हिमाचली पुरुषार्थ : खेल प्रतिभाओं के पारखी केएस पटियाल

By: May 31st, 2017 12:07 am

हिमाचली पुरुषार्थ : खेल प्रतिभाओं के पारखी केएस पटियालस्कूल एथलेटिक्स मीट में उन्होंने 1500 मीटर में भाग लिया और उस प्रतियोगिता में राज्य विजेता राजकुमार भी उस प्रतिस्पर्धा में भाग ले रहे थे। केएस पटियाल मुकाबले में दूसरे नंबर पर रहे और विजेता के साथ बेहद करीबी मुकाबला रहा। यह उनकी जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट रहा। उन्होंने भविष्य में एथलेटिक्स गेम को ही अपना मुख्य खेल चुन लिया…

पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश के धावकों की प्रतिभा को निखार कर भारत को अंतरराष्ट्रीय मेडल दिलाने का कार्य हिमाचल के सपूत केहर सिंह पटियाल कर रहे हैं।  छोटे से राज्य हिमाचल प्रदेश से खेल जगत में हीरे तराशने वाले केहर सिंह पटियाल का जन्म 12 दिसंबर, 1959 को जिला हमीरपुर के समीपवर्ती गांव बारल में हुआ। केएस पटियाल  के पिता र्स्वगीय मिल्खी राम भारतीय रेलवे में थे और उनकी माता कुशल गृहिणी थीं। उन्होंने अपनी प्रांरभिक शिक्षा हरियाणा के जगाधरी से प्राप्त की। उस समय इनके पिता रेलवे में जगाधरी में नौकरी करते थे। इसके बाद छठी कक्षा से राजकीय छात्र वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला हमीरपुर में अपनी पढ़ाई शुरू की। इसी स्कूल के मैदान से उन्होंने फुटबाल खेलने की शुरुआत की और पढ़ाई के साथ- साथ खेल में भी भविष्य सवांरने की चाह लेकर खेलना शुरू किया। ब्वयाज स्कूल हमीरपुर से उन्होंने अपनी  हाई सेकेंडरी तक की शिक्षा प्राप्त की। इसी दौरान स्कूल एथलेटिक्स मीट में उन्होेंने 1500 मीटर में भाग लिया और उस प्रतियोगिता में राज्य विजेता राजकुमार भी उस प्रतिस्पर्धा में भाग ले रहे थे। केएस पटियाल मुकाबले में दूसरे नंबर पर रहे और विजेता के साथ बेहद करीबी मुकाबला रहा। यह उनकी जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट रहा। उन्होंने भविष्य में एथलेटिक्स गेम को ही अपना मुख्य खेल चुन लिया। इसके बाद उन्होंने कालेज की पढ़ाई करने के लिए राजकीय महाविद्यालय हमीरपुर में दाखिला लिया। पहली एथलेटिक्स मीट में ही केएस पटियाल को बेहतरीन खिलाड़ी चुना गया। वह लगातार दो साल हमीरपुर कालेज के बेहतरीन खिलाड़ी चुने गए। इंटर कालेज प्रतियोगिता में उन्होंने 1500 मीटर व पांच हजार मीटर में कांस्य पदक हासिल किया। इसके बाद उन्होंने भारतीय खेल प्राधिकरण के कोच अजीत सिंह सोहता से प्रशिक्षण प्राप्त किया, जोकि उस समय एनवाईके हमीरपुर में सेवाएं दे रहे थे। जनवरी 1982 में केएस पटियाल ने खेल में उज्ज्वल भविष्य संवारने के लिए बतौर सिपाही हिमाचल पुलिस में ज्वाइन किया। वर्ष  1983 और 84  में हिमाचल पुलिस मीट  में केएस पटियाल को बेस्ट एथलीट चुना गया। 1985 में उन्होंने हिमाचल पुलिस से स्टडी लीव लेकर एनआईएस कोचिंग सेेंटर पटियाला से डिप्लोमा इन कोचिंग प्राप्त किया। 1989 से उन्होंने हिमाचल पुलिस टीम को कोचिंग देना शुरू की। 1991 में उन्होंने भारतीय खेल प्राधिकरण के ऑफर पर साई में अपनी सेवाएं देना शुरू की। उन्होंने डायरेक्टर स्पोर्ट्स में ज्वाइन किया। 1993 से 1994 तक एसपीडीए पटियाला में कोचिंग दी। इसके बाद 2000 तक एनएसटीसी चंडीगढ़ में अपनी सेवाएं दीं। इस दौरान उनके द्वारा तैयार किए गए खिलाडि़यों ने राष्ट्रीय मेडल भी जीते। जुलाई 2000 से साई ट्रेनिंग सेंटर धर्मशाला में ज्वाइन किया। 2011 से 2013 तक साई बिलासपुर में अपनी सेवाएं दीं। 2013 में एक बार फिर साई धर्मशाला में ज्वाइन किया। और इसके बाद दो अंतरराष्ट्रीय खेलों में ब्रांज मेडल झटका।

अंतरराष्ट्रीय मेडलिस्ट-

कोच केहर सिंह पटियाल से प्रशिक्षण प्राप्त कर रही हिमाचल प्रदेश की बेटी सीमा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कांस्य पदक जीता है। यह अर्जुन अवार्ड विजेता सुमन रावत के बाद दूसरी बेटी है, जिसने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीता है। इन्हीं से कोचिंग प्राप्त कर रही हरमिलन कौर ने भी जूनियर एशियन गेम्स में कांस्य पदक हासिल किया है।

राष्ट्रीय मेडलिस्ट-

एथलेटिक्स कोच केहर सिंह पटियाल ने अपने कार्यकाल में सैकडों राष्ट्रीय खिलाड़ी तैयार किए हैं, जिसमें से 40 खिलाड़ी ऐसे हैं जोकि राष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीत चुके हैं और प्रदेश का नाम ऊंचा कर चुके हैं। इसमें से मात्र दो खिलाड़ी बाहरी प्रदेशों के हैं। बाकी सभी खिलाड़ी हिमाचल प्रदेश से संबंध रखने वाले हैं। उनका कहना है कि प्रदेश में दो सिंथेटिक ट्रैक के बनने से प्रदेश के खिलाडि़यों को मुकाबले के लिए तैयार करना आसान हो रहा है। इससे पहले खिलाड़ी सीमेंट, सड़क व मैदान में प्रैक्टिस द्वारा तैयार किए जाते थे और मुकाबला सिंथेटिक पर होता था, जिससे की टेक्नीक में बहुत फर्क पड़ता था। अब अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर के खिलाडि़यों का कैंप धर्मशाला में लग रहा है, जिससे कि एथलेटिक्स के खिलाडि़यों को प्रेरणा मिल  रही है। इससे ट्रेनिंग का स्तर भी ऊंचा हुआ है। मैदान में खिलाड़ी व कोच एक सच्चे मित्र की  तरह होते हैं। खिलाड़ी को उसके स्तर के हिसाब से ही काम दिया जाता है। इसमें समय- समय पर खिलाड़ी के अनुसार खिलाड़ी को वर्क लोड दिया जाता है। उन्होंने कहा है कि भविष्य में हिमाचली प्रतिभा देश के लिए सोना उगलेगी।

नितिन राव, धर्मशाला

हिमाचली पुरुषार्थ : खेल प्रतिभाओं के पारखी केएस पटियालजब रू-ब-रू हुए…

अपने द्वारा तैयार खिलाड़ी को ओलंपिक में मेडल लेते देखने की तमन्ना…

सीमा जैसे खिलाड़ी ईश्वर का वरदान हैं या इनकी खोज में हिमाचल कुछ विशेष प्रयास कर सकता है?

एक प्रतिभाशाली खिलाड़ी ईश्वर का वरदान ही होता है, ऐसे खिलाडि़यों की प्रतिभा की खोज जोनल स्तर की प्रतियोगिताओं में की जा सकती है। ऐसे खिलाडि़यों का मार्गदर्शन स्कूल के पीईटी व डीईपी को करना बेहद जरूरी है। शुरुआती दौर में ही अच्छे हुनर को पहचान कर उसको तराशने के प्रयास करने चाहिए।

खेलों में आने की आपकी वजह और प्रेरणा?

मैं जिस दिन पहली बार मैदान में उतरा था, तो अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बनने की चाह से उतरा था। इसके बाद नौकरी के सिलसिले में मेरी ख्वाहिश अधूरी रह गई। तो दिल में अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी तैयार करने का जुनून जागने के कारण ही फिर से खेलों की दुनिया में आया। कोच भूपेंद्र सिंह के मार्गदर्शन व प्रेरणा ने भी मुझे प्रेरित किया।

पंजाब-हरियाणा के मुकाबले हम कहां खड़े हैं?

खेल जगत में इन दोनों प्रदेशों से हम बहुत पीछे हैं। इसके लिए मुख्य रूप से खेल मैदान, प्रशिक्षित कोच और खेल जगत में अन्य सुविधाओं की कमी मुख्य कारण हैं। इसमें खिलाडि़यों को प्रेरित करने के लिए सरकार द्वारा नौकरी और प्रोत्साहन राशि की भी उचित नहीं मिल पाती है। जिसके कारण प्रदेश के कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी भी मैदान छोड़ नौकरी करने में व्यस्त हो जाते हैं।

खेल प्रतिभा को पहचानने और सामने लाने में क्या प्रयास करने होंगे?

भविष्य में अच्छा करने वाले खिलाडि़यों की पहचान ग्रास रूट लेवल पर ही हो सकती है। इसमें सरकारी व निजी स्कूलों में बच्चें की प्रतिभा को देख कर पीईटी व अन्य स्टाफ को मार्गदर्शन करना चाहिए। इस क्षेत्र में ईमानदारी से प्रयास करने की अवश्यकता है।

आपके सन्निध्य में देश के तीन कोचिंग कैंप चल रहे हैं- कैसा अनुभव हो रहा है?

हिमाचल प्रदेश के जूनियर खिलाड़ी इन कोचिंग कैंप में देश के बेहतरीन एथलीटों को प्रैक्टिस करते देख प्रेरित हो रहे हैं। इन खिलाडि़यों को देख हमारे खिलाडि़यों को भी काफी कुछ सीखने को मिल रहा है।

साई धर्मशाला इस दिशा में और बेहतर क्या कर सकता है?

साई धर्मशाला ईमानदारी से बच्चों की परख कर रहा है। इसके साथ ही जिन खेलों की कोचिंग नहीं दी जा रही है, उन्हें शुरू करने के प्रयास किए जा सकते हैं।

हिमाचल को किन खेलों को आगे ले जाने में विशेष प्रयास करने होंगे?

हिमाचल की भौगौलिक स्थिति को देखते हुए एथलेटिक्स, हाकी, कब्बड़ी, वालीबाल और बॉक्सिंग को आगे ले जाने में विशेष प्रयास करने होंगे।

क्या आपको नहीं लगता कि हिमाचल में खेल मैदान और कोच कम हैं। ऐसे में होना क्या चाहिए?

जी बिलकुल, कोच व मैदानों की कमी भारी मात्रा में है। भविष्य में हिमाचल अच्छा करना चाहता है तो इसके लिए मैदान को तैयार कर कोच रखने चाहिए, लेकिन कोच की क्वालिटी से कोई समझौता नहीं होना चाहिए।

हिमाचल की खेल उपलब्धियों में साई की  सफलता से कितने संतुष्ट?

हिमाचल प्रदेश में साई के दो ट्रेंनिग सेंटर हैं और मैं साई के प्रदर्शन से बेहद खुश हूं। आज साई के तैयार खिलाड़ी देश का नाम रोशन कर रहे हैं और सभी खेलांंे में हैं।

क्या कारण है कि प्रदेश की बेटियां खेलों में कहीं अधिक सफल हैं?

प्रदेश में बेटियां ही नहीं, प्रदेश के बेटे भी खेलों में बहुत अच्छा कर रहे हैं, लेकिन लड़के जब तक तैयार होते हैं, तो वे आर्मी या पुलिस में भर्ती हो जाते हैं। क्योंकि अभी तक अच्छा खिलाड़ी होने के बावजूद जॉब सिक्योरिटी नहीं मिल पाती है।

भविष्य की प्रतिभा का आप कैसे मूल्यांकन करेंगे?

अच्छा रिजल्ट, मेहनत और लगन से निरंतर कड़ा अभ्यास करने वाले ही अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं।

कोच की जिंदगी जब भिन्न हो जाती है?

अपने क्षेत्र में अच्छा रिजल्ट देने के बाद बहुत अच्छा लगता है। इससे काम करने की शक्ति मिलती है और प्ररेणा मिलती है।

कोई एक अभिलाषा जिसे आप ट्रैक पर देखते हैं?

मैं तिरंगे को फहराना चाहता हूं। मैं अपने तैयार किए हुए खिलाड़ी के द्वारा ओंलपिक में देश को मेडल दिलाना चाहता हूं।

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