आईसीयू में पहुंच चुका हिंदुत्व

By: Jun 27th, 2017 12:07 am

डा. भरत झुनझुनवाला

लेखक, आर्थिक विश्लेषक एवं टिप्पणीकार हैं

newsसोच है कि सृष्टि में जो भी है वह ब्रह्म ही है। ब्रह्म के अलावा कुछ नही है। तब दलित और मुसलमान भी ब्रह्म ही हुए। इन्हें चिन्हित करके इन पर प्रहार करके हम अपनी व्यापकता को त्याग कर और गहरे और संकीर्ण गड्ढे में जा पड़ेगे। हिंदू धर्म को चढ़ावे, गाय और योग से ऊपर उठकर इस्लाम, बौद्ध तथा इसाई धर्मों को अपने में समावेश करना होगा। अपने भटकाव से बाहर आना होगा। दूसरे धर्म की अच्छाइयों से सीखना होगा। इस्लाम की ताकत एकल अल्लाह पर भरोसा है। ईसाई धर्म की ताकत गरीब के प्रति सौहार्द है…

सदियों से कोमा मे पड़े हिंदू संस्कृति का दोबारा जन्म हो रहा है। परंतु किसी भी रोग के उपचार की शुरुआत डायगनोसिस से होती है। जैसे बुखार यदि आंख की कमजोरी के कारण है, तो मरीज को आप्थालमोलाजिस्ट के पास भेजा जाता है। वही बुखार यदि मलेरिया के कारण है तो मरीज को मेडिसिन के विशेषज्ञ के पास भेजा जाता है। ज्ञात रहे कि अमरीकी राष्ट्रपति ने हाल में साउदी अरब, इजरायल तथा रोम की यात्रा की। कहा गया कि वे विश्व के तीनों प्रमुख धर्मों यानी इस्लाम, यहूदी तथा इसाई केंद्रों पर गए। उन्होंने हिंदू धर्म को विश्व के प्रमुख धर्मों में माना ही नही। अतः हमें सोचना चाहिए कि हम इस गढ़े में पहुंचे कैसे। पहले हिंदू धर्म के संकुचन की डायगनोसिस करनी होगी – उसके बाद उपचार।

वर्तमान युग की पहली सहस्राब्दी में भारत पूरे विश्व में अग्रणी था। यूनान तथा रोम की पुरातन सभ्यताएं ध्वस्त हो गई थीं, लेकिन भारत में गुप्त एवं हर्ष साम्राज्य फलते फूलते रहे। दूसरी सहस्राब्दी में हम फिसल गए। पहले मुसलमानों ने आक्रमण किया और देश पर मुगलों का शासन स्थापित हुआ। उसके बाद ईसाइयों ने अंदर घुस कर युद्ध किए और देश पर ब्रिटिश शासन स्थापित हो गया। 1947 में हम स्वतंत्र हुए परंतु हिंदू धर्म का हृस जारी रहा। दलितों द्वारा दूसरे धर्मों को लगातार अपनाया गया। मुसलमानों की आबादी का भारत मं विस्तार हुआ जबकि हिंदुओं का पाकिस्तान में संकुचन हुआ। महेश योगी, इसकान, बाबा रामदेव तथा श्रीश्री रविशंकर के माध्यम से हिंदू धर्म का कुछ विस्तार हुआ। परंतु मेजबान देशों की मध्य धारा को हम प्रभावित नही कर सके हैं। कुल मिलाकर हिंदू धर्म आज अस्पताल में है।

हिंदू धर्म का पतन और भक्ति योग का विस्तार लगभग साथ-साथ हुआ है। राम और कृष्ण ने कर्म के सिद्धांत का पुरजोर प्रतिपादन किया था। तीर्थयात्रा से लौटने पर युवा राम को यह संसार निःसार लगने लगा था। तब मुनि वशिष्ठ ने उन्हें समझाया कि संपूर्ण संसार ब्रह्ममय है। ब्रह्म में रत रह कर कर्म करते रहो। इसके बाद राम ने लंका पर विजय पाई। वह जीवन के अंत तक सक्रिय रहे। इसी प्रकार अपने गुरु एवं परिजनों को सामने खड़े देखकर अर्जुन को वैराग्य उत्पन्न हो गया। तब कृष्ण ने गीता में निष्काम कर्म के सिद्धांत का प्रतिपादन किया। इन सिद्धांतों के भरोसे पहली सहस्राब्दी में भारत पूरे विश्व में अग्रणी था। दूसरी सहस्राब्दी मं राम और कृष्ण द्वारा बताए गए कर्म के मार्ग को हमारे ब्राह्मणों ने त्याग दिया। उन्होंने राम और कृष्ण की मूर्तियां बनाकर उनकी पूजा को ज्यादा महत्त्व दिया। कर्म मार्ग कठिन था। इसमें युद्ध करना पड़ता था जैसे द्रोण मारे गए थे। तुलना में भक्ति मार्ग सरल और भौतिक सुख प्रदान करता था। इसलिए ब्राह्मणों ने भक्ति मार्ग को अपनाया। विदेशी आक्रमणकर्ताओं का सामना करने की तब जरूरत नही रह गई। देश गुलाम हो तो भी राम और कृष्ण की मूर्ति पूजा तो की ही जा सकती थी। साथ-साथ गुरु की पूजा की भी परंपरा स्थापित की गई। ब्राह्मणों के लिए इसमे डबल प्रॉफिट था। राम की मूर्ति पर चढ़ावे के साथ-साथ गुरु दक्षिणा भी मिलने लगी। ब्राह्मण स्वयं तो अकर्मण्य हो ही गए, अपने भगतों को भी उन्होंने अकर्मण्य बना दिया। राम और कृष्ण द्वारा दिए गए कर्म करने के सिद्धांत के ठीक विपरीत उन्होंने संसार को निःसार बताया। कर्म करने के संकट को टालने एवं मंदिर के चढ़ावे का भोग करने के लिए ब्राह्मणों ने पूरे समाज को नपुंसक बना दिया। इसके विपरीत इस्लाम धर्म ने मूर्ति पूजा का पूर्ण खंडन किया और कर्म पर जोर दिया। ईसाई धर्म ने ईसा मसीह की पूजा करने के साथ-साथ कर्म का महत्त्व दिया इसलिए ये धर्म विजयी हुए।

चढ़ावा पर्याप्त नही था। सेवक भी चाहिए था। इसलिए कर्म एवं पुनर्जन्म के सिद्धांत को भ्रष्ट करके प्रस्तुत किया गया। इतना सही है कि पूर्व जन्म मं बची हुई इच्छाओं की पूर्ति के लिए ही व्यक्ति जन्म लेता है। इस जन्म में व्यक्ति किस दिशा को पकड़ता है, वह पूर्व जन्म से निर्धारित होती है जैसे व्यक्ति धन कमाएगा अथवा नेतागिरी करेगा, यह उसके पूर्व जन्म से प्रभावित होता है। परन्तु धन कमाने अथवा नेतागिरी करने का कर्म तो करना ही होगा। राम और कृष्ण ने कर्म के इस सिद्धांत का प्रतिपादन किया था। परंतु दूसरी सहस्राब्दी में ब्राह्मणों ने इसे पलट दिया। कहा कि इस जन्म की दिशा ही नही, बल्कि परिणाम भी पूर्व जन्म के कर्मों से निर्धारित होता है। पुरुषार्थ का कोई स्थान नही बचा। दलित को दलित ही बने रहने का जन्म आधारित निर्णय दे दिया गया। ऊपरी वर्गों को दब्बू श्रमिक सहज मं उपलब्ध हो गए। इसके विपरीत इस्लाम ने बराबरी का संदेश दिया। ईसा मसीह ने कहा कि एक ऊंट के लिए सूई के छेद से निकल जाना आसान है, अमीर को ईश्वर प्राप्त होना कठिन है। इसलिए देश के गरीब ने इस्लाम और ईसाई धर्म को अपनाया और हिंदू धर्म का हृस हुआ।

हिंदू धर्म के हृस के ये कारण आज भी कमोवेश विद्यमान हैं। जैसे गोरक्षा को आजकल महत्त्व दिया जा रहा है। मैं गाय के गुणों को नमन करता हूं। मेरे किसी मित्र ने कैंसर का सामना गोमूत्र के कैपसूल के माध्यम से किया था। गोपूजा के साथ-साथ कहा गया कि संसार निःसार है इसलिए आक्रमण का विरोध करना जरूरी नही है। संसार निःसार है इसलिए आज हम डब्लूटीओ में अपने घुटने टेक रहे हैं। संसार निःसार है इसलिए आज हम अमरीका के पिछलग्गू बने हुए हैं। गोपूजा दलित एवं इस्लाम पर प्रहार भी है। एक तीर से दो चिडि़या मारी जा रही हैं। ब्राह्मण को चढ़ावा और गुरु दक्षिणा मिल रही है और दलित एवं इस्लाम पर प्रहार भी हो रहा है, लेकिन गंगा की बात नही की जाती। हिंदुत्व के सर्मथकों द्वारा गंगा पर तमाम विद्युत परियोजनाएं बनाई जा रही हैं। गंगा के बूंद बूंद पानी को निकाल कर सिंचाई के लिए उपयोग किया जा रहा है। गन्ने की खेती और चीनी का निर्यात करके धन कमाया जा रहा है। गोपूजा दलित मुसलमान पर प्रहार है इसलिए इसे बढ़ाया जा रहा है। गंगा पूजा कॉमर्शियल ताकतों पर प्रहार है इसलिए इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है।

हिंदू धर्म का मूल रूप व्यापक एवं सबको अपने दायरे में लाने वाला है। सोच है कि सृष्टि में जो भी है वह ब्रह्म ही है। ब्रह्म के अलावा कुछ नही है। तब दलित और मुसलमान भी ब्रह्म ही हुए। इन्हें चिन्हित करके इन पर प्रहार करके हम अपनी व्यापकता को त्याग कर और गहरे और संकीर्ण गड्ढे में जा पड़ेगे। हिंदू धर्म को चढ़ावे, गाय और योग से ऊपर उठकर इस्लाम, बौद्ध तथा इसाई धर्मों को अपने में समावेश करना होगा। अपने भटकाव से बाहर आना होगा। दूसरे धर्म की अच्छाइयों से सीखना होगा। इस्लाम की ताकत एकल अल्लाह पर भरोसा है। ईसाई धर्म की ताकत गरीब के प्रति सौहार्द है। इस्लाम और इसाई धर्म पर आक्रमण करके हिंदू धर्म आईसीयू मे पहुंच जाएगा। जरूरत है इनसे एकल ब्रह्म पर भरोसा करने और गरीब के प्रति सौहार्द सीखने और कॉमर्शियल हितों को साधने के लिए गंगा की हत्या को बंद करन की।

ई-मेल : bharatjj@gmail.com

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