हिमाचली किसान-बागबान छाए

By: May 24th, 2017 12:03 am

हरिमन के सेब से महका राष्ट्रपति भवन

newsघुमारवीं —  राष्ट्रपति भवन में बिलासपुर जिला के प्रगतिशील बागबान हरिमन शर्मा के रोपे सेब के पौधों ने फल देना शुरू कर दिए हैं। हरिमन शर्मा की विकसित गर्म जलवायु में फल देने वाली सेब की एचआरएमएन-99 में फल आना शुरू हो गए हैं। अहम बात यह है कि यहां पर रोपे गए सेब के पौधों में 150 से लेकर 200 फ्रूट्स लगे हैं। फलों से लदे सेब के पौधों का फोटो राष्ट्रपति भवन से प्रगतिशील बागबान हरिमन शर्मा को भेजी गई है। जानकारी के मुताबिक घुमारवीं के पन्याला गांव के प्रगतिशील बागबान हरिमन शर्मा ने गर्म जलवायु में उगने वाली सेब की वैरायटी एचआरएमएन-99 के 55 पौधे मार्च, 2015 में राष्ट्रपति भवन में रोपे थे, जिनमें से 18 पौधों में फल आना शुरू हो गए हैं। इससे अब राष्ट्रपति भवन में आने वाले पर्यटक व लोग भी सेब का लुत्फ उठा पाएंगे। राष्ट्रपति भवन में रोपे सेब के पौधों में फल आने के बाद अब यहां पर पर्यटक भी इसका लुत्फ उठा सकेंगे।

15 राज्यों में रोपे पौधों से आए फल

एनआईएफ गुजरात से हरिमन शर्मा को भेजी गई लिस्ट के अनुसार देश भर के राज्यों में रोपे एचआरएमएन-99 वैरायटी के पौधों में 15 राज्यों में फल लगने शुरू हो गए हैं, जिनमें केरल, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मणिपुर, गुजरात, नई दिल्ली, राजस्थान, जम्मू, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, हिमाचल व आंध्र प्रदेश शामिल हैं। लिस्ट में किसानों के नाम, पता व मोबाइल नंबर भी हैं।

चंबा के बकरी पालक को राष्ट्रीय सम्मान

पालमपुर —  कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के वित्तीय सहयोग से चल रही एक परियोजना के अंतर्गत बकरी पालक किसान कर्म चंद को करनाल स्थित राष्ट्रीय पशु प्रजनन संसाधन ब्यूरो ने ‘नस्ल उद्धारक सम्मान-2016’ से नवाजा है। अुनसंधान परिषद पशुपालक को दस हजार रुपए नकद देकर सम्मानित करेगी। कृषि विश्वविद्यालय के डा. जीसी नेगी पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान महाविद्यालय के आनुवांशिकी एवं प्रजनन विभाग में गत छह वर्षों से भेड़ों की नस्ल सुधारने पर अखिल भारतीय समन्वित शोध परियोजना के अंतर्गत एक परियोजना चल रही है। चंबा जिला के ब्रिंगटी दियोल के कर्म चंद को नस्ल संरक्षण व सुधार पर कार्य करने हेतु सम्मान के लिए चुना गया है। वह गद्दी बाहुल जनजातीय क्षेत्र से संबंध रखते हैं और वर्तमान में 389 शुद्ध देशी नस्ल की बकरियों को संभालकर अपना पेशा चला रहे हैं। पिछले छह वर्ष से अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना से जुड़ने के बाद उनकी बकरियां 275 से बढ़कर 389 तक पहुंच गई हैं। इसके अतिरिक्त बकरी के बच्चे का जन्म का भार भी 2.70 किलोग्राम से 3.03 किलो तथा नौ माह के बच्चे का भार 21.65 से बढ़कर 24.02 किलो तक पहुंचाने में सफलता मिली है। नवजात की मृत्यु दर में भी भारी कमी आई है। कर्म चंद के अनुसार यह सब वैज्ञानिक प्रजनन, पोषण तथा समन्वित रखरखाव की जानकारियों व मिली सामग्री से संभव हुआ है, जो कि समय-समय पर परियोजना के अंतर्गत उन्हें हासिल हुई हैं। फलस्वरूप वह बकरी पालन से सालाना लगभग चार से पांच लाख रुपए तक कमा रहे हैं। कुलपति प्रो. अशोक कुमार सरयाल ने कर्मचंद को बधाई दी है, जिसकी मेहनत से विश्वविद्यालय के कार्य को राष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसा प्राप्त हुई है। उन्होंने उपलब्धियों के लिए परियोजना के मुख्य अन्वेषक डा. पीके डोगरा तथा टीम के सदस्यों डा. वरुण, डा. प्रवीण, डा. पंकज तथा डा. अंकुर की भी सराहना की है।

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