‘लाल आतंकवाद’ पर प्रहार कब ?

By: May 1st, 2017 12:05 am

तिरंगे में लिपटे ताबूत और शहीदों की लाशें…! जिस आंगन की ओर सुरक्षा बलों के जवान बढ़ते हैं, वहां चीत्कार मचने लगता है। मां या पत्नी अथवा बच्चे पछाड़ खाकर गिरते हैं। छातियां पीटी जाती हैं, असंख्य आंसू बहते हैं। एक परिवार का नौजवान ‘शहीद’ हुआ है, लिहाजा आमदनी और आसरे की एक बाजू भी कट गई है। बस्स…प्रधानमंत्री मोदी का दिलासा भरा बयान आता है कि यह शहादत बेकार नहीं जाएगी। गृह मंत्री राजनाथ सिंह ऐसी शहादतों को ‘कत्ल’ करार देते हैं। बैठकें होती हैं। लंबी-चौड़ी रणनीतियों के खाके खिंचते हैं और फिर एक अध्याय समाप्त…! कुछ दिनों, महीनों के बाद एक बार फिर नक्सली या आतंकी हमला होता है और फिर पुराना सिलसिला शुरू हो जाता है। बीती 24 अप्रैल को छत्तीसगढ़ के सुकमा इलाके में करीब 300-400 नक्सलियों ने सीआरपीएफ के सुस्ता रहे जवानों पर अचानक हमला बोला और 26 को ‘शहीद’ कर दिया। जिन जवानों को अस्पताल तक ले जाया गया, उनमें से कइयों का कहना था-‘हमारे हाथ मत बांधिए। हमें संयम का पाठ मत पढ़ाइए। हमारे हाथ खोल दीजिए और हमें ऐसे आपरेशन के लिए ‘स्पेशल पावर’ दीजिए। हम दिखाते हैं कि नक्सली कैसे नेस्तनाबूद किए जाते हैं।’ नक्सलवाद कानून-व्यवस्था या आदिवासियों की समस्या नहीं है। यह एक खास तरह का आतंकवाद है, जिसका अपना कारोबार 1500 करोड़ रुपए का है। 2014 में मोदी सरकार केंद्र में आई थी, तब से लेकर 2017 के मौजूदा वक्त तक 269 जवान ‘शहीद’ हो चुके हैं। वर्ष 2005 से अब तक कुल 1910 जवान ‘शहीद’ हो चुके हैं। लेकिन अब नए सिरे से रणनीति तय होगी कि नक्सलियों से कैसे निपटना है! झारखंड के एक इलाके में जाना हुआ। वहां एक सरकारी स्कूल का भवन बन रहा था। इलाका नक्सल प्रभाव का था। हैडमास्टर से पूछा, तो नाम का खुलासा न करने की शर्त पर, डरते-डरते, उन्होंने बताया कि केंद्र या राज्य सरकार से जो फंड मिलता है, नक्सली खुलेआम आते हैं और 25 फीसदी हिस्से की मांग करते हैं। न देने या टालमटोल करने पर वे हमें मार देते हैं और भवन का निर्माण भी करने नहीं देते। हार कर हमें उन्हें पैसा देना पड़ता है। छत्तीसगढ़ में आंगनबाड़ी के भवनों को नक्सली पक्का नहीं बनने देते। उनकी आशंका है कि उन भवनों की छतों पर सीआरपीएफ के कैंप बना दिए जाएंगे। उससे सुरक्षाकर्मी चारों ओर, दूर-दूर तक नक्सलियों के सुराग हासिल कर लेंगे और फिर संगठित होकर वे हमले कर सकते हैं। 1967 में शुरू किए गए नक्सलवाद के कई रूप हैं। गांवों और जंगलों में रहने वाले लोग उनसे नहीं डरते। देश के करीब 70 जिलों में नक्सलवाद का विस्तार काफी है। फिर भी नक्सली इलाकों में साइकिल चलाती लड़कियों को देखा जा सकता है। नक्सली बुनियादी तौर पर ऐसे निर्माणों के खिलाफ हैं, जिनके जरिए सुरक्षा बल अपने हमलों की रणनीति को अंजाम दे सकते हैं। छत्तीसगढ़ में जिस सड़क के आसपास हमला किया गया, उसके करीब 56 किलोमीटर निर्माण में अभी तक 128 जवान ‘शहीद’ हो चुके हैं। आखिर यह सिलसिला कब तक जारी रहेगा कि जवान मरते रहें और नक्सली गोलियां दागते रहें? आखिर ऐसे नक्सली इलाकों में सेना को तैनात क्यों नहीं किया जाता? सवाल यह भी है कि हमारा स्थानीय खुफिया तंत्र इतना नाकाम क्यों है और पुलिस सुरक्षा बल से सूचनाएं साझा क्यों नहीं करती? ग्रामीण नक्सलियों की ढाल क्यों बनते रहे हैं? क्या वे सरकार से नाराज हैं या गांव में रहते हुए ऐसा करना उनकी मजबूरी है? दरअसल 6 अप्रैल, 2010 को छत्तीसगढ़ के ही दंतेवाड़ा इलाके में नक्सलियों ने ऐसा ही हमला किया था, जिसमें सीआरपीएफ के ही 76 जवान ‘शहीद’ हुए थे। उसके बाद सुकमा का यह हमला दूसरा बड़ा हमला है। लिहाजा एक सवाल उठाया जा रहा है कि क्यों न नक्सलियों पर सर्जिकल स्ट्राइक की जाए! बेशक पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक के बावजूद आतंकवाद कम नहीं हुआ, लेकिन नक्सलवाद जिन राज्यों में भी खत्म किया गया, वहां हमलावर होकर ही सख्त कार्रवाई करनी पड़ी। दरअसल यह आदिवासी और किसानों के संघर्ष का आंदोलन भी नहीं है। बिहार के करीब 30 जिले नक्सल प्रभावित हैं। उनमें गया जिला भी है, जहां आदिवासी नगण्य हैं। इसी तरह झारखंड के 28 में से चार जिलों में ही आदिवासियों की ज्यादा आबादी है। इन राज्यों में नक्सलवाद जिंदा क्यों रहा है? बहरहाल गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने 10 मई को नक्सल प्रभावी 10 राज्यों की बैठक दिल्ली में बुलाई है। उनके मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव मौजूद रहेंगे। सीआरपीएफ के 76 जवान ‘शहीद’ होने के बाद भी तत्कालीन गृह मंत्री चिदंबरम ने लंबी-चौड़ी रणनीति तैयार कराई थी, लेकिन नक्सली हमले जारी रहे हैं, लिहाजा इस बार रणनीति कुछ सख्त बननी चाहिए, ताकि नक्सलियों को मार कर ‘मिट्टी’ किया जा सके। अब नक्सली इलाके की लगाम राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने अपने हाथ में ली है। देखते हैं कि नई रणनीति क्या बनती है और कितनी प्रभावी साबित होती है?

विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं? निःशुल्क रजिस्टर करें !


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App