खेल प्रतिभा खोज में ईमानदारी की दरकार

By: Jun 9th, 2017 12:03 am

भूपिंदर सिंहभूपिंदर सिंह

लेखक, राष्ट्रीय एथलेटिक प्रशिक्षक हैं

हिमाचल में आज हर गांव के लिए सड़क तो है, वहां पर दौड़ के अभ्यास का प्रारंभ हो ही सकता है। हिमाचल का युवा अधिकतर सेना व सुरक्षा बलों में अपना भविष्य तलाश रहा है, वहां पर भर्ती होने के लिए भी दौड़ की जरूरत पड़ती है, इसलिए भी दौड़ का अभ्यास राज्य में आसानी से हो सकता है…

सैकड़ों विद्यार्थियों में से कुछ दर्जन विद्यार्थी नब्बे प्रतिशत से अधिक अंक लेने वाले मिल जाते हैं, मगर लाखों विद्यार्थियों में भी एक प्रतिभावान खिलाड़ी कई बार नहीं मिल पाता है, इसलिए खेल प्रतिभा खोज अभियान का महत्त्व और भी बढ़ जाता है। लाखों किशोर व किशोरियों में कोई एक ही होता है, जिसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पदक जीतने की क्षमता होती है। भारत में व्यवस्थित खेल प्रतिभा खोज कार्यक्रम न होने के कारण भी खेलों का स्तर बहुत नीचे है। खेल प्रतिभा खोज के नाम से महज खानापूर्ति ही होती रही है। भारत सरकार ने सत्तर के दशक से पहले ही देश के दूरदराज में खेल प्रतिभा का पता लगाने के लिए अंडर-16 वर्ष के किशोर तथा किशोरियों के लिए खंड स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक विभिन्न खेलों के लिए प्रतियोगिताएं आयोजित करना शुरू कर दी थी। राष्ट्रीय व राज्य स्तर पर तो इन खेलों का आयोजन ठीक ढंग से होता था, मगर जहां असली प्रतिभा है खंड स्तर केवल दो चार स्कूलों के बच्चों की प्रतियोगिता करवाकर सैकड़ों स्कूलों के विद्यार्थियों को इससे वंचित रखता था। कई दशकों तक चली इस योजना का लाभ हिमाचल सहित देश के सभी राज्यों को थोड़ा बहुत ही मिल पाया। पिछले दशक में इस योजना का नाम राजीव गांधी खेल योजना रख दिया गया। पायका के नाम से भी इस योजना को पिछले दशक में जाना गया। इस अभियान को पंचायती स्तर पर शुरू करवाया गया, मगर परिणाम ज्यादा अच्छे नहीं रहे। अब इस सरकार ने पिछले वर्ष इस योजना को बंद कर दिया है। इस कार्यक्रम को अब ‘खेलो भारत’ के नाम से इस वर्ष शुरू करवाने की बात हो रही है। हिमाचल प्रदेश का अधिकांश भू-भाग पहाड़ी व दुर्गम है। यहां पर यातायात के साधन भी थोड़े महंगे हैं। खिलाड़ी का यात्रा भत्ता व उसका दैनिक खुराक भत्ता राज्य व राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं के लिए तो निश्चित होता है, मगर खंड स्तर पर होने वाली अधिक से अधिक भागीदारी के लिए वह ऊंट के मुंह में जीरे के समान होता है। यह भी बड़ा कारण है कि खंड स्तर पर कई प्रतिभावान किशोर व किशोरियों तक यह प्रतिभा खोज कार्यक्रम पहुंच ही नहीं पाता है। दूसरी तरफ स्कूली स्तर पर भी खंड स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक विभिन्न खेलों की खेल प्रतियोगिताएं आयोजित करवाई जाती हैं, मगर खंड स्तर के लिए यहां पर भी खानापूर्ति ही हो रही है। आठवीं तक के स्कूलों में निःशुल्क शिक्षा होने के कारण यहां पर भी धन का प्रावधान केवल सरकारी अनुदान पर भी निर्भर होता है। खंड स्तर पर अधिक भागीदारी के लिए अधिक धन की जरूरत होती है, मगर इतना धन उपलब्ध न होने के कारण कुछ चुनिंदा स्कूल ही खंड स्तर पर अपने कुछ विद्यार्थियों की भागीदारी सुनिश्चित करवा पाते हैं। होना तो यह चाहिए कि हर स्कूल का प्रत्येक विद्यार्थी खेल प्रतिभा खोज कार्यक्रम से गुजरे, इसके लिए स्कूल के मुख्य अध्यापक व शारीरिक शिक्षा के अध्यापक को सुनिश्चित करना होगा कि हर विद्यार्थी खेल प्रतिभा खोज कार्यक्रम से गुजरे, ताकि असली प्रतिभा छूट न जाए। सरकार को चाहिए कि वह खेल प्रतिभा खोज के लिए हर स्कूल को सालाना बजट में धन का प्रावधान करवाए। हिमाचल प्रदेश में किस-किस खेल में विशेष खेल क्षेत्र घोषित हुआ है, उस खेल का अधिक से अधिक प्रचार व प्रसार किया जाए। खंड स्तर पर उसके लिए बार-बार प्रतियोगिता करवाई जाए तथा हर स्कूल व पंचायत स्तर पर भी उस खेल विशेष के लिए ऐसा कार्यक्रम हो, जिसके अंतर्गत हर किशोर व किशोरी को मौका मिले। जैसे कि हिमाचल प्रदेश को मध्य व लंबी दूरी की दौड़ों के लिए सबसे उत्तम क्षेत्र माना गया है, तो राज्य खेल विभाग व शिक्षा विभाग को चाहिए कि वह दौड़ का आयोजन हर पंचायत स्तर पर महीने में एक बार जरूर करवाए, इससे किशोरों व किशोरियों को प्रतियोगिता में भागेदारी का जब मौका मिलेगा, तो वे उसके लिए अभ्यास शुरू कर ही देंगे। हिमाचल में आज हर गांव के लिए सड़क तो है, वहां पर दौड़ के अभ्यास का प्रारंभ हो ही सकता है। हिमाचल का युवा अधिकतर सेना व सुरक्षा बलों में अपना भविष्य तलाश रहा है, वहां पर भर्ती होने के लिए भी दौड़ की जरूरत पड़ती है, इसलिए भी दौड़ का अभ्यास राज्य में आसानी से हो सकता है। राज्य में कबड्डी, वालीबाल, हैंडबाल, हाकी आदि बहुत से खेल हैं, जिनमें हिमाचल के खिलाड़ी राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नाम कमा रहे  हैं, उन सभी खेलों में भी खंड स्तर से प्रतिभा खोज कार्यक्रम लागू करने के लिए जहां उन खेलों के संघों को कार्यक्रम बनाना होगा, वहीं पर राज्य खेल विभाग, राज्य शिक्षा विभाग तथा स्थानीय पंचायत व वहां के युवा व महिला मंडलों में समन्वय स्थापित होना बहुत जरूरी है। खेल संघों को चाहिए कि वे अपने जिला के सभी खंडों में खेल प्रतिभा खोज के लिए कार्यक्रम बनाएं तथा उसे लागू करवाने में सरकारी व गैर सरकारी सहायता लें। आज जब हर किशोर स्कूल जा रहा है तो स्कूल के मुखिया तथा शारीरिक शिक्षा के अध्यापक से इस कार्यक्रम के लिए सहायता लेकर प्रत्येक बच्चे के बैटरी टेस्ट करवाए जाएं और जो प्रतिभावान है, उसे प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल करे।

ई-मेलः penaltycorner007@rediffmail.com

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