हिमाचली कल्पनाओं का रिसाव

By: May 22nd, 2017 12:05 am

हिमाचली क्षमता और मानव संसाधन का रिसाव अगर कोई मसला नहीं, तो आर्थिक और प्रगति के दस्तावेज बनाते वक्त यह गौर करना होगा कि गाहे-बगाहे हम कितनी संभावना खो रहे हैं। उदाहरण के लिए जब वाकनाघाट में एक उपग्रह नगर की कल्पना हो रही थी, तो संभावना के कक्ष में सूचना प्रौद्योगिकी का एक बड़ा पड़ाव हिमाचल केंद्रित परियोजनाएं बना रहा था। आईटी पार्क की बुनियाद पर हारी कल्पना का रिसाव देखिए कि हिमाचल ने अपने अवसर को चंडीगढ़ के आईटी पार्क के नाम कर दिया। आईटी, पर्यटन और फिल्म शूटिंग के जरिए हिमाचल अपनी आबोहवा का दाम वसूल सकता है तथा यह ऐसी आर्थिकी होगी जो प्रदेश के मानव संसाधन को भी मान्य होगी। दुर्भाग्यवश हर पर्यटक सीजन हमारी नालायकी के मलाल में नकारात्मक प्रचार भी कर रहा है और इस पहलू को नजरअंदाज करके हम सैलानियों की संख्या से प्रफुल्ल्ति नहीं हो सकते। स्वरोजगार से पर्यटन तक पहुंचने की नीति बने, तो सारा उद्योग अपना आचरण बदल सकता है। दरअसल हम हिमाचली विकास व आर्थिकी की नई संभावनाओं में युवा पक्ष को नहीं जोड़ रहे हैं, बल्कि हर दोहन में सियासत का भला हो रहा है। जो युवा कमाने लायक बने, उनके भविष्य के रास्ते या तो प्रदेश में सियासत को पूजने लगे या प्रदेश के बाहर निकलकर मकसद ढूंढा गया। आवश्यकता से अधिक निजी विश्वविद्यालयों या इंजीनियरिंग कालेजों ने हमारी युवा क्षमता को कहां पहुंचाया या इस मानव संसाधान के काबिल प्रदेश कहां बना, इस पर गौर करना होगा। हम कोशिश करते तो आईटी पार्कों की शृंखला में सूचना क्रांति के ध्वजधारक बन जाते, लेकिन अफसोस यह कि एक भी दीया नहीं जला सके। अब एक अन्य संभावना सिने पर्यटन को पंजाब अपने भीतर देख रहा है। कांगड़ा से सटे पंजाब के रणजीत सागर बांध के करीब पंजाब एक ऐसी फिल्म सिटी की रूपरेखा तैयार कर रहा है, जिसके तत्त्वावधान में फिल्मी उद्योग का बुनियादी ढांचा उपलब्ध होगा यानी कल जब यह परियोजना पूरी होगी, तो शूटिंग से जुड़ा तामझाम  इस क्षेत्र की आर्थिकी को चमका देगा। पंजाब के संस्कृति मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू फिल्म सिटी के साथ-साथ वाटर स्पोर्ट्स, गोल्फ पर्यटन व पठानकोट एयरपोर्ट को जोड़कर जिस योजना पर काम कर रहे हैं, उसमें हिमाचली संभावनाओं के बहने की चुनौती है। पाठकों को याद होगा कि ‘दिव्य हिमाचल’ पिछले पंद्रह सालों से गरली-परागपुर के धरोहर महत्त्व के साथ फिल्म सिटी व फिल्म एवं टीवी संस्थान की पैरवी कर रहा है। आश्चर्य यह कि पर्यटन की सलाहकार परिषदों को भी ऐसी संभावना दिखाई नहीं देती। गरली-परागपुर के साथ धरोहर महत्त्व के अनेकों स्थल व पौंग झील के कारण एक विस्तृत सिने पर्यटन की परिपाटी विकसित हो सकती है। प्रदेश के सबसे बड़े गगल एयरपोर्ट के अलावा डलहौजी, चंबा, खजियार, पालमपुर, धर्मशाला व मंडी-कुल्लू घाटियों की मनोरम दृश्यावलियां, फिल्म सिटी की संभावना को गरली-परागपुर के साथ जोड़ती हैं। अगर पंजाब रणजीत सागर बांध के तटीय परिवेश में सिने पर्यटन की क्षमता को बुलंद करता है, तो हिमाचल इस क्षेत्र में अपनी संभावना से पुनः हाथ धो बैठेगा। आश्चर्य यह भी  कि पर्यटन के सलाहकार के रूप में मेजर (सेवानिवृत्त)विजय सिंह मनाकोटिया केवल ब्रांड एंबेसेडर ढूंढने में वक्त जाया करते रहे, जबकि इस उद्योग की संभावना को क्षमता में बदलने का रास्ता पुष्ट करना होगा। सन्नी दियोल पिछले एक महीने से मनाली में डेरा डालकर फिल्म शूटिंग की परिकल्पना में मशगूल हैं तो इसलिए कि इससे बेहतर विकल्प हो नहीं सकता, लेकिन उस दिक्कत को भी समझना होगा जो आवश्यक उपकरणों से सुसज्जित फिल्म प्रोडक्शन की आधारभूत जरूरतों की आशा करती है। इस तरह अगर नवजोत सिंह सिद्धू के सपने साकार होते हैं, तो हिमाचल केवल दृश्यावलियां ही दे पाएगा, जबकि आधारभूत ढांचा पंजाब में फिल्म उद्योग खड़ा कर देगा। फिल्मों के आलावा टीवी के अनेकों कार्यक्रमों को देखते हुए सरकार को सर्वप्रथम गरली-परागपुर में शूटिंग से संबंधित स्टूडियो व आवश्यक मशीनरी उपलब्ध करानी चाहिए। इसी के साथ अगर एक फिल्म एवं टीवी संस्थान भी रूपांतरित हो, तो हिमाचल में एक लघु बालीवुड स्थापित होगा और रोजगार की वास्तविक स्क्रीन पर हिमाचली युवा नायक की भूमिका में रहेगा।

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