गेयटी थियेटर में खिले इंद्रधनुषी रंग

By: Jun 12th, 2017 12:05 am

पिछले दिनों  गेयटी थियेटर माल रोड शिमला में पुस्तक मेला लगा। साथ ही साथ विभिन्न विभागों के सहयोग से सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। इसका यहां के स्थानीय लोगों के साथ स्कूलों के बच्चों, बाहर से आए पर्यटकों ने भी भरपूर आनंद उठाया और फायदा लिया। अकादमी और विभाग की तरफ से करवाए गए साहित्यिक कार्यक्रमों से समकालीन हिंदी साहित्य के विविध आयामों का पता चला। देश प्रदेश और बाहरी देशों में साहित्य के विविध रंगों का रंगीन समावेश लिए हमारे साहित्यकार, बुद्धिजीवी, वरिष्ठ कविगण, कहानीकार, आलोचक, समालोचक, लेखकों ने संस्कृति लोक संस्कृति के इंद्रधनुषी रंग बिखेरे। कितना अच्छा साहित्य का मौसम शिमला के ऐतिहासिक गेयटी थियेटर में खिला रहा। पुस्तक मेले में हमने देखा बढ़-चढ़कर जनता ने हिस्सा लिया, जो भी पुस्तक मेला देखने गया, वह खाली हाथ नहीं लौटा। हमारा युवा वर्ग हो, बाल वर्ग हो या प्रौढ़ वर्ग सभी ने अपनी-अपनी पसंद और योग्यता के हिसाब से पुस्तकें खरीदीं। बच्चों का उत्साह देखते बनता था। इस मेले में बच्चों की रुचि की सब तरह की सामग्री थी, जिसे बच्चों ने खूब पसंद किया। बच्चों को खुश देखकर उनके माता-पिता भी खुश थे। आजकल इंटरनेट का युग है। बच्चे अपने मोबाइल, कम्प्यूटर और इंटरनेट में चिपके रहते हैं। लाख कहने पर भी सुनते नहीं, ऐसे माहौल में ऐसे पुस्तक मेले बच्चों के अंदर स्फूर्ति, जागरूकता, रुचि, पसंद और दिलचस्पी पैदा करते हैं। बच्चों का इस तरह पुस्तकों को देखकर उत्साहित और खुश देखकर मेरे मन को भी सुखद अनुभव हुआ। किताबों  को छूकर उन्हें उलट-पलट कर देखते रहना अच्छा लग रहा था, और भीतर मन आशावान भी हो रहा था कि बच्चों को किताबों के प्रति रुचि है और यही रुचि उन्हें आगे चलकर साहित्य से जोड़ेगी।

हमारे देश-प्रदेश में मेले, त्योहार मनाने का उद्देश्य   संस्कृति-लोक संस्कृति की परंपरा को जीवंत बनाए रखना है। हम बाजारवाद से हटकर जब मेले देखने जाते हैं तो लोक संस्कृति देखने को मिलती है। कहना अतिशयोक्ति न होगी कि मेलों में हमें लोक संस्कृति का असली रंग देखने को मिलता है, जिसमें बाहरी आवरण नहीं होता। हाथों से बनी चीजें, जिसे हस्तशिल्प भी कहा जाता है लोगों द्वारा बहुत पसंद की जाती हैं। ये हस्तशिल्प उत्पाद बहुत किफायती और उपयोगी होते हैं। मेलों का रंग इंद्रधनुषी रंगों की तरह होता है, जो बहुत दुर्लभ होता है। हम जैसे-जैसे आधुनिकता की तरफ बढ़ते जा रहे हैं ये इंद्रधनुषी रंग मिटते जा रहे हैं। आने वाले समय में लगता है दुर्लभ शब्द का उपयोग बढ़ता जाएगा, क्योंकि  बहुत सारी चीजें खोने के कगार पर खड़ी हैं। ऐसी स्थिति में बड़ी मुश्किल से ढूंढने से भी कभी-कभार तलाश पूरी नहीं होती। चाहे आप अपनी कुदरत को ही देख लीजिए। कुदरत के सुंदर पक्षी, कहां देखने को मिलते हैं, पशु, चीता, बाघ भी गिनती तक ही हैं। नदियां सूख गई-झरने मंद पड़ गए, रास्ते-पंगडंडियां, यादगारें सब मिट गईं। खो गई सारी सुंदर वादियां कंकरीट के जंगलों में। आधुनिकता का रंग ऐसे चढ़ा कि सुंदर इंद्रधुनषी रंग ही फीके हो गए, आसमान धुंधला हो गया, तारे खो गए, धरती धंस रहीं, प्रदूषित हवाओं, फिजाओं में दम घुटने लगा है। ऐसे में साहित्य-संस्कृति के रंग मेले, त्योहारों में जब देखने को मिलते हैं तो सकून मिलता है। हमारी विरासतें खो गई हैं, इन्हें बचाने की हमारी अकादमियां और विभाग प्रयासरत हैं।  गेयटी थियेटर में पुस्तक मेले के दौरान कई सांस्कृतिक व साहित्यक कार्यक्रम करवाने का यही उद्देश्य है कि हमारी संस्कृति, हमारा लोक साहित्य बचा रहे। बच्चों को प्रोत्साहित किया जा रहा है, उनके अंतर्मन में साहित्य के पुष्प खिल जाएं। उन्हें विभिन्न गतिविधियों में आमंत्रित कर उन्हें शामिल किया जा रहा है। आशा है इस जमीन पर साहित्य के अंकुरित बीज सुंदर फूल बनकर खिलेंगे।

वंदना राणा, सैट 3, टाइप 3, कैंडललोज, लौगवुड-171001

भारत मैट्रीमोनी पर अपना सही संगी चुनें – निःशुल्क रजिस्टर करें !


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App