महाभारत और गायत्री

By: May 20th, 2017 12:05 am

गायत्री मंत्र वेदों में कई बार आता है और उसकी महिमा तो वेद शास्त्रों, आरण्यक और सूत्र ग्रंथों तथा उपनिषद दर्शनों में कई स्थानों पर पाई गई है। इसका कारण है कि गायत्री मंत्र आदि काल से भारतीय धर्मानुयायियों का उपास्य मंत्र रहा है। महाभारत में भी गायत्री मंत्र की महिमा कई स्थानों पर गायी गयी है । यहां तक कि भीष्म पितामह युद्ध के समय अंतिम शरशय्या पर पड़े होते हैं, तो उस समय अंतिम उपदेश के रूप में युधिष्ठिर आदि को गायत्री उपासना की प्रेरणा देते हैं। भीष्म पितामह का यह उपदेश महाभारत के अनुशासन पर्व के अध्याय 150 में दिया गया है । युधिष्ठिर पितामह से प्रश्न करते हैं कि हे सभी शास्त्रों के विशारद महाप्राज्ञ पितामह ! कौन से मंत्र को सदा जपने से विशेष धर्म फल मिलता है । किसी कार्य को आरंभ करते समय चलते- फिरते देवताओं के श्रद्धा- सत्कार मे कौन सा मंत्र अधिक लाभकारी होता है । वह कौन सा मंत्र है जिसके जपने से शांति, पुष्टि, सुरक्षा, शत्रु हानि तथा निर्भय होते हैं ओर जो वेद सम्मत हो कृपया उसका वर्णन कीजिए । भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा कि -यान पात्रे च याने च प्रवासे राजवेश्यति। परां सिद्धिमाप्नोति सावित्री ह्युत्तमां पठन।।

न च राजभय तेषां न पिशाचान्न राक्षसान् । नाग्न्यम्वुपवन व्यालाद्भयं तस्योपजायते। चतुर्णामपि वर्णानामाश्रमस्य विशेषतः ।।

करोति सततं शान्ति सावित्री मुत्तमा पठन् नार्गि्दहति काष्ठानि सावित्री यम पठ्यते। न तम वालोम्रियते न च तिष्ठन्ति पन्नगाः।।

न तेषां विद्यते दुःख गच्छन्ति परमां गतिम् । ये शृण्वन्ति महद्ब्रह्म सावित्री गुण कीर्तनम।। गवां मन्ये तु पठतो गावोऽस्य बहु वत्सलाः।

प्रस्थाने वा प्रवासे वा सर्वावस्थां गतः पठेत॥

जो व्यक्ति सावित्री (गायत्री) का जप करते हैं उनको धन, पात्र, गृह सभी भौतिक वस्तुएं प्राप्त होती हैं ।। उनको राजा, दुष्ट, राक्षस, अग्नि, जल, वायु और सर्प किसी से भय नहीं लगता ।। जो लोग इस उत्तम मन्त्र गायत्री का जप करते हैं, वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चारों वर्ण एवं चारों आश्रमों में सफल रहते हैं । जिस स्थान पर सावित्री का पाठ किया जाता है, उस स्थान में अग्नि काष्ठों को हानि नहीं पहुंचाती है, बच्चों की आकस्मिक मृत्यु नहीं होती, न ही वहां अपंग रहते हैं ।।

जो लोग सावित्री के गुणों से भरे वेद को ग्रहण करते हैं उन्हें किसी प्रकार का कष्ट एवं क्लेश नहीं होता है तथा जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। गउओं के बीच सावित्री का पाठ करने से गउओं का दूध अधिक पौष्टिक होता है। घर हो अथवा बाहर, चलते फिरते सदा ही गायत्री का जप किया करें ।

भीष्म पितामह कहते हैं कि सावित्री- गायत्री से बढ़कर कोई जप नहीं हैः-

जपतां जुह्वता चैव नित्यं च प्रयतात्मनाम।

ऋषिणाम् परमं जप्यं गुह्यमेतन्नराधिम 

तथातथ्येन सिद्धस्य इतिहासं पुरातनम् ।

तदेतत्ते समाख्यां तथ्य ब्रह्म सनातनम् ॥ हृदयं सर्व भूतानां श्रुतिरेषा सनातनी ।

सोमदित्यान्वयाः सर्वे राघवाः कुरवस्तथा। पठंति शुचयो नित्यं सावित्री प्राणिनां गतिम॥

हे नर श्रेष्ठ सदा जप में लीन रहने वाले तथा नित्य हवन करने वाले ऋषियों का यह परम जप तथा गुप्त मंत्र है। सर्वप्रथम इस गुह्य मंत्र का इतिहास ‘पराशर’ द्वारा देवराज के समक्ष वर्णन करता हूं। यह गायत्री ब्रह्मस्वरूप तथा सनातन है । यही सर्वभूत का हृदय तथा श्रुति है। चंद्रवंशी, सूर्यवंशीय, कुरुवंशी, सभी राजा पूर्ण पवित्र भाव से सर्व हितकारी इस महामंत्र सावित्री गायत्री का जप किया करते थे।

तदेतत्ते समाख्यातं तथ्यं ब्रह्म सनातनम्

हृदयं सर्व भूतानां श्रुति रेषा सनातनी ॥

पितामह ने कहा कि उसी गायत्री मंत्र का वर्णन तुमसे किया जायेगा। गायत्री मंत्र ही सत्य एवं सनातन है यह सभी प्राणियों का हृदय एवं सनातन श्रुति है।

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