांतों को ब्रिटिश सरकार नया संविधान देने के लिए तैयार होगी।
(ख) ब्रिटिश सरकार तथा संविधानसभा के बीच एक संधि हो। भारतीयों की संविधान सभा की मांग के संबंध में क्रिप्स प्रस्ताव अगस्त प्रस्ताव से काफी आगे था, क्योंकि इसमें नए संविधान के निर्माण का अधिकार मुख्यतः भारतीयों का नहीं बल्कि पूर्णतया भारतीयों का मान लिया गया था। किंतु, क्रिप्स प्रस्ताव में प्रस्तावित संविधानसभा कार्यरूप में परिणत न हो सकी और क्रिप्स मिशन असफल रहा।।
1942 के भारत छोड़ो प्रस्ताव में कांग्रेस ने यह भी घोषणा की थी कि स्वाधीनता के बाद अस्थायी राष्ट्रीय सरकार एक संविधान सभा का आयोजन करेगी, जो देश के लिए एक सर्वमान्य सविधान बनाएगी। इस प्रस्ताव के तुरंत बाद ही कांग्रेस नेता गिरफ्तार कर लिए गए और फिर भारत की संविधानिक समस्या के सामधान का मई 1945 में युद्ध की समाप्ति तक अन्य कोई प्रयत्न नहीं किया गया। 1945 में प्रकाशित सप्रू समिति की रिपोर्ट में भी भारत का सांविधानिक गतिरोध दूर करने के लिए संविधान सभा की स्थापना का सुझाव दिया गया था तथा उसके संगठन की एक योजना भी दे दी गई थी।
द्वितीय महायुद्ध के पश्चात इंग्लैंड में साधारण निर्वाचन हुए और इनके फलस्वरूप वहां श्री एटली के नेतृत्व में श्रमिक दल की सरकार बनी। इसी दौरान भारत में लॉर्ड लिनलिथगो की जगह लार्ड वेवेल वाइसराय बनकर आ गए और 19 सितंबर, 1945 को वाइसराय लॉर्ड वेवेल ने घोषणा की कि ब्रिटिश सरकार यथाशीघ्र संविधान सभा बुलाना चाहती है।
विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं? निःशुल्क रजिस्टर करें !
– क्रमशः
Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also, Download our Android App