जवाबदेही से तय होती है पत्रकारीय स्वतंत्रता

By: Jun 16th, 2017 12:05 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

newsताकतवर लोगों के साथ संबंध बनाना मीडिया के लिए आवश्यक है, लेकिन इसके साथ ही पेशेवर नैतिकता को बनाए रखना भी मीडया की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। दिल्ली में ऐसे चिन्हित स्थान है, जहां पर पत्रकारों द्वारा बड़े-बड़े सौदों को अंजाम दिया जाता है। अब पत्रकार  मोदी के साथ विदेशों में सैर-सैपाटा करने का मौका नहीं पा रहे हैं। मोदी ने इस विलासी जश्न की प्रथा पर रोक लगा दी है तो कुछ लोग उन्हें तानाशाह बता रहे हैं…

एनडीटीवी के सहसंस्थापकों के आवास पर सीबीआई के हालिया छापे से प्रेस की स्वतंत्रता को लेकर कुछ मूलभूत प्रश्न उठ खड़े हुए हैं। हालांकि सीबीआई ने इसे पर्याप्त रूप से स्पष्ट किया है कि छापे किसी मीडिया कार्यालय पर नहीं डाले गए हैं। एनडीटीवी मामले का समाचार अथवा उसके प्रस्तुतिकरण से कोई लेना-देना नहीं है। मामले का संबंध शेयर हस्तांतरण, वित्तीय लेन-देन तथा धोखाधड़ी से है। एक अंश धारक ने न्यायालय में धोखाधड़ी का केस किया था और उसकी सुनवाई करते हुए न्यायालय ने सीबीआई जांच का आदेश दिए थे। इस जांच का आदेश सरकार की तरफ से नहीं मिला था और सीबीआई इस बात को स्पष्ट कर चुकी है कि वह प्रेस की स्वतंत्रता का पूरा सम्मान करती है और वह एनडीटीवी आफिस में प्रवेश किए बगैर अपने विधिक दायित्व का निर्वहन कर रही है। इस छापे के बाद प्रेस की स्वतंत्रता पर आक्रमण को मुद्दा बनाकर काफी हो हल्ला मचाया गया, जिसका सच्चाई से कुछ लेना-देना नहीं था। सच्चाई यह हो सकती है कि कुछ सांप्रदायिक और जातिवादी लेखक अब विद्वेष फैलाने में खुद को अक्षम पा रहे हैं और इसी कारण उन्हें घुटन हो रही है। मजेदार बात यह है कि पूर्व की भाजपा सरकार में मंत्री रह चुके दक्षिणपंथी अरुण शौरी ने इस घटना के बारे में कहा है कि सरकार बंदरों को डराने के लिए चूजों को मार रही है। जब केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मनोरोगी बताया था, तब कई अन्य नेताओं ने बड़बोलापन दिखाते हुए असभ्य और आपत्तिजनक टिप्पणियां की थीं।

प्रधानमंत्री के प्रति इस तरह के लेखन अथवा शब्दों का उपयोग इससे पहले कभी भी नहीं हुआ था, लेकिन प्रधानमंत्री ने स्वयं इसकी उपेक्षा की। फिर यह कदम प्रेस की स्वतंत्रता पर हमला कैसे हो जाता है। पार्थ चटर्जी सभी सीमाओं को लांघते हुए भारतीय सेना प्रमुख की तुलना उस आततायी जनरल डायर से कर देते हैं, जिसने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अमृतसर के जलियांवाला बाग में सैकड़ों निहत्थे और निर्दोषों का नरसंहार किया था। क्या यह उस व्यक्ति के अपमान करने की धृष्टता नहीं है जो एक कठिन लड़ाई लड़ रहा है और उसके आदमी पत्थरबाजों को जवाब न दिए जाने की बाध्यता के कारण पत्थरों से घायल होने के लिए अभिशप्त हैं। एक रोचक बात यह है कि इस टिप्पणी से पहले पार्थ चटर्जी के बारे में बहुत सारे भारतीय कुछ भी नहीं जानते थे। अब भी उनके खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया गया है। बिना किसी तार्किक आधार के लोगों के बीच आई उनकी टिप्पणी उनके लिए लोकप्रियता का पासपोर्ट बन गई। फिर भी उनके खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया गया। क्या यह प्रेस की स्वतंत्रता का दुरुपयोग नहीं है। भारतीय प्रेस स्वतंत्र है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षणों के अनुसार विश्वसनीयता का घोर अभाव है। जिम्मेदारी के भाव के साथ ही स्वतंत्रता की बात की जा सकती है। उदाहरण के लिए कई पत्रकार संवेदनशीलता को समझे बगैर बिना किसी निषेध के सांप्रदायिक मामलों की रिपोर्टिंग करते हैं। इससे कोई भी उद्देश्य पूरा नहीं होता है। एक रिपोर्ट कहती है कि चार मुस्लिम और एक गैर मुस्लिम की हत्या हो गई। इसे यह क्यों नहीं लिखा जा सकता कि पांच लोगों की हत्या हो गई।  वामपंथ की तरफ झुकाव रखने दर्जनों ऐसे लेखक हैं खुद द्वारा स्वीकृत तथ्य को ही अंतिम सत्य की तरफ परोसते हैं। ऐसे लेखकों के बारे में कोई भी यह आसानी से भविष्यवाणी कर सकता है कि वह क्या किसी घटना को लेकर क्या लिखेंगे। प्रेस के पास अभिमतों को दूसरों तक पहुंचाने का दायित्व है लेकिन समाचारों को निष्पक्ष तरीके से लोगों तक पहुंचाया जाना चाहिए। दोनों के बीच विभाजन होना चाहिए, लेकिन आजकल यह विभाजन रेखा धुंधली होती जा रही है। मेरी मान्यता है कि पत्रकारों को ऐसी वित्तीय लेन-देन से बचना चाहिए, जो प्रश्नों के दायरे में हों। इस बिंदु पर रॉय और उनके सहयोगी विफल साबित हुए।

यदि उनका आचरण इतना ही पाक साफ रहता तो उनके खिलाफ कोई आरोप नहीं लगते। फिर भी उनके पास न्यायालय का दरवाटा खटखटाने का विकल्प है, हालांकि सीबीआई न्यायलय के आदेश पर ही जांच को आगे बढ़ा रही है। मैं दिल्ली के ऐसे दर्जनों पत्रकारों को जानता हूं जो मेरे आफिस के सामने घंटों इंतजार करते थे लेकिन अब उनके पास मर्सिडीज हैं और अब मुझे प्रेस क्लब के बाहर टैक्सी का इंतजार करना पड़ता है। संपन्न बनने के लिए किसी को राडिया के रास्ते को अपनाना जरूरी नहीं है, जिन्होंने ऐसे दर्जनों पत्रकारों के नाम लिए थे जो सत्ता की मलाई खाने में व्यस्त थे और सत्ता के लिए काम कर रहे थे। ताकतवर लोगों के साथ संबंध बनाना मीडिया के लिए आवश्यक है, लेकिन इसके साथ ही पेशेवर नैतिकता को बनाए रखना भी मीडिया की बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। दिल्ली में ऐसे चिन्हित स्थान हैं, जहां पर पत्रकारों द्वारा बड़े-बड़े सौदों को अंजाम दिया जाता है। अब वह मोदी के साथ विदेशों में सैर-सैपाटा करने का मौका नहीं पा रहे हैं। मोदी ने इस विलासी जश्न की प्रथा पर रोक लगा दी है तो कुछ लोग उन्हें तानाशाह बता रहे हैं। इसके कारण पत्रकार खाने-पीने और सैर-सपाटे से ही नहीं वंचित हुए हैं, बल्कि उनके सौदेबाजों से मिलने के अवसर भी सिमट गए हैं। मीडिया को मिली स्वतंत्रता लेखन और कर्म से संबंधित नैतिकता के उच्च मानदंडों को बनाए रखने की जिम्मेदारी भी उस पर डालती है, ताकि उसकी मूल्यों से जुड़े होने की प्रतिष्ठा बची रहे।

बस स्टैंड

पहला यात्रीः टनों ओले गिरने के कारण यदि शिमला में एंटी हेलगन काम नहीं करेगी तो सरकार क्या करेगी?

दूसरा यात्रीःतब सरकार को एंटी हेलगन के स्थान पर एंटी फेलगन के लिए आदेश देना पड़ेगा।

ई-मेलः singhnk7@gmail.com

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