नदी में अठखेलियां
ब्यास नदी में उतरा मन
ऊपर आकाश में
डोलता पैराग्लाइडर।
पहाड़ की चोटियां
झाड़ती बर्फ
जिस ओर देखें
सब बुलाती अपनी तरफ।
स्वच्छ धारा और मचलती लहरें
उछल-उछल कर कहती
हम से हैं बहारें।
बाहें पसार स्वागतरत
डोलता, तैरता राफ्ट
अभिमंत्रित करती अठखेलियां
धार में ध्वनि ओज माधुर्य व्याप्त।
विभोर मन
अपने तहखाने खोल
कहता छोड़ अहं
स्वरलहरियों संग डोल।
जी का ठौर नहीं
पल में कहां से कहां
पहुंच जाता पुलक-पुलक कर
सब विस्मृत केवल खुशी जहां।
सेब, पलम, अनार के
परागण की मादक गांध
रचते जीवन के
नए-नए छंद।
कलाबाजियां दिखाता पैराग्लाइडर
रंगीन पतंग सी पड़ती छाया
पेड़ों की ओट में
जैसे नदी में उतरी हो माया।
गठबंधन आकाश और
जल के नीलेपन का
सूए की चोंच का रंग
टीप देता बेड़े के फन का।
देखता जो भी जल और थल
नहीं रह पाता अनजान
क्या बंगाली, बिहारी, उडि़या
या गुजराती, मराठी सब समान।
बीकानेरिया हैरता आंखें फाड़े
पंजाबी, हरियाणवी, तेलुगू
अथवा तमिल, मलयालम, कन्नाडिगा
सब कहते थैंक यू।
-शेर सिंह, नाग मंदिर कालोनी, शमशी, कुल्लू
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