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By: May 28th, 2017 12:05 am

बालकृष्ण भट्ट

जन्मदिवस ३ जून , 1844

बालकृष्ण भट्ट जी हिंदी साहित्य के शीर्ष निर्माताओं में से एक थे। आज की गद्य प्रधान कविता का जनक इन्हें माना जाता है। बालकृष्ण भट्ट एक सफल नाटककार, पत्रकार, उपन्यासकार और निबंधकार थे। भट्ट जी ने निबंध, उपन्यास और नाटकों की रचना करके हिंदी को एक समर्थ शैली प्रदान की। यह पहले ऐसे निबंधकार थे, जिन्होंने आत्मपरक शैली का प्रयोग किया था। बालकृष्ण भट्ट को हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी, बंगला और फारसी आदि भाषाओं का अच्छा ज्ञान था। इन्होंने हिंदी साहित्य की विविध रूपों में सेवा की। लगभग बत्तीस वर्षों तक ‘हिंदी प्रदीप’ का संपादन कर भट्टजी अपने विचारों का व्यक्तिकरण करते रहे। यह ‘भारतेंदु युग’ की देदीप्यमान मौन विभूति होने के साथ-साथ ‘द्विवेदी युग’ के लेखकों के माग-दर्शक और प्रेरणा स्रोत भी रहे।

जन्म तथा शिक्षा

बालकृष्ण भट्ट जी का जन्म प्रयाग आधुनिक इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में 3 जून, 1844 ई. में हुआ था। इनके पिता का नाम पंडित वेणी प्रसाद था। पंडित वेणी प्रसाद की शिक्षा की ओर विशेष रुचि रहती थी, साथ ही इनकी पत्नी भी एक विदुषी महिला थीं। अतः बालकृष्ण भट्ट की शिक्षा पर बाल्यकाल से ही विशेष ध्यान दिया गया। प्रारंभ में इन्हें घर पर ही संस्कृत की शिक्षा दी गई और 15-16 वर्ष की अवस्था तक इनका यही क्रम रहा। इसके उपरांत इन्होंने माता के आदेशानुसार स्थानीय मिशन के स्कूल में अंग्रेजी पढ़ना प्रारंभ किया और दसवीं कक्षा तक अध्ययन किया। विद्यार्थी जीवन में इन्हें बाईबिल परीक्षा में कई बार पुरस्कार भी प्राप्त हुए। मिशन स्कूल छोड़ने के उपरांत यह पुनः संस्कृत, व्याकरण और साहित्य का अध्ययन करने लगे।

व्यावसायिक जीवन

कुछ समय के लिए बालकृष्ण भट्ट ‘जमुना मिशन स्कूल’  में संस्कृत के अध्यापक भी रहे, पर अपने धार्मिक विचारों के कारण इन्हें पद त्याग करना पड़ा। विवाह हो जाने पर जब इन्हें अपनी बेकारी खलने लगी। साहित्य की दृष्टि से भट्ट जी के निबंध अत्यंत उच्च कोटि के हैं। इस दिशा में उनकी तुलना अंग्रेजी के प्रसिद्ध निबंधकार चार्ल्स लैंब से की जा सकती है। गद्य काव्य की रचना भी सर्वप्रथम भट्ट जी ने ही प्रारंभ की थी। इनसे पूर्व तक हिंदी में गद्य काव्य का नितांत अभाव था।

भट्टजी प्रयाग से ‘हिंदी प्रदीप’ मासिक पत्र का निरंतर घाटा सहकर 32 वर्ष तक उसका संपादन करते रहे। ‘हिंदी प्रदीप’ बंद होने के बाद ‘हिंदी शब्दसागर’ का संपादन कार्य भी इन्होंने कुछ समय तक देखाए पर अस्वस्थता के कारण इन्हें यह कार्य छोड़ना पड़ा। बालकृष्ण भट्ट का निधन 20 जुलाई, 1914 ई. में हुआ। लेखकों में उनका सर्वोच्च स्थान है। भट्टजी ने नाटककार, निबंधकार, लेखक, उपन्यासकार और अनुवादक आदि विभिन्न रूपों में हिंदी की सेवा की और उसे धनी बनाया।

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