चिंताजनक है असहमति से शत्रुता

By: Jun 12th, 2017 12:05 am

कुलदीप नैयरकुलदीप नैयर

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं

मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि ये मनगढ़ंत आरोप हैं। राधिका और प्रणव रॉय इस तरह के लोग नहीं हैं और उन्होंने खुद को अपने तरीके से गढ़ा है। उनसे कुछ तकनीकी गलतियां हो सकती हैं, लेकिन सीबीआई ने आरआरपीआर, प्रणव रॉय उनकी पत्नी राधिका रॉय तथा आईसीआईसीआई के अनाम अधिकारियों के खिलाफ षड्यंत्र रचने, धोखा देने और भ्रष्टाचार से संबंधित मामला दर्ज किया है…

केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो द्वारा एनडीटीवी के मालिकों पर सेबी से छिपाकर किए गए लेन-देन के मामले में छापा मारने की घटना को चैनल ने पुराने आरोपों के आधार पर शिकार करना कहा है। आरोप के अनुसार इससे एक निजी बैंक को 48 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। मैं चैनल के रुख से सहमति रखता हूं। चैनल की सह मालिकिन राधिका रॉय मेरे साथ इंडियन एक्सप्रेस में  कार्य कर चुकी हैं और मैं इस बात की कल्पना नहीं कर सकता कि वह इस तरह की किसी गतिविधि में संलिप्त होंगी। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि ये मनगढ़ंत आरोप हैं। राधिका और प्रणव रॉय इस तरह के लोग नहीं हैं और उन्होंने खुद को अपने तरीके से गढ़ा है। उनसे कुछ तकनीकी गलतियां हो सकती हैं, लेकिन सीबीआई ने आरआरपीआर, प्रणव रॉय उनकी पत्नी राधिका रॉय तथा आईसीआईसीआई के अनाम अधिकारियों के खिलाफ षड्यंत्र रचने, धोखा देने और भ्रष्टाचार से संबंधित मामला दर्ज किया है। आरोपों के मुताबिक, आरआरपीआर होल्डिंग्ज ने एनडीटीवी से 20 प्रतिशत शेयरों को खरीदने के लिए इंडिया बुल प्राइवेट लिमिटेड से 500 करोड़ रुपए उधार लिए। सीबीआई के आरोपों के मुताबिक आरआरपीआर होल्डिंग्ज ने इंडिया बुल प्राइवेट लिमिटेड के कर्जे को चुकाने के लिए आईसीआईसीआई से 19 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर पर 375 करोड़ रुपए उधार लिए। आरोपों के मुताबिक इसके बदले एनडीटीवी के प्रोमोटर ने आईसीआईसीआई को शेयरों में भागीदारी प्रदान की। जांच एजेंसी के मुताबिक शेयरों की यह हेरा-फेरी सेबी, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को बिना बताए की गई। इस तरह का छिपाव बैंकिंग विनियमन अधिनियम के अनुच्छेद 19 (2) का उल्लंघन है। जांच एजेंसी के अनुसार शेयरों की 30 प्रतिशत से अधिक हेर-फेर गैर कानूनी है, जबकि एनडीटीवी में 61 प्रतिशत तक शेयरों में बदलाव किया।

एनडीटीवी नेटवर्क के अनुसार पूरा कर्जा लौटा दिया गया है और इसके समर्थन में आवश्यक कागजात भी पेश किया। एनडीटीवी वेबसाइट के अनुसार ‘एनडीटीवी और उसके प्रोमोटरों पर  आईसीआईसीआई अथवा अन्य किसी बैंक का कर्ज बकाया नहीं है। वेबसाइट के इस कथन के अनुसार ‘हम सत्यनिष्ठा और स्वतंत्रता के उच्चतम मूल्यों का पालन करते हैं और स्पष्ट रूप से एनडीटीवी टीम की स्वतंत्रता और साहस को सत्तारूढ़ दल के राजनेता नहीं पचा पा रहे हैं। सीबीआई का छापा मीडिया को चुप कराने का महज एक अन्य प्रयास है। नरेंद्र मोदी सरकार पिछले काफी समय से एनडीटीवी चैनल के पीछे पड़ी हुई है, क्योंकि यह चैनल सरकार की सनक के अनुसार चलने को तैयार नहीं है। यह पहला मौका नहीं है, जब एनडीटीवी को निशाना बनाया गया है, इससे पहले 2016 में भी इस चैनल पर पठानकोट हमले के दौरान संवेदनशील तथ्यों के प्रसारण के कारण सरकार द्वारा एक दिन का प्रतिबंध लगाया गया था, जिसे चैनल ने न्यायालय में चुनौती दी थी। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने नवंबर 2016 में 24 घंटे के प्रतिबंध की घोषणा की थी। मंत्रालय के अनुसार चैनल ने पठानकोट हमले के दौरान रणनीतिक दृष्टि से संवेदनशील सूचनाओं का प्रसारण किया था, जबकि चैनल का दावा था कि एनडीटीवी का प्रसारण आधिकारिक सूचनाओं पर आधारित था और अन्य चैनलों ने भी इसी तरह की सूचनाओं का प्रसारण किया था। इसके बाद चैनल के प्रतिनिधि सूचना और प्रसारण मंत्रालय से मिले और अपना पक्ष रखते हुए कहा कि चैनल को अपना पक्ष उचित तरीके से रखने का मौका नहीं दिया गया।  इस प्रतिबंध की पत्रकारिता जगत में बहुत तीखी आलोचना की गई थी। अंततः सरकार को अंतिम समय में इस प्रतिबंध को हटाना पड़ा। उस समय एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने सरकार के इस कदम को अप्रत्याशित बताया था। गिल्ड ने तब टिप्पणी की थी कि सरकार स्वयं से असहमति रखने वाले समाचारों के कवरेज पर प्रतिबंधात्मक कार्रवाई को उत्सुक दिखती है। तब सूचना एवं प्रसारण मंत्री वेंकैया नायडू ने सरकार की आलोचना को राजनीति से प्रेरित बताते हुए कहा था कि यह कदम देश की सुरक्षा को ध्यान में रखकर उठाया गया है।

सीबीआई द्वारा हाल में मारे गए छापों के बाद भी वेंकैया नायडू का बयान कमोबेश वैसा ही था। उन्होंने इन छापों के पीछे राजनीतिक हस्तक्षेप होने की बात को अस्वीकार करते हुए कहा कि यदि कोई व्यक्ति कुछ गलत करता है तो सरकार केवल इसलिए शांत नहीं रह सकती कि वह मीडिया से जुड़ा हुआ है। उन्होंने कहा कि कानून अपना कार्य कर रहा है। मैं कानून द्वारा अपना कार्य किए जाने के विरोध में नहीं हूं। लेकिन अन्य पत्रकारों की तरह मैं भी यह जानना चाहता हूं कि चैनल ने ऐसा क्या किया है, जिसके कारण वह सरकार के कोपभाजन का शिकार हुआ है। यह बिलकुल स्पष्ट है कि शीर्ष स्तर से संकेत मिले बिना ऐसा कदम नहीं उठाया जा सकता। सूचना और प्रसारण मंत्रालय तो बाहरी दिखावा मात्र है, उसे भी कहीं से आदेश मिला होगा। सरकार विरोधी स्वरों को चुप कराने के लिए देशद्रोह संबंधी कानून का सहारा ले रही है। जबकि एक तथ्य यह भी है कि 2005 में सूचना के अधिकार के अस्तित्व में आने के बाद से 51 से अधिक सूचना मांगने वाले कार्यकर्ताओं की हत्या हो चुकी है। एनडीटीवी के कवरेज के कराण मोदी की हिंदू राष्ट्रवादी पार्टी के सदस्य काफी व्यथित थे। ये लोग एनडीटीवी को भाजपा विरोधी मानते हैं। छापे के ठीक एकदिन पहले एनडीटीवी के एंकर ने भाजपा के प्रवक्ता को तब चैनल पर प्रसारित हो रहे एक कार्यक्रम को छोड़कर जाने के लिए कहा था, जब उन्होंने कहा कि यह चैनल एक विशेष ‘एजेंडे’ के साथ कार्य कर रहा है। एक तरफ मोदी, लोकतंत्र के सशक्तिकरण की बात कर रहे हैं और दूसरी तरफ वह इसे कमजोर करने के लिए सब कुछ कर रहे हैं। अपने पसंदीदा कार्यक्रम ‘मन की बात’ में मोदी ने कहा था कि एक जीवंत लोकतंत्र के लिए, स्वस्थ आलोचना बहुत आवश्यक है। हालांकि, इसके उलट इस सरकार द्वारा उठाया जा रहा प्रत्येक कदम, विशेषकर मीडिया पर हमला तानाशाही को बढ़ावा दे रहा है। लोगों पर से उनके जादू का असर धीरे-धीरे खत्म हो रहा है।  इस बात को जितनी जल्दी वह महसूस कर लेगें, उनके तथा उनके समर्थकों के लिए यह उतना ही अच्छा होगा।

 kuldipnayar09@gmail.com

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