हिंसक छात्रों का परिसर

By: May 23rd, 2017 12:05 am

ये छात्र शिक्षा के नहीं और न ही हिमाचल विश्वविद्यालय शिक्षा के कारण चर्चा में रहा है। हो सकता है हम आज के पत्थरबाजों को कल के नेता के रूप में स्वीकार करें या इनकी मातृ पार्टियां, विश्वविद्यालय कैंपस में हिंसक छात्रों के बीच अपना भविष्य देख रही हों। जो भी हो शिमला विश्वविद्यालय का नाम बदनाम हो रहा है और जब शिक्षा का रोम जल रहा है, तो हमें बांसुरी बजाने का हक किसने दिया। अपने हिंसक कारण से विश्वविद्यालय की नाक बार-बार शिक्षा जगत में कटी है, लेकिन तिकड़मी प्रशासन या तो कुलपतियों को सेवा विस्तार में देखता है या नियुक्तियों में सियासी रंग पहचाने जाते हैं। शैक्षणिक स्तर की निकलती हवा ने हिमाचली प्रतिभा को इस कद्र बहिष्कृत किया कि अब योग्यता बाहरी राज्यों की ओर निकल गई। परीक्षा परिणाम ने साबित किया कि पंजाब, पंजाबी, कुरुक्षेत्र व गुरुनानक देव विश्वविद्यालयों में हिमाचली छात्र टॉप कर रहे हैं, तो हिमाचल में क्या पत्थरबाज ही बचेंगे और यह नासूर शिक्षा के फलक को कब तक पीड़ाजनक बनाए रखेगा। क्या शिमला विश्वविद्यालय परिसर अपना औचित्य हार गया या इसकी चीर फाड़ करने का वक्त आ गया है। हमारी राय है कि शिमला विश्वविद्यालय का वजन कम करते हुए, इसके साथ तीन सक्षम अध्ययन केंद्रों का विस्तार करना होगा। भले ही प्रशासनिक प्रबंधन के नजरिए से शिमला की उपयोगिता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता हो, लेकिन शिक्षा के महत्त्व को अब धर्मशाला के अलावा दो अन्य अध्ययन केंद्रों में विस्तारित करना होगा, ताकि अध्ययन के विषयों में छात्र समुदाय प्रासंगिक रहे। मंडी में क्लस्टर विश्वविद्यालय की रूपरेखा में जो परिकल्पना की गई है, उसे तुरंत साकार करना होगा, बल्कि इसी तरह के कुछ और प्रयोग अन्य स्थलों के केंद्र में भी करने होंगे। यह साबित भी हो रहा है कि हिमाचल का छात्र समुदाय अब शिमला परिसर से भयभीत होकर नए विकल्प चुन रहा है। इसी प्रदेश में एक दशक से भी कम समय में आईआईटी मंडी अगर शिक्षा के उच्च स्तर पर पहुंच गया, तो शिमला विश्वविद्यालय में मक्कारी कौन कर रहा है। हैरानी यह भी कि रूसा की रखवाली कर रहा संस्थान इसे सही ढंग में अमल में लाने में नाकामयाब रहा। आरोपों की जद में बैठे कुलपति महोदय को एक बार सेवा विस्तार किस आधार पर मिला और अब वह विश्वविद्यालय की किस निपुणता पर एक और पारी खेलना चाहते हैं। जांच केवल छात्रों की ही क्यों हो और हिरासत में यही क्यों आएं। परिसर के मजमून में राजनीति किसने भरी और कौन छात्रों के कान में राजनीतिक मंत्र फूंकते हैं, यह भी तो जांच हो। आप एक बार हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के प्रदेश की चारों दिशाओं में परिसर स्थापित करके तो देखिए कि किस तरह हिंसक चेहरा गायब होता है। शिमला के अलावा धर्मशाला, मंडी व ऊना में परिसर निर्माण से विषय केंद्रित अध्ययन केंद्र चलें, तो स्वच्छंदता को कोई स्थान नहीं बचेगा। शिमला में राजधानी की सियासत को ढो रहे परिसर में वास्तव में शिक्षा का स्थान बचा ही नहीं है, जबकि बिना स्थायी परिसर और तमाम अड़चनों के नवजात केंद्रीय विश्वविद्यालय तक ने अपने लक्ष्यों पर चलना सीख लिया है। सोलन व पालमपुर विश्वविद्यालयों से निकले छात्रों की काबिलीयत का हिसाब बताता है कि राष्ट्रीय स्तर पर किस तादाद में हिमाचली कामयाब हो रहे हैं। केंद्रीय सेवाओं में भी इन दोनों विश्वविद्यालयों से निकले छात्रों ने हिमाचल का नाम रोशन किया, तो शिमला परिसर वास्तव में शिक्षा की नौटंकी है क्या। आश्चर्य यह कि न तो विश्वविद्यालय का प्रशासन खून की इन लकीरों में अपनी जिम्मेदारी का रंग देखता है और न ही राजनीति से बेदखल करने के लिए सरकारों ने कठोर कदम उठाए। छात्र संगठनों में राजनीतिक दरबार तो सजे, लेकिन किसी भी दल ने प्रदेश के युवा का सही मार्गदर्शन नहीं किया। ऐसा लगता है कि विश्वविद्यालय की एक अपनी सत्ता है और इसी धुरी के बीच राजनीति का अनंत है। अतः परिस्थितियां यह मांग करती हैं कि मंडी में शीघ्रातिशीघ्र क्लस्टर यूनिवर्सिटी तथा शिमला विश्वविद्यालय के अध्ययन केंद्रों का क्लस्टर बनाकर मुख्य परिसर सें दादागिरी रोकी जाए।

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