हम शक्तिशली भी तो बनें

By: May 20th, 2017 12:05 am

श्रीराम शर्मा

जीवन और संसार की सतत क्रियाशीलता, कर्म की विभिन्न अभिव्यक्तियां, सृष्टि का समस्त कार्य, व्यापार शक्ति  के संस्पर्श से ही संचालित है। शक्ति के बिना संसार और जीवन की कल्पना तक भी नहीं की जा सकती। दूसरे शब्दों में शक्ति ही जीवन है। शक्ति का अभाव ही मृत्यु है। शक्ति का स्पर्श पाकर जड़-तत्त्व भी महत्त्वपूर्ण बन जाते हैं। निर्जीव कोयला अग्नि के स्पर्श से उस का तेजोमय रूप धारण कर लेता है। ग्रह नक्षत्र सब अपनी-अपनी जगह पर आकाश में अधर में लटकते हुए भी शक्ति के कारण ही स्थिर हैं। यदि शक्ति का असंतुलन पैदा हो जाए, तो एक दूसरे से टकरा जाएं। समस्त ब्रह्मांड ही नष्ट-भ्रष्ट हो जाए। शक्ति का सहारा लेकर जड़ वस्तुएं भी गतिशील बन जाती हैं। चेतन शक्ति के कारण पंच तत्त्व का बना मानव शरीर यंत्र क्या-क्या गजब के काम कर दिखाता है। बिजली की शक्ति से लोहे, तांबे के बने पंखे, मोटर, रेल, बल्ब आदि कितने महत्त्वपूर्ण कार्य संपन्न करते हैं? शक्ति असंभव को भी संभव कर देती है। सामान्य से सामान्य प्रतिभा भी शक्ति का संस्पर्श प्राप्त करके असाधारण बन जाती है। प्रकृति के प्रत्येक स्पंदन में, संसार के प्रत्येक कार्य व्यापार में, मानव जीवन के हर एक स्वर में, शक्ति के बोल सुनाई पड़ते हैं। वृक्षों की हरियाली, उनका फलना-फूलना, वर्षा का होना, मेघों का गर्जना, बिजली का चमकना, झरनों का कल-कल नाद, पक्षियों का कलरव, मनुष्य का प्रत्येक कार्य शक्ति का ही परिणाम है। शक्ति के अभाव में प्रकृति निर्मित महत्त्वपूर्ण मानव शरीर यंत्र भी बेकार हो जाता है। मानव जीवन में शक्ति एक नैतिक सद्गुण है जिसे प्राप्त किया जा सकता है, बढ़ाया जा सकता है और उसके द्वारा महत्त्वपूर्ण कार्यों का संपादन भी किया जा सकता है। इसी तरह शक्ति नष्ट भी हो जाती है। वैसे शक्ति का कोई स्थूल रूप तो है नहीं, जो उसे पकड़ कर संग्रह कर लिया जाए। मूलभूत शक्तियां सूक्ष्म ही होती हैं, जिन्हें न देखा जा सकता है, न पकड़ा जा सकता है। विद्युत देखी नहीं जा सकती, किंतु बल्ब, पंखे एवं अन्य उपकरणों में उसका सक्रिय स्वरूप देखा जा सकता है। अभिव्यक्ति के माध्यम से कर्म के रूप में ही शक्ति का अस्तित्व प्रकाश में आता है। जहां गति है, कर्मशीलता है वहीं शक्ति का निवास है। मृत शरीर में कोई स्पंदन नहीं होता, अतः वहां पर शक्ति नहीं है। शक्ति का स्रोत गतिशीलता, कर्म में से ही फूटकर निकलता है। अकर्मण्यता, जड़ता से शक्ति के स्रोत अवरुद्ध हो जाते हैं, मंद पड़ जाते हैं और एक दिन पूर्णतः बंद भी हो जाते हैं। किंतु कर्मरत मनुष्य नित्य नई शक्ति प्राप्त करता जाता है। उसके शक्ति स्रोत अजस्र रूप से प्रवाहित होते रहते हैं। वह अपने बहुत से काम पूरे कर चुकता है तब तक अकर्मण्य व्यक्ति अपनी कठिनाइयों की ही चर्चा करता हुआ पड़ा रहता है और कुछ नहीं कर पाता। अकर्मण्य के सोकर उठने से पूर्व ही कर्मवीर बहुत कुछ कर लेता है। उसकी शक्तियां अजय धारा की तरह नित्य निरंतर बहती रहती है। बेकार पड़ी रहने वाली भूमि बंजर और अनुपजाऊ इसके विपरीत समय पर फसल उपजाते रहने पर वह उर्वर, उपजाऊ बनी रहती हैं। काम में आते रहने वाली मशीन काफी समय तक सक्षम बनी रहती है जबकि बेकार पड़ी रहने वाली कुछ ही समय में जंग आदि लग कर अनुपयोगी बन जाती है।

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