शब्द वृत्ति

By: May 24th, 2017 12:05 am

चारा बाबू

कसकर चूसा प्रांत को, जैसे लैमन जूस,

केवल चारा ही चरा, कभी न खाई घूस।

अति दरिद्र अति दीन हैं, फिरते खाली पेट,

तन पर बस बनियान है, कहते हो क्यों सेठ।

आधी दिल्ली आपकी, फिर भी हैं लाचार,

अब तो अपना  बंद है चारे का व्यापार।

पशु की पसली चमकती, फूल रही है सांस,

नायक घास पचा गया, पेट मिला है खास।

सौ-सौ चूहे निगलकर, बिल्ली हज को जाए,

शर्मा अब गूंगा बना, क्या दे अपनी राय।

डा. सत्येंद्र शर्मा, चिंबलहार, पालमपुर

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