आर्यों को भारत में स्थापित होने को लगे 400 वर्ष

By: Jun 14th, 2017 12:05 am

सिंधु प्रदेश में पूरी तरह छा जाने के बाद आर्य लोग पंजाब (सप्त सिंधु) की ओर बढ़े। वे छोटे-छोटे राज्य स्थापित करते हुए आगे बढ़ते गए और सप्तसिंधु में पूरी तरह बस जाने के लिए उन्हें लगभग चार सौ वर्ष का समय लगा…

आर्य और हिमाचल

सच तो यह है कि उपर्युक्त धारणाएं केवल अनुमान पर अवलंबित हैं और उनमें एक भी ऐसी नहीं जो निश्चित अथवा सर्वमान्य कही जा सके। इसलिए इस विषय पर अधिक विवेचन करने का प्रयत्न अनुपयुक्त एवं व्यर्थ सा है। फिर भी यह मानने में कोई आपत्ति नहीं कि आर्यों का विस्तार यूरोप एवं एशिया से हुआ और वैदिक आर्यों के इतिहास की प्रारंभिक रंगभूमि भारत ही थी और आर्य भारत के अन्य प्रांतों में फैलते और अपनी सभ्यता और आधिपत्य जमाते गए। कालांतर में सारे देश में उन्हीं की विभूति फैल गई, जो आज तक जीवित और प्रगतिशील है। कहा जाता है कि आर्य जाति जब अपने मूल स्थान से नई भूमि की खोज में निकली तो उनकी एक शाखा तो ‘पामीर पर्वत’ जिसे भारतीय पुराणों ने ‘मेरु पर्वत’ कहा जाता है, को पार करके कश्मीर घाटी की ओर मुड़ी और हिमाचल प्रदेश, गढ़वाल, कुमाऊं होती हुई भारत पहुंची। दूसरी टोली आगे बढ़ती हुई यूरोप तक चली गई। यहां पर हमारा तात्पर्य आर्यों की शाखा से है, जो ईरान अफगानिस्तान होती हुई सिंधु प्रदेश में आकर बस गई और बाद में वैदिक आर्य के नाम से जानी गई। वे भारत में आक्रांता बनकर नहीं आए, प्रत्युत यहां शांति प्रवासियों की भांति अपना पशुधन, गृहस्थी का समान और देवताओं को साथ लेकर आए। जब वे भारत में आए, तो उनका मुकाबला सिंधु घाटी के सुसंस्कृत तथा सभ्य लोगों से हुआ, जो सुरक्षित पुरों और दुर्गों में रहते थे। ये वे लोग थे, जिनकी सभ्यता के अवशेष आज हमें मोहनजोदड़ो, हड़प्पा, रोपड़, चंडीगढ़, लोथल, कालीबंगा और पूर्व में यमुना नदी की उपत्यका तक मिलते हैं। सिंधु प्रदेश में पूरी तरह छा जाने के बाद आर्य लोग पंजाब (सप्त सिंधु) की ओर बढ़े। वे छोटे-छोटे राज्य स्थापित करते हुए आगे बढ़ते गए और सप्तसिंधु में पूरी तरह बस जाने के लिए उन्हें लगभग चार सौ वर्ष का समय लगा। पंजाब में आकर जब वे शिवालिक की पहाडि़यों तथा हिमाचल की निचली घाटियों के आंतरिक भागों की ओर बढ़ने लगे, तो यहां पर उनका सामना पहले से ही बसे कोल, किन्नर- किरात और नाग जाति के लोगों से हुआ। ऋग्वैदिक ऋषि अपने जिन भयंकर प्रतिद्वंद्वियों का उल्लेख करते हैं, वे मैदान के सिंधु संस्कृति वाले द्रविड़ इतने नहीं थे, जितने कि यहां पहाड़ी में रहने वाले लोग थे। वे पत्थरों के बने हुए पुरों(किलों) में रहते थे। इन पुरों को तोड़ने के लिए आर्यों को लोहे के चने चबाने पड़े। आर्य अपने प्रतिद्वंद्वियों को दास, दस्यु या यक्ष आदि कहते थे। उनके मुख्य शत्रु पर्वतवासी दास या दस्यु थे। पर्वतीय लोग किन्नर-किरात और नाग थे। इनका नायक शांभर था, जिसके हिमाचल की पहाडि़यों में सौ दुर्ग थे। उसका राज्य हिमाचल की पहाडि़यों में रावी नदी से पूर्व की ओर कहीं गढ़वाल तक फैला हुआ था।

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