अबकी बार, आतंक पर वार

By: Jun 29th, 2017 12:02 am

दोनों ने हाथ मिलाए, हाथ हिलाए भी गर्मजोशी के लिए, एक-दूसरे की आंखों में देखकर मुस्कराए, कुछ बातें भी हुईं और फिर दोनों आलिंगन में बंध गए। एक-दूसरे की पीठ थपथपाई। दो सच्चे दोस्तों का ऐसा मिलन रस्मी नहीं हो सकता। बेशक प्रधानमंत्री मोदी और अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा जैसी गरमाहट और अंतरंगता न हो, लेकिन मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी भारतीय प्रधानमंत्री मोदी को कम सम्मान, सत्कार नहीं दिया। फिलहाल प्रधानमंत्री मोदी दुनिया के एकमात्र और पहले  शासनाध्यक्ष हैं, जिन्हें ‘व्हाइट हाउस’ में आमंत्रित किया गया, रात्रि भोज दिया गया और फिर मोदी के साथ ट्रंप ने करीब पांच घंटे बिताए। इससे पहले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग का आतिथ्य फ्लोरिश के एक होटल में किया गया था। मोदी-ट्रंप की इस यारी ने कइयों के मंसूबों पर आरी चलाई होगी। दोनों शीर्ष नेताओं ने भी अपनी प्राथमिकता स्पष्ट की-पाक परस्त आतंकवाद। राष्ट्रपति ट्रंप ने भी कश्मीर की कथित ‘आजादी की जंग’ को आतंकवाद करार दिया। अमरीका ने यह भी माना कि आतंक का खात्मा करना दोनों देशों की प्राथमिकता है। आतंक की पनाहगाहों को नष्ट किया जाएगा। बेशक आतंकवाद पर अमरीका का अपना रुख भी रहा है। 2012 में उसने पाक परस्त आतंकवाद के सरगना हाफिज सईद और फिर लखवी को भी ‘वैश्विक आतंकी’ की सूची में डाला था। हाफिज पर एक करोड़ डालर का इनाम भी घोषित है। दरअसल यह सवाल चिंतित करता है कि पहले आतंकियों को सूची में डालने के बाद आतंकवाद थमा भी नहीं, समाप्त होना तो बहुत दूर की बात है। लिहाजा सलाहुद्दीन को ‘अंतरराष्ट्रीय आतंकी’ करार देने से भारत को हासिल क्या होगा। हाफिज, मसूद अजहर, मक्की और लखवी की तुलना में सलाहुद्दीन ‘आतंकवाद का चूजा’ है। मोदी-ट्रंप की मुलाकात का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ है कि नए राष्ट्रपति के प्रशासन में अमरीका के साथ जिन रिश्तों को आशंकित माना जा रहा था, वह पहले से भी ज्यादा मजबूत साबित हुए। साझा घोषणा पत्र में अमरीका ने भारत के पक्ष को स्वीकारा, लेकिन सैयद पर पाबंदी अमरीकी कानून के तहत लगाई गई है। दरअसल अमरीका को पाकिस्तान से साफ तौर पर कहना चाहिए था कि सलाहुद्दीन को उसके हवाले करो। अब भारत को अपनी लड़ाई खुद भी लड़नी है और पाकिस्तान को ‘आतंकी देश’ घोषित किया जाना चाहिए। बेशक आतंकवाद का मुद्दा इतना अहम है कि दूसरे मुद्दे गौण पड़ जाते हैं, लेकिन एक बार फिर भारत को आश्वासन मिला है कि परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए अमरीका समर्थन देता रहेगा और भारत के हक की लड़ाई भी लड़ेगा। भारत-अमरीका में परमाणु करार है। अमरीका ने स्पष्ट संकेत दिए हैं कि भारत में (6) परमाणु रिएक्टर स्थापित करने की कोशिशें होंगी। अमरीका कारोबार को बढ़ाएगा, लेकिन रोजगार बढ़ाने के अवसर पैदा करने में भी मदद देगा। अमरीका ने भारत को 22 ‘गार्जियन ड्रोन’ देना भी तय किया है। इससे भारत को चीन और पाक के खिलाफ एक बड़ी ताकत मिलेगी। खुफिया जानकारी इकट्ठा करने, निगरानी और दुश्मन की टोह लेने में ये माहिर हैं। अमरीका अपना लड़ाकू विमान एफ-16 भी भारत को देगा। उसकी बिक्री को मंजूरी दे दी गई है। अमरीका, भारत और जापान की नौसेनाएं संयुक्त युद्धाभ्यास करती रही हैं। अमरीका और भारत ने हिंद महासागर में यह सिलसिला जारी रखना तय किया है। बेशक इस भागीदारी से चीन का दिल जरूर कांप रहा होगा। दोनों नेताओं ने जलवायु परिवर्तन संधि और एच-1बी वीजा आदि मुद्दों को नाजुक मानते हुए फिलहाल उन पर विमर्श करना स्थगित रखा है। बहरहाल आतंकवाद और आतंकियों पर अमरीकी फैसले को पाकिस्तान ने गलत माना है। पाक सलाहुद्दीन को ‘स्वतंत्रता सेनानी’ मान रहा है। लिहाजा हाफिज सईद और मसूद अजहर पर कोई निर्णायक कार्रवाई नहीं हो पाई है। ‘वैश्विक आतंकी’ दाऊद इब्राहिम भी पाकिस्तान में ही बसा है। सलाहुद्दीन के संदर्भ में भी ऐसा ही हुआ तो ‘अबकी बार, आतंक पर वार’ का साझा संकल्प नाकाम साबित होगा। लिहाजा राष्ट्रपति ट्रंप को अपनी पूर्व परंपराओं से हटकर भारत का साथ देना पड़ेगा। यदि अफगानिस्तान में भारत के साथ शक्ति और विकास के कार्य करने हैं, तो अमरीका को पाक की हवाई पट्टियों की जरूरत पड़ेगी, लेकिन अमरीका नरम पड़ा, तो पाक परस्त आतंकवाद और ज्यादा भड़केगा। नतीजतन मोदी-ट्रंप के संकल्प खोखले साबित होंगे।

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