समसामयिकी

By: May 10th, 2017 12:07 am

सार्क उपग्रह जीसेट-9

CEREERश्रीहरिकोटा के सतीश धवन स्पेस सेंटर से लांच हुए इस सेटेलाइट को पीएम मोदी ने सार्क देशों के लिए एक गिफ्ट करार दिया है। सेटेलाइट लांचिंग के बाद श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरीसेना, अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ घनी, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, भूटान के प्रधानमंत्री तेशेरिंग तोगबे, मालदीव के राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन और नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड ने पीएम मोदी को बधाई भी दी। पीएम मोदी पहले इस प्रोजेक्ट को सार्क सेटेलाइट नाम देना चाहते थे, लेकिन बाद में पाकिस्तान के दबाव की वजह से इसका नाम बदलना पड़ा। इस सेटेलाइट के लांच से दक्षिण एशियाई देशों के बीच संपर्क को बढ़ावा मिलेगा। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन द्वारा निर्मित नवीनतम संचार उपग्रह जीसेट-9 को एसएएस रोड पिग्गीबैक कहा जाता है, जिसे 50 मीटर लंबे राकेट स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन वाले जीएसएलवी से प्रक्षेपित किया गया है। आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से जीएसएलवी एफ-9 को प्रक्षेपित किया गया और इसे जीसे-9 से कक्षा में स्थापित किया गया। सेट-9  2230 किलोग्राम की वहन क्षमता वाला भूस्थतिक संचार उपग्रह है, जो केयू बैंड में दक्षिण एशियाई देशों को विभिन्न संचार सेवा मुहैया कराएगा।  इस सेटेलाइट की मदद से प्राकृतिक संसाधनों की मैपिंग की जा सकेगी, टेली मेडिसिन, शिक्षा में सहयोग बढ़ेगा। भूकंप, चक्रवात, बाढ़, सुनामी की दशा में संवाद लिंक का माध्यम होगी। यह अंतरिक्ष आधारित टेक्नोलॉजी के बेहतर इस्तेमाल में मदद करेगी। इसमें भागीदारी देशों के बीच हॉटलाइन उपलब्ध करवाने की भी क्षमता है। इस सेटेलाइट को कूटनीतिक स्तर पर भारत के मास्टर स्ट्रोक की तरह देखा जा रहा ह। इसरो के मुताबिक इसके जरिए सभी सहयोगी देश अपने-अपने टीवी कार्यक्रमों का प्रसारण कर सकेंगे। किसी भी आपदा के दौरान उनकी संचार सुविधाएं बेहतर होंगी। साउथ एशिया सेटेलाइट  की लागत करीब 235 करोड़ रुपए है जबकि सेटेलाइट के लांच समेत इस पूरे प्रोजेक्ट पर भारत 450 करोड़ रुपए खर्च करने जा रहा है। अगानिस्तान ने अभी साउथ एशिया सेटेलाइट  की डील पर दस्तखत नहीं किए हैं, क्योंकि उसका अगानसेट अभी काम कर रहा है। यह भारत का ही बना एक पुराना सेटेलाइट है, जिसे यूरोप से लीज पर लिया गया है। 2015 में आए भूकंप के बाद नेपाल को भी एक संचार उपग्रह की जरूरत है, नेपाल ऐसे दो संचार उपग्रह हासिल करना चाहता है। अंतरिक्ष से जुड़ी तकनीक में भूटान काफी पीछे है। इसलिए साउथ एशिया सेटेलाइट  का उसे बड़ा फायदा होने जा रहा है। स्पेस टेक्नोलॉजी में बांग्लादेश ने अभी कदम रखने शुरू किए ही हैं। साल के अंत तक वह अपना खुद का बंगबंधु -1 कम्युनिकेशन सेटेलाइट छोड़ने की तैयारी में है। श्रीलंका 2012 में चीन की मदद से अपना पहला संचार उपग्रह लांच कर चुका है। उसने चीन की मदद से सुप्रीम सेट उपग्रह तैयार किया था, लेकिन साउथ एशिया सेटेलाइट  से उसकी क्षमताओं में इजाफा होगा। स्पेस टेक्नोलॉजी के नाम पर मालदीव खाली हाथ है। ऐसे में साउथ एशिया सेटेलाइट  के जरिए उसे मिली मदद बेहद फायदेमंद साबित होगी।

विवाह प्रस्ताव की तलाश कर रहे हैं? निःशुल्क रजिस्टर करें !


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App