केंद्रित हो कृषि, चिकित्सा और शिक्षा

By: Jun 12th, 2017 12:02 am

(डा. दिलीप अग्निहोत्री लेखक, स्तंभकार हैं )

कृषि, जल व स्वास्थ्य जैसे विषयों को छात्र राजनीति में प्रायः अहमियत नहीं मिलती है। लेकिन विद्यार्थी परिषद ने इस अवधारणा को बदला है। छात्र संघ का चुनाव लड़ना, जीतना, शिक्षण-संस्थानों, शिक्षा व्यवस्था आदि तक ही लक्ष्य सीमित नहीं रहना चाहिए। जो प्राचीन भारतीय चिंतन से प्रेरणा लेता है, उसका दृष्टिकोण स्वतः ही व्यापक हो जाता है। फिर जीवन का चाहे जो क्षेत्र हो, उस पर इसका प्रभाव दिखाई देता। दूसरे शब्दों में जीवन शैली और कार्य संस्कृति में सकारात्मक बदलाव आ जाता है। यही तथ्य विद्यार्थी परिषद को अन्य छात्र संगठनों से अलग करता है। इसमें जीवन के विभिन्न आयाम शामिल किए गए हैं। इसमें राष्ट्र केंद्रित विचार है। कृषि और स्वास्थ्य दोनों को भारतीय संस्कृति में महत्त्व दिया गया है। भारत प्रारंभ से ही कृषि प्रधान देश रहा है। कृषि, पशुपालन और उससे संबंधित कुटीर व लघु उद्योग के कारण ही भारत सोने की चिडि़या कहा जाता था। विश्व व्यापार पर भारत का वर्चस्व था। प्राचीन भारत में कृषि संबंधी ग्रंथों की रचना हो चुकी थी। यह विषय शिक्षा में सम्मिलित था। इसी प्रकार स्वास्थ्य को महत्त्व मिला। यह कहा गया कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन का निवास रहता है। विश्व के अन्य हिस्सों में जब मानव सभ्यता का विकास नहीं हुआ था, उस समय भारत में आयुर्वेद और पतंजलि के योग शास्त्र की रचना हो चुकी थी। लखनऊ में विद्यार्थी परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद ने इन विषयों पर व्यापक विचार विमर्श किया।

प्रस्ताव पारित किए गए और सरकार से इनसे संबंधित मांग की गई। इसी के साथ युवाओं से जल संरक्षण अभियान चलाने का आह्वान किया गया। यह भी भारतीय संस्कृति का ही अंग है, जिसमें जल को महत्त्व दिया गया है। नदियों को हमारे ऋषियों ने मां का स्थान दिया। उनके संरक्षण, संवर्धन को जीवन शैली में शामिल किया गया। पानी अधिक हो, तब भी अत्यधिक दोहन और बर्बादी का निषेध किया गया। विद्यार्थी परिषद राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद ने कृषि को प्रारंभिक शिक्षा से ही शामिल करने की सरकार से मांग की है। इसमें कहा गया कि भाषा सहित कुछ विषय प्राथमिक से लेकर माध्यमिक शिक्षा तक में अनिवार्य होते हैं। क्योंकि यह माना जाता है कि इससे लोग जहां साक्षर हों, वहीं जीवनयापन का हिसाब-किताब भी कर सकें। बाद में वे अपनी इच्छा आदि से विषय का चयन करते हैं। भारत में कृषि का अत्यधिक महत्त्व है। इसलिए कृषि को भी प्रारंभ में अनिवार्य विषय बनाना चाहिए। आज भी गांवों में ऐसे बुजुर्ग मिलते हैं, जिन्हें कृषि संबंधी गहरी समझ होती है। यह ज्ञान परंपरागत रूप में उन्हें मिला है, लेकिन अब यह परंपरा समाप्त हो रही है।

ऐसे में पाठ्यक्रम में इसे शामिल करना आवश्यक है। देश में धीरे-धीरे जोत कम हो रही है। कम जमीन पर अधिक व लाभ देने वाली फसलों का उत्पादन जरूरी है। कृषि शिक्षा से बच्चों में खेती संबंधी रुचि विकसित होगी। यह ऐसा विषय है, जिसमें केवल ग्रामीण क्षेत्र ही शामिल नहीं है। शहर में रहने वाले भी गमलों, लॉन में पर्यावरण को ठीक रखने में सहायक पौधे लगा सकते हैं। सड़कों के किनारे, पार्कों आदि में पौधारोपण करने में समाज का योगदान भी जरूरी होता है। जल संरक्षण भी इसी का हिस्सा है। खेती, सिंचाई हो अथवा अन्य कोई कार्य पानी आवश्यकता से अधिक खर्च नहीं होना चाहिए। तालाब निर्माण में भी समाज खास तौर पर युवा वर्ग को योगदान करना चाहिए। सरकार को चाहिए कि वह नई कृषि शिक्षा नीति का निर्माण करे। राष्ट्रीय कृषि शिक्षा कोष एजेंसी की भी स्थापना होनी चाहिए। आईआईटी और आईआईएम की तर्ज पर उच्च कृषि शिक्षण संस्थानों की स्थापना करनी चाहिए। मृदा परीक्षण कार्यक्रम वर्तमान केंद्र सरकार ने बड़े पैमाने पर शुरू किया है। इसमें यह बताया जाएगा कि खेत को कितनी खाद व पानी की आवश्यकता है। कृषि शिक्षा व जल संरक्षण से इस अभियान को गति मिलेगी। इसी प्रकार चिकित्सा शिक्षा का पाठयक्रम-कालसुसंगति एवं भारत केंद्रित होना चाहिए। स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ निर्धन व ग्रामीण जन तक अवश्य पहुंचना चाहिए। मेडिकल शिक्षा एवं आयुष शिक्षा में समन्वय हेतु एकीकृत तंत्र लागू करने की आवश्यकता है। आयुर्वेेद, प्राकृतिक चिकित्सा की विलक्षण धरोहर हमारे पास है। इसका व्यापक लाभ लोगों तक पहुंचना चाहिए। कृषि में जड़ी-बूटियों के उत्पादन को भी प्रोत्साहन मिलना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस भारत की बड़ी सफलता है। इसकी भावना को भी समझना होगा। ये सभी बातें सामान्य लग सकती हैं, लेकिन इनसे देश का वर्तमान ही नहीं भविष्य भी सुरक्षित होगा।

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