भारत का इतिहास

By: May 24th, 2017 12:05 am

प्रांतों के वर्गीकरण की व्यवस्था

ब्रिटिश भारत के प्रतिनिधियों में चार प्रतिनिधि मुख्य आयुक्तों के प्रांतों के होने थे। विभाग(क) में एक दिल्ली का, एक अजमेर-मेरवाड़ा का और एक कुर्ग का प्रतिनिधि होना था। जहां कुर्ग के प्रतिनिधि का निर्वाचन वहां की विधान परिषद करती, दिल्ली और अजमेर-मेरवाड़ा के प्रतिनिधि केंद्रीय विधानसभा में इन क्षेत्रों के प्रतिनिधियों द्वारा चुने जाने थे। विभाग (ख) में ब्रिटिश बलूचिस्तान का एक प्रतिनिधि सम्मलित किया जाना था।  इस प्रकार संविधान सभा में ब्रिटिश भारत के कुल प्रतिनिधियों की संख्या 296 हो जानी थी। मंत्रिमंडल मिशन की योजना में कुछ विस्तार से संविधान सभा की प्रक्रिया का भी निरूपण कर दिया गया था और कहा गया था कि संविधान सभा की प्रारंभिक बैठक के बाद जिसमें सभापति तथा अन्य पदाधिकारियों का निर्वाचन होगा और नागरिकों के अधिकारों, अल्संख्यकों तथा कबायली और वर्जित क्षेत्रों के बारे में एक परामर्श समिति की स्थापना की जाएगी। प्रांतीय प्रतिनिधि तीन विभागों में विभक्त हो जाएंगे। वर्ग (क) जिसमें तमिलनाडु, मुंबई, संयुक्त, प्रांत, बिहार, मध्य प्रांत और सिंध सम्मलित होंगे। वर्ग (ख) जिसमें पंजाब, उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत और सिंध सम्मिलित होंगे। वर्ग (ग) जिसमें असम तथा बंगाल सम्मिलित होंगे।

इसके बाद प्रत्येक प्रांत समूह अपने अंगभूत प्रांतों के संविधान तय करेगा और यह भी तय करेगा कि क्या  इन प्रांतों के लिए कोई समूह संविधान तय किया जाना चाहिए और यदि हां, तो प्रांत समूह के पास क्या- क्या विषय रहने चाहिए। इन विषयों को तय करने के बाद तीनों समूहों तथा देशी राज्यों के प्रतिनिधि संघ संविधान का निर्माण करने के लिए फिर एकत्रित होंगे। यदि संघ संविधान समिति में ऐसा कोई प्रस्ताव उपस्थित हो जो मंत्रिमंडल मिशन की  योजना में निर्धारित संविधान के मूल स्वरूप में परिवर्तन करना चाहे या कोई प्रमुख सांप्रदायिक प्रश्न उठाए तो उसका  निर्णय दोनों प्रमुख जातियों में से प्रत्येक के उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के बहुमत से होगा। प्रमुख सांप्रदायिक प्रश्न क्या है, इसका निर्णय संविधान सभा का सभापति करेगा और  यदि प्रमुख  संप्रदायों में से किसी के भी प्रतिनिधियों का बहुमत उससे प्रार्थन करे, तो वह इस संबंध में अपना  निर्णय देने से पहले संघीय न्यायलय से सलाह कर सकेगा।  प्रांतों के वर्गीकरण के बारे में व्यवस्था की गई थी कि जैसे ही नई सांविधानकि व्यवस्था कार्यान्वित होगी वैसे ही किसी भी प्रांत को इस बात की छूट मिल जाएगी कि उस जिस प्रांत समूह में रखा गया है, वह उसमें से निकल जाए। प्रांत का विधानमंडल इस तरह का निर्णय नए  संविधान के अधीन पहले सामान्य निर्वाचन हो जाने के पश्चात करेगा।  मंत्रि मिशन योजना में ब्रिटिश भारत के लिए जो 296 स्थान निर्धारित किए गए थे, उनके लिए निर्वाचन जुलाई। अगस्त 1946 में संपन्न हुए। कांग्रेस ने कुल 208 स्थानों पर विजय प्राप्त की।

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