शैवमत के अनुयायी थे औदुंबर

By: May 10th, 2017 12:05 am

सिक्कों पर शासक का नाम, औदुंबर और महादेवस शब्द अंकित हैं। सिक्कों पर महादेव शब्द का उल्लेख हुआ है, उससे लगता है कि औदुंबर शैवमत के अनुयायी थे और उन्होंने अपना राज्य और प्रशासन अपने आराध्य देव के प्रति समर्पित किया था…

गणराज्य व्यवस्था

औदुंबर- कुनिंदों के साथ औदुंबरों का भी प्रायः नाम आता है। पाणिनी ने अपनी अष्टाधायायी में उनका उल्लेख ‘राजन्य वर्ग’ में किया जाता है, जिसका अर्थ यह है कि उस समय वे गणराज्य के रूप में स्थापित थे। महाभारत और वृहत्संहिता में भी उनका उल्लेख आया है, जहां उन्हें उत्तर भारत की जातियों में से दिखाया गया है। औदुंबरों से संबंधित सर्वाधिक ज्ञान हमें उनके सिक्कों से प्राप्त होता है। इनके सिक्के प्रमुखतः कांगड़ा जिला के ज्वालामुखी, पठानकोट और होशियारपुर में मिले हैं। इन्हीं खोजों के कारण औदुंबरों को कांगड़ा, गुरदासपुर और होशियारपुर क्षेत्रों का प्राचीन शासक माना जाता है। कनिंघम का कथन है कि वर्तमान नूरपुर क्षेत्र का प्राचीन नाम दहमेरी (या धमेरी) था, जिसका यह नाम औदुंबरों के कारण पड़ा था। कनिंघम को पठानकोट में औदुंबरों के सिक्के यूनानी और अन्य भारतीय राजाओं के सिक्कों के साथ मिले थे। वृहत्संहिता में भी औदुंबरों के क्षेत्र की यही स्थिति बताई गई है। वहां उन्हें रावी से उत्तर-पूर्व क्षेत्र का वासी बताया गया है, परंतु प्रो. जगन्नाथ आदि विद्वान औदुंबरों को बहुत बड़े क्षेत्र के शासक मानते हैं। उनके अनुसार औदुंबरों का क्षेत्र तक्षशिला से लेकर गंगा वादी में शाकला, अग्रोदका और रोहितक तक राजमार्ग के साथ-साथ फैला हुआ था। इस तरह वे पहाड़ों और मैदानों के लोगों के बीच के क्षेत्र में रहने वाले थे, परंतु केवल सिक्कों की खोज के आधार पर उन्हें तक्षशिला तक ले जाना उपयुक्त नहीं लगता। औदुंबर बहुत बड़े व्यापारी थे और इस व्यापार में उनके सिक्के दूर क्षेत्र तक पहुंचने की संभावना रखते थे। औदुंबरों के सिक्कों से उनके शासन और जीवन के बारे में पता चलता है। इनके सिक्कों को तीन श्रेणियों में बांटा जाता है। हालांकि सभी तरह के सिक्कों में कुछ विशिष्ट साम्यताएं हैं यथा सिक्कों के एक ओर हाथी, अदुंबर वृक्ष, चक्र सर्प और प्राकृत भाषा और ब्राह्मी तथा खरोष्ठी लिपियों में शासक का नाम, औदंबर शब्द और मघदेवस शब्द अंकित हैं। दूसरी ओर ऋषि विश्वमित्र का चित्र, तीन मंजिला मंदिर, स्वास्तिक चिन्ह, त्रिशूल, नंदी तथा नांदीपाद उकेरित हैं, परंतु मित्रता के आधार पर पहली श्रेणी वर्गाकार तांबे के सिक्के हैं, जो पूर्णतया भारतीय शैली में बने हैं।  विद्वानों ने इन्हें ईसा पूर्व प्रथम शती का माना है। इनमें रुद्रदास और शिवदास के सिक्के प्रमुख हैं। सिक्कों पर शासक का नाम, औदुंबर और महादेवस शब्द अंकित हैं। सिक्कों पर महादेव शब्द का उल्लेख हुआ है, उससे लगता है कि औदुंबर शैवमत के अनुयायी थे और उन्होंने अपना राज्य और प्रशासन अपने आराध्य देव के प्रति समर्पित किया था। दूसरे प्रकार की मुद्राओं में विदेशी तथा बाहरी प्रभाव लक्षित होता है।   – क्रमशः

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