गुम्मा बनाम कटासनी

By: Jun 5th, 2017 12:05 am

शिमला के गुम्मा में क्रिकेट की हरियाली पर खड़े सांसद अनुराग ठाकुर, फिर खेल को चरितार्थ करते हैं। करीब साढ़े पांच हजार फुट की ऊंचाई पर, क्रिकेट के सपनों की जमीन पैदा करना केवल जुनून का ही पुरस्कार है। जाहिर है अब जबकि गुम्मा में खेल का अभियान चलेगा, तो जनता इसका मुकाबला कटासनी में प्रस्तावित मैदान से भी करेगी। कटासनी खेल मैदान भी राजनीति की पलकों पर सवार रहा है और एक बार तो लगा कि धर्मशाला स्टेडियम से इसकी प्रतिस्पर्धा होगी, लेकिन यहां तो गुम्मा भी जीत गया। करीब पंद्रह सालों की कल्पना में विराजित कटासनी का मैदान अगर दो इंच जमीन एकत्रित नहीं कर पाया, तो हमारे खेल सरोकारों की हकीकत जरूर नजर आएगी। दूसरी ओर यह राजधानी शिमला की प्रतिष्ठा से जुड़ा प्रश्न भी है कि यहां राज्य स्तरीय खेल ढांचा तसदीक हो। हालांकि विवाद अनाडेल को लेकर भी रहा, लेकिन तत्कालीन धूमल सरकार इसे हासिल नहीं कर पाई। विडंबना यह है कि हिमाचल का खेल विभाग किसी योजना-परियोजना का खाका बना कर नहीं चल पाया और न ही स्वतंत्र व मौलिक कल्पना कर पाया। अब तो राजनीति के बिना खेल संसार के दर्शन ही नहीं होते और इसीलिए हुजूम के बीच खेल का जुनून कहीं अकेला तड़पता रहता है। खेल ढांचे की कमजोरी का सबब बनकर तमाम शैक्षणिक संस्थान खड़े हैं और विश्वविद्यालयों की धरती भी इस उद्देश्य  में कमजोर व खोखली ही साबित हुई। कई खेल हिमाचल में होते ही नहीं, जबकि जिनकी संभावना है, उन्हें देखा ही नहीं जा रहा। पौंग और गोबिंदसागर जलाशयों में जल क्रीड़ाओं की संभावना के बावजूद, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय ने इस आशय की खेल प्रतिस्पर्धाओं को ताले में बंद ही रखा। आश्चर्य यह कि पौंग जलाशय में गुरुनानक देव विश्वविद्यालय अपनी जल क्रीड़ा प्रतिस्पर्धाओं की तैयारी करता है और इसी तरह समर कैंप के आयोजन भी हिमाचल में ही करता है। बेशक साई व प्रदेश के कुछ खेल छात्रावासों की शरण में कुछ खिलाड़ी चमक रहे हैं, लेकिन सरकारों ने पर्वतीय वातावरण का फायदा नहीं उठाया। भारतीय खेल प्राधिकरण अपने राष्ट्रीय अभ्यास शिविरों के लिए धर्मशाला में जगह चाहता है, लेकिन वर्तमान सरकार इस परियोजना को आगे नहीं बढ़ा पाई। इसी तरह राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी पर सन्नाटा छाया रहा। बहरहाल अनुराग ठाकुर ने चुपके से क्रिकेट का एक और चिराग जलाकर साबित कर दिया कि ऐसे उद्देश्यों के लिए कहीं आंतरिक ताप भी चाहिए। यह खेल का ऐसा युग जरूर माना जाएगा, जो ठाकुर के साथ आगे बढ़ रहा है। यह दीगर है कि खेल और राजनीतिक खिलौने में काफी अंतर होता है, लेकिन विडंबना भी यही कि खेल के दस्तूर में सियासत का पलड़ा भारी पड़ रहा है। क्रिकेट के प्रगतिशील आयाम से राजनीति के धुरंधर बनने में अनुराग की पारी सशक्त रही है, लेकिन दो राहों के बीच टापू स्थापित करना इतना भी आसान नहीं कि एक साथ बसा जा सके। क्रिकेट संघर्ष की गाथा में किरदार रहे अनुराग के लिए बीसीसीआई का पद गंवाना, उनके सियासी दुर्ग को भी खिलौने की तरह देखता है। क्रिकेट के आकाश में यह युवा चेहरा हिमाचली आकांक्षा का द्योतक बनता है, लेकिन यही सफर राजनीति के क्षेत्र में कई प्रश्न पूछता है। गुम्मा में क्रिकेट की धूम मचाकर अनुराग का एक बड़े संकल्प की कहानी बनना स्वाभाविक सा लगता है, तो क्या राजनीति में सहज होना इतना आसान होगा। यह इसलिए भी कि क्रिकेट में अपनी स्वतंत्र छवि से यह युवा आगे बढ़ता है, लेकिन हमीरपुर संसदीय क्षेत्र में राजनीति की पृष्ठभूमि उनकी हस्ती से बड़ी उनके पिताश्री एवं पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के कारण हो जाती है। बहरहाल खेल में गुम्मा के अक्स को विस्तृत करके सांसद अनुराग ठाकुर ने प्रस्तावित कटासनी की सियासत को निचोड़ कर रख दिया है।

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