संस्कृति सहेजने की राह दिखाता लाहुल-स्पीति

By: May 15th, 2017 12:05 am

कुल्लू-प्रदेश के जनजातीय जिला लाहुल-स्पीति ने अपनी संस्कृति को सहेजन के लिहाज से प्रदेश के समक्ष ही नहीं बल्कि पूरे देश के सामने भी एक मिसाल कायम की है। प्रदेश के अन्य जिलों की संस्कृति आधुनिकता की भेंट चढ़ती जा रही है, लेकिन सूबे का जनजातीय जिला लाहुल-स्पीति अभी तक अपनी संस्कृति को संजोए रखने में बहुत हद तक कामयाब रहा है। लाहुल-स्पीति की महिलाएं भारत के किसी भी कोने में रहती हों लेकिन अपना पहनावा नहीं भूलती हैं। लाहुल-स्पीति जिला संस्कृति पर कायम रहने का खुलासा प्रदेश विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग के निदेशक की सर्वे रिपोर्ट से हुआ है।

विश्वविद्यालय पर्यटन विभाग के निदेशक डा.चंद्र मोहन परशीरा के अनुसार ‘पूरे प्रदेश में एक सांस्कृतिक सर्वे किया गया है। प्रदेश के अन्य जिलों की संस्कृति में काफी बदलाव आ गया है। लेकिन जनजातीय जिला लाहुल-स्पीति अपनी संस्कृति को संजोए हुए है।’  सर्वे में जो रिपोर्ट तैयार हुई है,  उसमें पहनावा, रीति रिवाज सहित अन्य संस्कृति से जुडे़ पहलुओं को देखा गया है। लाहुल-स्पीति जिला के लोग अपना पहनावा नहीं भूल पाए हैं। जनजातीय जिला लाहुल-स्पीति से काफी संख्या में महिलाएं सरकारी नौकरी कर रही हैं । यही नहीं, लाहुल की बेटियां आधुनिक माने जाने वाले कार्यों को संपादित कर रही हैं, समाज सेवा में अपनी भागीदारी निभा रही हैं और गायकी में भी अपना नाम कमा रही हंै। इस सहभागिता के बावजूद गृहिणी महिलाओं समेत ये सभी महिलाएं अपने जिला का पहनावा पहनने में हिचकचाती नहीं है। उन्हें अपने पहनावे से प्यार हैं। वहीं लाहुल-स्पीति जिला के पुरुष भी अपने साज सजा को नहीं भूल पाए हैं।

लाहुल-स्पीति में नहीं बजते डीजे : प्रदेश में शादी-विवाह या अन्य पार्टी समारोह बिना डीजे की धुनों के नहीं मनाए जाते। हालांकि इन समारोह में वाद्य यंत्र किए जाते हैं लेकिन डीजे की धुनों पर लोग नाचते हुए ज्यादा मनोरंजन करते दिख रहे हैं। लेकिन लाहुल-स्पीति जिला में अभी डीजे सिस्टम नहीं पहुंच पाया है। ये पुराने वाद्य यंत्रों पर कार्यक्रम को बखूबी  निभाते हैं।

नगाड़ा-बांसुरी पर नाचते हैं लाहुलवासी : लाहुल-स्पीति जिला के लोग अपने पुरातन वाद्य यंत्र बांसुरी और नगाड़ा की धुनों पर अपना मनोरंजन करते हैं। लाहुल-स्पीति की बांसुरी वाद्य यंत्रों में प्रमुख है। पढ़े-लिखे लोग अपने पुरातन वाद्य यंत्रों को बजाकर अपनी संस्कृति का सुकून  प्राप्त करते हैं। यहां पर बांसुरी वादन की परंपरा लंबे समय से यथावत बनी हुई है।

गेयटी थियेटर में बांसुरी वादकः शिमला गेयटी थियेटर में भी गत वर्षों 28 के करीब लाहुल-स्पीति जिला के बांसुरी वादक सम्मानित हुए हैं। बांसुरी वादकों ने  बांसुरी में लाहुल-स्पीति जिला के 40 पुराने रागों को कायम रखा है। जिला लाहुल-स्पीति की गाहर वैली में इन दिनों फसल बिजाई के बाद अच्छी फसल की कामना व खुशहाली और समृद्धि के लिए बुम्सकोर मनाया जा रहा है। इसके तहत गाहर घाटी के अलग-अलग हिस्सों में लामाओं द्वारा विशेष पूजा-अर्चना के बाद महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं से संबंधित बौद्ध ग्रंथ की परिक्रमा खेतों में करवाई जा रही है। इलाके के लोग विशेषकर महिलाएं पारंपरिक पहनावे में सज-धज कर वाद्य यंत्र की धुनों के बीच बौद्ध पवित्र ग्रंथ को लेकर परिक्रमा कर रही हैं। लामाओं के अनुसार महात्मा बुद्ध इसी महीने जन्मे और बुद्धत्व तथा निर्वाण की प्राप्ति के लिए बौद्ध पंचांग को भोटी भाषा में लिखा था। परिक्रमा के दौरान इलाके की खुशहाली व समृद्धि की कामना की जाती है।

वाद्य यंत्र : लाहुल-स्पीति को छोड़कर प्रदेश के अन्य जिलों में वाद्य यंत्रों में बदलाव आया है। पड़ोसी जिला कुल्लू की बात करें तो यहां पर पारंपरिक वाद्य यंत्रों को छोड़कर बैंड- बाजे की धुनों पर शादियों में नाच गान हो रहा है, लेकिन लाहुल-स्पीति जिला में अभी तक पारंपरिक वाद्य यंत्र हैं, जिसमें मरूबाव, जुमड़, ग्राम्यड़, बांसुरी आदि वाद्य यंत्र बजाए जाते हैं।

बेटियों के पैदा होने पर जश्न : लाहुल-स्पीति जिला में कस्टमरी लॉ के तहत बेटियों को पैतृक संपति में अधिकार नहीं है, जिसके चलते इस जिला को कई बार घृणित नजरों से भी देखा गया है कि वहां के पारंपरिक कानून के तहत बेटियों का सम्मान नहीं होता है, लेकिन ये सारी बातें उस समय तथ्य से परे लगती हैं, जब इस बात का खुलासा होता है कि लाहुल-स्पीति में बेटियों के पैदा होने पर उत्सव व जश्न मनाया जाता है। बेटियों को पैतृक संपत्ति में अधिकार न होने के पीछे लाहुल-स्पीति जिला के लोगों के पास कई धार्मिक व भौगोलिक तथ्य हैं।

हालडा और फागली त्यौहार : जनजातीय जिला लाहुल-स्पीति में हालडा और फागली उत्सव को बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। लाहुल-स्पीति के लोग देश के किसी भी स्थान पर रहते हों, लेकिन वहां बैठे भी परंपरा का निर्वाहन जरूर करते हैं। एक माह तक फागली का त्यौहार मनाया जाता है। वहीं, हालडा उत्सव को भी इसी तरह से मनाते हैं।

मोहर सिंह पुजारी, कुल्लू

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