हिमाचली पुरुषार्थ : हिमाचल का ‘गौरव’ गढ़ते गौरव राणा

By: May 24th, 2017 12:07 am

हिमाचली पुरुषार्थ : हिमाचल का ‘गौरव’ गढ़ते गौरव राणागौरव राणा ने कुश्ती में देश के बड़े-बड़े नामी-गिरामी पहलवानों को केवल एक मिनट में चित कर हिमाचल का नाम राष्ट्र स्तर पर रोशन किया है,लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा राष्ट्र स्तर के इस खिलाड़ी को आज दिन तक कोई भी मदद नही मिल पाई है, जिससे हिमाचल के अन्य खिलाडि़यों के हौसला बनने से पहले ही टूट जाता है…

अगर जीवन में कुछ कर दिखाने का जज्बा हो, तो मंजिल को हर हाल में प्राप्त किया जा सकता है। ऐसा ही कर दिखाया है संतोषगढ़ अखाड़े में कुश्ती की प्रैक्टिस कर रहे गौरव राणा ने। प्रदेश सरकार द्वारा अनदेखी का शिकार गौरव राणा हिमाचल के साथ- साथ अन्य राज्यों में भी किसी पहचान का मोहताज नही है। हिमाचल की गोली के नाम से मशहूर यह खिलाड़ी मिट्टी में कुश्ती लड़ते हुए मिट्टी होकर अपने हुनर को तराश रहा है। गौरव राणा ने कुश्ती में देश के बड़े-बड़े नामी-गिरामी पहलवानों को केवल एक मिनट में चित कर हिमाचल का नाम राष्ट्र स्तर पर रोशन किया है,लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा राष्ट्र स्तर के इस खिलाड़ी को आज दिन तक कोई भी मदद नही मिल पाई है, जिससे हिमाचल के अन्य खिलाडि़यों के हौसला बनने से पहले ही टूट जाता है। गौरव राणा का जन्म जिला ऊना के गांव भंडयारां में माता-पिता हेमलता व जसंबत सिंह राणा के घर 4 सिंतबर, 1994 को हुआ। मध्यम वर्गीय परिवार में जन्में गौरव राणा के पिता जसबंत सिंह राणा की चाह ने गौरव राणा को इस फील्ड में धकेला और आठवीं कक्षा में शिक्षा ग्रहण करने के दौरान ही उनके पिता जसंबत सिंह राणा ने अपने चहेते पुत्र गौरव राणा को पंजाब के खन्ना शहर के मल्लकपुर अखाड़े में कुश्ती सीखने भेज दिया। वहीं, अपने पिता का सपना पूरा करने के लिए राष्ट्र स्तर के इस खिलाड़ी ने पीछे मुड़कर नही देखा।  गौरव राणा ने ‘दिव्य हिमाचल’ को एक विशेष बातचीत के दौरान बताया कि उसकी पांचवीं की शिक्षा गांव भंडयारा में हुई,जबकि आठवीं तक जिला ऊना के गांव दुलैहड़ में शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत वह अपने पिता के शौक के कारण पंजाब के मल्लकपुर अखाड़े में चले गए। वहीं से साथ ही साथ उन्होंने एनओएस के तहत बारहवीं की शिक्षा भी ग्रहण की। मल्लकपुर अखाड़े में कोच रहे संजय कुमार के साथ वह 2006 में हरियाणा में उनके अखाड़े में साथ प्रैक्टिस के लिए चले गए।

प्रैक्टिस करने के दौरान 2009 में गौरव राणा  हिमाचल के बिलासपुर के नलवाड़ी मेले में पहली बार अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते हुए हिम कुमार की फाइनल कुश्ती जीत कर हिमाचल के पहलवानों को चित कर वह हिमाचल कुमार बन गए। सन् 2009 से लेकर 2011 तक हिमाचल कुमार ही रहे। सन् 2010 में उत्तराखंड के नैनीताल में ऑल इंडिया फेडरेशन द्वारा आयोजित करवाई गई कुश्ती प्रतियोगिता में गौरव राणा ने तीसरा स्थान प्राप्त कर कांस्य पदक जीतकर फिर से राष्ट्र स्तर पर हिमाचल का नाम रोशन किया। हिमाचल के नालागढ़ में सन् 2012 में आयोजित हुई ऑल इंडिया कुश्ती चैंपियनशिप में भी गौरव राणा ने कांस्य पदक झटका।

गौरव राणा ने देश स्तर हुई कुश्ती प्रतियोगिताओं में आज दिन तक करीब 23 बाइकें व करीब तीन लाख की कीमत की चार भैंसें जीत कर हिमाचल का गौरव बढ़ाया है। गौरव राणा ने करीब सोने की 100 रिंगें व कई कड़े जीते हैं। गौरव राणा हिमाचल के साथ- साथ पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, चंडीगढ़ व महाराष्ट्र के नामी-गिरामी पहलवानों को चित कर जीत दर्ज कर चुके हैं।  गौरव राणा के कोच संजय कुमार ने बताया कि हिमाचल के साथ- साथ गौरव राणा को अन्य राज्यों में हिमाचल की गोली के नाम से जाना जाता है,क्योंकि गौरव राणा ने 300 से ज्यादा कुशतियों को रिकार्ड समय एक मिनट में ही बड़े से बड़े राष्ट्रीय स्तर के पहनवालों को चित किया है। हिमाचल सरकार द्वारा ऐसे पहलवान खिलाड़ी को आगे ले जाने के लिए सहायता करनी चाहिए ताकि गौरव राणा राष्ट्रीय एंव अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आगे बढ़ कर हिमाचल के साथ- साथ देश का नाम चमका सकें।

अश्वनी सैणी,संतोषगढ़

हिमाचली पुरुषार्थ : हिमाचल का ‘गौरव’ गढ़ते गौरव राणाजब रू-ब-रू हुए…

मिट्टी से प्यार हुआ और आगे बढ़ता गया…

हिमाचल में कुश्ती है कहां?

हिमाचल में छिजों में कुश्ती का बहुत ज्यादा क्रेज है, लेकिन हिमाचल सरकार कुश्ती को जरा भी प्रोमोट नही करती है। हिमाचली पहलवान अपने ही दम पर सब कर रहे हैं

आप इस खेल के प्रति कैसे आकर्षित हुए और किस मिट्टी ने आपको बुलंद किया?

मेरे पापा का रुझान ही मुझे कुश्ती में ले आया और भारतीय मिट्टी ने मुझे बुलंद किया। मिट्टी से प्यार हुआ और आगे बढ़ता गया।

हिमाचल का कोई अखाड़ा इस काबिल कैसे बनेगा, जब युवा पहलवान अपने प्रदेश की तस्वीर बदल पाने में सफल होंगे?

प्रदेश सरकार को मदद करनी पड़ेगी। अगर प्रदेश सरकार पहलवानों को प्रोत्साहन देगी, सुविधाएं देगी और नौकरियां देगी, तब हिमाचल के पहलवान आगे बढेंगे व कुश्तियों में प्रदेश का नाम भी ऊंचा होगा। पहलवान तो अखाड़े में उतर ही सकता है, पहल सरकार को करनी है कि वह इन अखाड़ों को आबाद करे।

आपके लिए अब तक की सबसे कठिन और सरल कुश्तियां?

कुश्तियों में कठिन और सरल का तो कभी पता ही नही चलता है। हर कुश्ती में मेहनत करनी पड़ती है और मेहनत से मुश्किल काम भी सरल हो जाता है।

जब कुश्ती में गौरव मिला?

मैं जब हिम कुमार बना तब मेरी पहचान बनी और जिला में मुझे पहला हिम कुमार होने का गौरव प्राप्त हुआ। गौरव मिलने के साथ- साथ लोगों भरपूर का स्नेह मिला और यही मेरी प्रेरणा बन गया।

पहलवान बनने में कितनी मेहनत, कितनी तैयारी, कितना खर्च ओर कितने समय का निवेश करना पड़ता है?

पहलवान बनने में बहुत मेहनत, जज्बे के साथ तैयारी, महीने का करीब 30 हजार खर्चा व प्रतिदिन 6 घंटे अभ्यास करना पड़ता है।

दंगल फिल्म कितनी बार देखी, क्या अच्छा लगा?

दंगल फिल्म देखी है। दंगल फिल्म में देखने को मिला कि छिजों में मेहनत करके युवा ओलंपिक तक पहुंच सकते हैं।

क्या आपसे लोग डरते हैं। कभी सार्वजनिक जीवन में कुश्ती काम आई?

यह तो लोगों की सोच पर निर्भर करता है। सार्वजनिक जीवन में कुश्ती से ही पहचान बनी है।

आपका आदर्श कौन सा पहलवान है?

हरियाणा के पहलवान संजय कुमार मेरे आर्दश व गुरु हैं। उन्हीं से प्रेरणा लेकर मंजिल की ओर बढ़ रहा हूं।

कभी सरकार, किसी विभाग या किसी एसोसिएशन ने आपसे संपर्क किया?

नहीं, फिलहाल तो नहीं संपर्क किया है।

अब तो पहलवान फिल्म या सीरियल में आने लगे हैं, कोई प्रस्ताव आए तो?

नही कोई प्रस्ताव नही आया।

हिमाचली छिंजों में लाखों बंटते हैं, तो यहां पहलवान क्यों तैयार नहीं हो रहे?

हिमाचल प्रदेश सरकार सपोर्ट नही कर रही है, जिससे पहलवान छिजों तक ही सीमित रह जाते है। छिंज में मिलने वाला इनाम प्रोत्साहित तो करता है, पर सरकारी मदद और चीज है। जैसे बाकी खिलाडि़यों को सरकार नौकरियां देती है, तो पहलवानों को भी यह लाभ मिलना चाहिए।

अगर आपको हिमाचली पहलवान तैयार करने की जिम्मेदारी मिले, तो क्या योजना बनाएंगे?

सबसे पहले सरकार मदद करे। क्योंकि बिना सरकारी मदद के यह संभव ही नहीं है। हिमाचल सरकार प्रदेश में अकादमी खुलवाए और कुश्ती के लिए सारे प्रंबध करे, तो आगे की योजनाएं खुद- ब- खुद बनती जाएंगी।

गौरव राणा जब अखाड़े में नायक नहीं होता, तो सामान्य रूप में कैसे जीता है। मनोरंजन के प्रति कोई खास दिलचस्पी?

आम आदमी की तरह जीवन व्यतीत करता हूं। कभी ख्ुद को खास नहीं समझता। मनोरंजन के लिए संगीत सुनता हूं क्योंकि मेरी संगीत में काफी रुचि है।

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