मोदी को भ्रष्ट चुनौती

By: May 22nd, 2017 12:05 am

ताजातरीन मामला लालू यादव और उनके परिवार से जुड़ा है। पटना में 71,214 वर्गमीटर भूखंड पर ‘डिलाइट मॉल’ बनाया जा रहा है। इसकी लागत 750 करोड़ रुपए बताई जाती है। लालू की पत्नी राबड़ी देवी और बेटा तेजस्वी प्रसाद इस मॉल की कंपनी के मालिक हैं। केंद्रीय पर्यावरण, वन मंत्रालय ने 15 मई को मॉल के निर्माण पर रोक लगाने के आदेश दिए हैं, लेकिन यह आलेख लिखे जाने तक आदेश पर अमल नहीं किया गया है। बहरहाल घोटालों की जांच आगे बढ़ेगी, तो लालू समेत उनके परिजनों से पूछा जाएगा कि यह भूखंड कहां से आया? चारा घोटाले में सुप्रीम कोर्ट लालू यादव को आपराधिक साजिश और पद के दुरुपयोग का अभियुक्त मान चुकी है। जांच की अवधि तय है, लिहाजा 950 करोड़ रुपए के घोटाले में लालू बच नहीं सकते। हाल ही में लालू की बेटी, दामाद और दोनों मंत्री-पुत्रों के खिलाफ  बेनामी संपत्ति के मामले भी उजागर हुए हैं। कभी सामाजिक न्याय और गरीब-गुरबा की बात करने वाले लालू आजकल शेयर, प्लॉट, बिजनेसमैन की बातें करते हैं। इटली के वीवीआईपी हेलिकाप्टर घोटाले के आरोप पत्र में ऐसे राजनीतिक परिवार के नाम होंगे कि जिस दिन अदालत में वह आरोप पत्र दाखिल किया जाएगा, पूरा देश हैरान होगा। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और उपाध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ  ‘नेशनल हेरॉल्ड’ अखबार और ‘यंग इंडिया कंपनी’ के संदर्भ में आयकर विभाग की जांच जारी रहेगी। फिलहाल सोनिया-राहुल जमानत पर हैं। हरियाणा और राजस्थान की कांग्रेस सरकारों ने इस संदर्भ में विशेष भूखंड सस्ती दरों पर क्यों आबंटित किए थे, इसकी सीबीआई जांच भी जारी है। अलग-अलग कारणों से कांग्रेस के एक मुख्यमंत्री और दो पूर्व मुख्यमंत्री सीबीआई और ईडी के राडार पर हैं। गांधी परिवार के दामाद भी जांच के घेरे में फंसे हैं। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनके पार्टी नेताओं पर भी घपलों की कालिख के दाग हैं। लोकसभा में तृणमूल कांग्रेस संसदीय दल के नेता रहे सुबोध वंद्योपाध्याय समेत कई सांसद और नेता भी जेल में बंद हैं। एक चिट फंड कंपनी के घोटाले की छाया ममता बनर्जी तक भी पहुंची है, लेकिन फिलहाल वह गिरफ्तारी से बची हैं। महिला नेताओं में एक और महत्त्वपूर्ण नाम है-मायावती। नोटबंदी के दौरान मायावती की पार्टी बसपा का जो पैसा पकड़ा गया था, अभी तो उसका हिसाब दिया जाना है। मायावती राजनीतिक तौर पर इतनी कमजोर हो गई हैं कि लालू यादव ने राजद कोटे से उन्हें राज्यसभा सदस्य चुने जाने की पेशकश की है। ममता बनर्जी जब भी दिल्ली आती हैं, तो मुख्यमंत्री केजरीवाल से मिलना नहीं भूलतीं। नैतिकता, शुचिता, ईमानदारी और मासूमियत की राजनीति करने का दम भरने वाले केजरीवाल पर फर्जी चंदे, हवाला कनेक्शन, भ्रष्टाचार के आरोपों की झड़ी लगी है। ये आरोप किसी भाजपा, कांग्रेस ने नहीं,बल्कि उन्हीं की कैबिनेट में रहे कपिल मिश्रा ने लगाए हैं। ब्यौरे और दस्तावेज सीबीआई और एंटी क्रप्शन ब्यूरो तक पहुंच चुके हैं, लेकिन केजरीवाल लगातार खामोश हैं। पार्टी लगातार कमजोर हो रही है,विधायक टूट रहे हैं, 21 विधायकों पर बर्खास्तगी की तलवार लटकी है। इसी तरह विपक्षी नेताओं के भ्रष्टाचार की सूची लंबी है। बुनियादी सवाल है कि क्या ये ‘भ्रष्ट’ मंडली मिलकर प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को कोई चुनौती दे सकती है? हालांकि विपक्षी एकता की कवायदें जारी रही हैं। इस दौरान ममता, नीतीश कुमार और सीताराम येचुरी ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से अलग-अलग मुलाकातें की हैं। एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के साथ बातचीत की है। फिलहाल सपा और बसपा में एका नहीं हुआ है और न ही कोई बैठक हुई है। दोनों दल उप्र में महत्त्वपूर्ण हैं। बंगाल में तृणमूल कांग्रेस और वामदलों में एकता का कोई आसार नहीं है, गठबंधन की बात तो बहुत दूर की है। कर्नाटक में कांग्रेस की एकमात्र बड़ी सत्ता है, लेकिन देवगौड़ा की पार्टी-जनता दल (एस)भी वहां का ताकतवर क्षेत्रीय दल है। दोनों के बीच कोई तालमेल नहीं है। ओडिशा में बीजद अध्यक्ष एवं मुख्यमंत्री नवीन पटनायक चाहते हैं कि भाजपा के अप्रत्याशित उभार के मद्देनजर कांग्रेस कुछ मदद करे, लेकिन अभी तक ऐसा संभव नहीं हुआ है। ले-देकर बिहार में जद-यू, राजद और कांग्रेस का महागठबंधन है। वह पूरे देश में प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा को चुनौती कैसे दे सकता है? लालू की पार्टी ने उप्र में करीब 100 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए थे। सभी की जमानत जब्त हुई। जद-यू ने दिल्ली नगर निगम के चुनाव में अपनी ताकत आंकनी चाही थी, लेकिन सभी सीटों पर जमानत जब्त…। इन दोनों क्षेत्रीय दलों की ताकत बिहार तक सीमित है, लेकिन मोदी बिहार में ही, लोकसभा चुनावों के दौरान, दोनों की मिट्टी पलीद कर चुके हैं। फिलहाल परीक्षा राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुनाव के दौरान होनी है। इन पदों के चुनाव के लिए आंकड़े और समीकरण बिलकुल स्पष्ट हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत के बाद जिन राज्यों में भाजपा और उसके सहयोगी दलों को जो जनादेश मिले हैं, उनकी गणना के बाद दोनों चुनाव जीतने के लिए सिर्फ  24,000 के करीब वोटों की कमी है। वह तमिलनाडु की अन्नाद्रमुक पार्टी के दोनों धड़ों के जरिए भरी जा सकती है। तेलंगाना राष्ट्र समिति और वाईएसआर कांग्रेस ने भी भाजपा को समर्थन देने की घोषणा की है। इससे आंध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू भी काबू में रहेंगे। तय है कि भाजपा और एनडीए के लिए इतने वोटों का जुगाड़ कोई टेढ़ी खीर नहीं है। बिखरा विपक्ष क्या चुनौती देगा? जबकि जून में राष्ट्रपति चुनाव की गहमागहमी शुरू होनी है। मौजूदा राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को दूसरा कार्यकाल देने से प्रधानमंत्री मोदी इनकार कर चुके हैं। ममता बनर्जी ने बंगाल के पूर्व राज्यपाल एवं महात्मा गांधी के पौत्र गोपाल गांधी का नाम चलाया था, लेकिन विपक्ष के भीतर से ही किसी भी दल के नेता की सकारात्मक टिप्पणी नहीं आई। लगभग तय है कि पहली बार ऐसे पुख्ता आसार हैं कि राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पदों पर आरएसएस या भाजपा के चेहरे ही बैठेंगे। यदि राष्ट्रपति चुनाव के जरिए विपक्षी एकता सामने आती है, तो फिर 2019 के चुनावी परिदृश्य का आकलन किया जा सकता है। अब भी सर्वे से साफ  हुआ है कि 61 से 75 फीसदी तक लोग मोदी सरकार के काम से खुश और संतुष्ट हैं। भ्रष्ट नेताओं को तो यह देश झेलने को बिलकुल भी तैयार नहीं है। यह हालिया चुनावों ने भी साबित किया है।

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