वर को साधु का भेस बनाकर भाभियों से लेनी पड़ती है भिक्षा

By: May 10th, 2017 12:05 am

जोगटू प्रथा में वर को उसके कुछ साथियों सहित साधु का भेस धारण कर भाभियों तथा चाचियों से भिक्षा लेनी होती है। इस भिक्षा को प्राप्त कर अलग-अलग सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थलों के नाम पर वहां बैठे पंडित के पास जमा करवाया जाता है…

रीति-रिवाज व संस्कार

शांति पूजन (नधार या मायने) : विवाह के पूर्व दिन सायंकाल को वर या वधु के मामें अपने गांव वालों सहित विवाह समारोह में शामिल होने जब विवाह वालों के घर आते हैं, तो उनका गांव से बाहर तिलक हार आदि से स्वागत किया जाता है। शक्कर लड्डू से मुंह मीठा करवा कर बाजे सहित घर लाया जाता है, इस प्रथा को मायने या नंधार भी कहते हैं। कई क्षेत्र में इसे तोरण-वेद या तोरन बनायक, या नानकियारी भी कहते हैं।

तेला लापन : केवल सौभाग्यवती स्त्रियां वर और कन्या को गणपति पूजन के बाद निश्चित समय में बटना (उबटन, हरिता, दही तेल का मिश्रण) आदि लगाकर दुर्वांकुरों से तेल डालती हैं। सारे शरीर में बटना लगाया जाता है। वर की भाभियां इस अवसर पर खूब छेड़छाड़ करती हैं। महिलाएं मंगल गीत गाती हैं। नाच गाना भी होता है। इसी अवसर पर श्रावटू (बांस का एक पात्र) में जौ रोपने व स्नान से बचे जल से सींचने की प्रथा है। इस प्रथा से शरीर का सौंदर्य वर्द्धन होता है। प्रदेश के कुछ भागों में इस प्रथा में पुरुषों के भी तेल डालने का रिवाज है।

जोगटू : इस प्रथा में वर को उसके कुछ साथियों सहित साधु का वेश धारण कर भाभियों  तथा चाचियों से भिक्षा लेनी होती है। इस भिक्षा को प्राप्त कर अलग-अलग सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थलों के नाम पर वहां बैठे पंडित के पास जमा करवाया जाता है। इस संस्कार के अनुसार वर के पास सांसारिक क्रियाओं से दूर रहने का यह आखिरी मौका होता है।

ग्रह शांत : जोगटू के बाद स्नान के पश्चात वर या कन्या तथा उनके माता-पिता को साथ बिठाकर शांत का पाथा ठाकरी (लगभग दो किलो कनक या मक्की और आधा किलो चावल ठाकरी में) और उस पर कुछ रुपए रखकर कुल देवता को अर्पण करके शांत आरंभ होती है। गणपति पूजन, नवग्रह पूजन, हवन आदि करवा कर मामा शांति पर तीन या पांच कन्याओं के पैर धुला कर भोजन करवाकर दक्षिणा देता है। इस अवसर पर कई इलाकों में उखल मूल प्रथा भी प्रचलित है, जिसमें कन्या या वर से उखल में मूसल द्वारा कुछ धान कूटने का उपक्रम किया जाता है। इसी समय कन्याओं द्वारा सारे घर में छापे गुलाली रंगे हाथ लगाने का पूरे प्रदेश में प्रचलन है।

सुहाग पिटारी भरना : वर पक्ष में ग्रह शांति के बाद पुरोहित एवं परिवार के बुजुर्गों के साथ सुहाग पिटारी (सौभाग्य पेटिका) भरने की प्रथा है। एक नए ट्रंक में मौली, शक्कर, मेवे, मेहंदी, जेवर, वस्त्र, लग्न पटका, लग्न दान, काला छड़ा, पाठा मुंदी सिंदूर आदि रखे जाते हैं। उसे ताला लगाकर उसकी चाबी जिम्मेदार व्यक्ति को सौंप दी जाती है। लाल या पीले वस्त्र से ट्रंक को बांधकर तैयार रखा जाता है।          -क्रमशः

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