घातक योजना के निशाने पर सेना

By: Jun 17th, 2017 12:05 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्रीमणि शंकर अय्यर पाकिस्तान में जाकर टीवी चैनल पर कहते हैं कि  यदि पाकिस्तान भारत के साथ मधुर रिश्ते चाहता है तो उसे मोदी सरकार को भारत की सत्ता से हटाना पड़ेगा  कार्यक्रम को संचालित कर रहे एंकरों को भी समझ नहीं आया कि इसमें पाकिस्तान क्या भूमिका अदा कर सकता है। इस गहरी योजना के पीछे के रहस्य और सच के बारे में तो केवल और केवल मणि शंकर अय्यर ही बता सकते हैं, लेकिन शायद चौथी पार्टी को लगा कि मणिशंकर की योजना को पाकिस्तान ने स्वीकार नहीं किया। अब क्या रणनीति हो सकती थी? अब केवल एक ही उपाय बचता था कि सीधा-सीधा भारतीय सेना पर  हमला किया जाए…

कश्मीर घाटी में पिछले दो तीन  दशकों से कुछ लोग पाकिस्तान व अन्य विदेशी शक्तियों की सहायता से भारत विरोधी आंदोलन चला रहे हैं। इनकी सहायता करने वाले समूह दो हिस्सों में बांटे जा सकते हैं। पहला समूह सीधे बंदूक के बल पर भारत को परास्त करना चाहता है। इसलिए वह हथियारों के बल पर स्थानीय लोगों को डराता धमकाता है। जो उनके साथ नहीं चलता उन्हें गोली मार देता है। इससे आम जनता में दहशत फैलती है। हाथ में बंदूक लेकर घूमने वाला यह समूह सुरक्षा बलों पर भी आक्रमण करता है। इसका आम लोगों पर गहरा मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। उसे लगता है बंदूक वाला यह समूह, सुरक्षा बलों से डरने की बात तो दूर, उनसे दो दो हाथ कर रहा है, तो सुरक्षा बल हमारी क्या रक्षा करेंगे? इस प्रकार आम जनता इन बंदूक वाले दहशतगर्दों के आगे असहाय अनुभव करती है। इसके बावजूद पर्दे के पीछे से दहशतगर्दों को संचालित करने वाली ताकतें जानती हैं कि बंदूक लेकर घूमने वाले इन छोटे-छोटे गिरोहों के बल पर घाटी में कश्मीरियों को परास्त नहीं किया जा सकता। कुछ देर के लिए डराया तो जा सकता है। कश्मीर घाटी में जो भारत का विरोध कर रहे हैं, वह अल्पसंख्या में हैं, लेकिन मुखर हैं क्योंकि उन्हें दहशतगर्दों की बंदूक का समर्थन प्राप्त है । बहुसंख्या दहशतगर्दों और दहशतगर्दी के खिलाफ है लेकिन वह साइलेंट मेजॉरिटी है, इसलिए दिखाई नहीं देती। घाटी में जब आतंकवादी आम कश्मीरियों को चुनाव में हिस्सा न लेने की चेतावनी देते हैं तो उसका उद्देश्य साफ है कि वे बंदूक के बल पर बहुसंख्यक कश्मीरियों को डराते हैं। बंदूक की गोली दूर से ही सबको सुनाई देती है लेकिन उसका मौन विरोध न तो किसी को सुनाई दे सकता है और न ही दिखाई दे सकता है। परंतु बंदूक की गोली से कश्मीर घाटी को भारत से तोड़ा नहीं जा सकता , इतना तो दहशतगर्दों और अलगाववादियों को पर्दे के पीछे से संचालित करने वाले भी जानते हैं । उनके अभियान को किसी न किसी रूप में सिविल सोसायटी का भी समर्थन चाहिए। उस समर्थन के कारण पूरा आंदोलन आतंकवादी आंदोलन न होकर जन आंदोलन का आभास देने लगता है ।

जाने -अनजाने में देश में सिविल सोसायटी के नाम पर ऐसे कुछ लोग सक्रिय हो जाते हैं, जिनकी हरकतों से आतंकवादियों को लाभ पहुंचता है और घाटी में उनका विरोध करने वाले बहुसंख्यक कश्मीरियों का मनोबल टूटता है। सुरक्षाबलों में निराशा फैलती है। कश्मीर घाटी में भी यही कुछ हो रहा है। घाटी के अलगाववादी समूह तो खुले आम आतंकवादियों के उद्देश्यों का समर्थन करते हैं। हुर्रियत कान्फ्रेंस इसका जीता जागता उदाहरण है। यह ठीक है कि घाटी में इसकी ज्यादा पैठ नहीं है। लेकिन आतंकवादियों का संचालन करने वाली विदेशी शक्तियों को भी चेहरे चाहिए, पैठ नहीं। हुर्रियत कान्फ्रेंस उनकी इस मांग की पूर्ति तो करती ही है।  कहीं न कहीं हुर्रियत कान्फ्रेंस भी आतंकवादियों की गोली के भाषा में ही मुखर होती है। कान्फ्रेंस में जो अलग भाषा बोलने की हिम्मत करता है उसे गोली से जन्नत पहुंचा दिया जाता है। घाटी के एक जाने पहचाने मीरवायज जनाब मोहम्मद फारुक को आतंकवादियों ने इसी लिए गोली मार दी थी। और लगभग दस साल बाद उनकी क़ब्र पर चंद फूल चढ़ाने के लिए गए अब्दुल गनी लोन की भी हत्या कर दी थी । इसलिए कहा जा सकता है कि हुर्रियत कान्फ्रेंस ऐसे लोगों का जमावड़ा, जिसका पिछवाड़ा आतंकवादी खेमे में रहता है और उसका मुंह सिविल सोसायटी में जाकर खुलता है। सिविल सोसायटी में घूमने वाले दूसरे समूहों में एक समूह या परिवार आसानी से पहचान में आता है। यह महरूम शेख अब्दुल्ला का कुनबा है।

इन समूहों की हरकतों से आम कश्मीरी को लगता है कि अलगाववादियों की ताकत बहुत बढ़ गई है और सरकार भी इनसे डरती है। जब गिलानियों और मीरवाइजों के आगे पीछे सुरक्षा बलों की गाडि़यां चलती हैं तो आम कश्मीरी में उनका रुआब बढ़ता है। तब बकरा पार्टी ही बाघ पार्टी दिखाई देने लगती है। इतना ही नहीं,इससे सुरक्षा बलों को लगता है कि जिन कश्मीरियों की सुरक्षा के लिए हम सीमा पर अपना खून वहा रहे हैं,वही हमें गालियां दे रहे हैं,पत्थर फेंक रहे हैं ।  तीसरा समूह उनका है जो अमरीका में जाकर गुलाम नबी फई के यहां दावत उड़ाते हैं । होटलों में दावते उड़ाने को वे सेमिनार का नाम देते हैं। इसमें भारत के पत्रकार भी शामिल होते हैं और सारे संसार के आगे चीख-चीख कर कहते हैं कि कश्मीर घाटी में भारतीय सेना आम कश्मीरियों के मानवाधिकारों का हनन कर रही है। घाटी में यह बात आम कश्मीरी भी नहीं कहता  व्यक्तिगत बातचीत में वह यही कहता है कि गिलानियों ने विदेशी आतंकवादियों के साथ मिल कर घाटी को नर्क बना दिया है, लेकिन फई के एयर टिकट पर होटल में उसी के पैसे से मुर्ग-मुस्ल्लम हलाल करने वाले कुछ भारतीय बुद्धिजीवी कश्मीर को कश्मीरियों से भी ज्यादा जान लेने का दावा करते हुए वही भाषा बोलते हैं जो उसी दावतनुमा सेमिनार में पाकिस्तान के छद्म बुद्धिजीवी बोलते हैं। यहां यह बताने की जरूरत नहीं कि इन आयोजनों का तमाम खर्चा इस्लामाबाद देता है । इन तमाम विपरीत परिस्थितियों में भी न तो आम कश्मीरी ने और न ही सुरक्षा बलों ने हिम्मत हारी। अत्यंत विपरीत परिस्थितियों में भी वे डटे रहे और इसके सकारात्मक नतीजे भी लोगों को अब दिखने लगे हैं। आतंकवादी और उनकी पूरी जमात इस समय कश्मीर में पूरी ताकत लगा रहे हैं लेकिन उनका अराजकता फैलाने का मंसूबा पूरा नहीं हो रहा है। इसलिए अब चौथी पार्टी मैदान में उतरी है। यह पार्टी सोनिया कांग्रेस की है, जिसके 550 की लोक सभा में फकत 44 सदस्य हैं।

इस चौथी पार्टी ने बिना लाग लपेट के सीधा-सीधा हमला बोला। यह पार्टी जानती है कि यदि अब भी हमला न बोला गया तो घाटी में आम कश्मीरी और सुरक्षा बलों की स्थिति मजबूत हो जाएगी। यदि ऐसा हो गया तो कांग्रेस के पास मोदी सरकार पर आक्रमण करने के लिए क्या बचेगा ? मणिशंकर अय्यर पाकिस्तान में जाकर टीवी चैनल पर कहते हैं कि  यदि पाकिस्तान भारत के साथ मधुर रिश्ते चाहता है तो उसे मोदी सरकार को भारत की सत्ता से हटाना पड़ेगा  कार्यक्रम को संचालित कर रहे एंकरों को भी समझ नहीं आया कि इसमें पाकिस्तान क्या भूमिका अदा कर सकता है। इस गहरी योजना के पीछे के रहस्य और सच के बारे में तो केवल और केवल मणि शंकर अय्यर ही बता सकते हैं, लेकिन शायद चौथी पार्टी को लगा कि मणिशंकर की योजना को पाकिस्तान ने स्वीकार नहीं किया। अब क्या रणनीति हो सकती थी? अब केवल एक ही उपाय बचता था कि सीधा-सीधा भारतीय सेना पर  हमला किया जाए। विदेशी आतंकवादी यह काम अपने हथियारों के बल पर करते हैं लेकिन चौथी पार्टी तो ऐसा नहीं कर सकती थी क्योंकि वह तो सिविल सोसायटी का हिस्सा है । उसे सेना का मनोबल गिराने के लिए केवल शब्दों का प्रयोग करना था । इस काम के लिए पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रवक्ता तथा सांसद संदीप दीक्षित को मंच पर उतारा गया। दीक्षित, दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला  दीक्षित के सुपुत्र है। सुपुत्र ने कहा कि भारतीय सेना के सेनापति सड़क छाप गुंडे जैसा प्रलाप कर रहे हैं। संदीप बाबू इतना तो जानते होंगे कि अपने सेनापति को गुंडा कहे जाने से सैनिक प्रसन्न तो नहीं होंगे। अलबत्ता इससे पाकिस्तान और अलगाववादी-आतंकवादी अवश्य प्रसन्न होंगे। कांग्रेस कश्मीर घाटी में आखिर क्या देखना चाहती है। मणिशंकर अय्यर से लेकर संदीप दीक्षित तक बरास्ता दिग्विजय सिंह का यह रहस्य सचमुच सिहरन पैदा करता है ।

ई-मेल : kuldeepagnihotri@gmail.com

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