तारा तारिणी शक्तिपीठ

By: Jun 24th, 2017 12:08 am

asthaसती के शरीर के विभिन्न अंश से 52 मुख्य शक्तिपीठ सामने आए और उनमें चार को मुख्य शक्तिपीठ के रूप में मान्यता मिली, जो बाद में प्रसिद्ध शक्तिपीठ के रूप में विख्यात हुए। इस मंदिर में दो देवियों की प्रतिमा है मां तारा और मां तारिणी…

पुराणों में वर्णित स्तनपीठ तारा तारिणी भारत के मुख्य शक्तिपीठों में से एक है। ओडिशा प्रदेश के गंजाम जिले में ब्रह्मपुर शहर के पास यह पीठ स्थित है। यह प्राचीन शक्तिपीठ ऐतिहासिक स्मृतिपीठ एवं मौर्य सम्राट अशोक के शासनकाल में लिखित जौगड़ अभिलेख व वेदों में वर्णित प्रसिद्ध पवित्र नदी ऋषिकुल्या के निकट स्थित है। हजारों वर्ष पहले से तारिणी पर्वतकुमारी, पर्वतरत्नगिरी के ऊपर ब्रह्ममयी आद्यशक्ति, द्वितीय महाविद्या व तारा तारिणी के रूप में स्थापित है। तांत्रिक उपासना की दस महाविद्याओं में से देवीतारा दूसरी महाविद्या हैं। कल्याणमयी देवी और कल्याणकारी ऋषिकुल्या नदी के कारण इस जगह को कल्याणी धाम के रूप में भी जाना जाता है। तारा तारिणी पीठ का इतिहास दक्ष प्रजापति के यज्ञ के साथ जुड़ा हुआ है। एक बार दक्ष प्रजापति ने एक महायज्ञ का आयोजन किया, जिसमें सभी देवता व ऋषियों को आमंत्रित किया गया, लेकिन जान बूझकर शिव व सती को आमंत्रित नही किया गया। देवी सती ने देवर्षि नारद से यह बात सुनकर यज्ञ स्थल तक जाने के लिए शिव से अनुरोध किया, लेकिन बिना निमंत्रण वहां जाना ठीक नहीं होगा, सोचकर शिव वहां पर नहीं गए और सती को भी जाने की अनुमति नहीं दी। इसके बावजूद देवी सती यज्ञ स्थल पर गईं और पिता दक्ष से निमंत्रण न देने का कारण पूछा। दक्ष के द्वारा शिव के प्रति अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किए जाने पर देवी सती यह सहन नहीं कर पाई और हवन कुंड में कूद गईं। भगवान शिवजी माता सती के शरीर को लेकर तांडव करने लगे। इस वजह से संसार प्रलय की ओर अग्रसर हो गया, तब शिवजी के कोप से सृष्टि को बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को विखंडित कर दिया। शरीर के विखंडित अंश विभिन्न स्थानों पर गिरे और शिवजी का कोप शांत हुआ और वे महासमाधि में चले गए। सती के शरीर के विभिन्न अंश से 52 मुख्य शक्तिपीठ सामने आए और उनमें चार को मुख्य शक्तिपीठ के रूप में मान्यता मिली। जो बाद में प्रसिद्ध शक्तिपीठ के रूप में विख्यात हुए। इस मंदिर में दो देवियों की प्रतिमा है मां तारा और मां तारिणी। स्थानीय लोगों के द्वारा इन दोनों देवियों को आदिशक्ति का स्वरूप माना जाता है।

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