पड्डल मैदान के अपराधी

By: Jun 15th, 2017 12:03 am

किसी खेल मैदान के कारण प्रतियोगिता का हारना प्रदेश के लिए शोभा नहीं देता, लेकिन पड्डल मैदान ग्रीष्मकालीन फुटबाल के लिए खुद को अयोग्य साबित कर चुका है। मंडी में अखिल भारतीय ग्रीष्मकालीन फुटबाल प्रतियोगिता का मैदान व्यवस्था के कारण रद्द होना खिलाडि़यों, ख्रेल प्रेमियों के अलावा हिमाचल की छवि के लिए असहज व असहनीय है। विडंबना यह कि करीब अर्द्धशताब्दी से आयोजित फुटबाल प्रतियोगिता को हम एक सुविधाजनक मैदान उपलब्ध नहीं करवा पा रहे हैं। पड्डल की व्यथा भी यही है कि इसकी आत्मा में मेलों की कीलें चुभी हैं और भविष्य में स्थिति के संवरने की नाउम्मीदी बढ़ती जा रही है। हमें फैसला यह करना है कि इस मैदान को किस हद तक खेलों के लिए बचा कर रखा जाए। कमोबेश ऐसी ही परिस्थितियों में सोलन, चंबा, कुल्लू, सुजानपुर टीहरा के मैदान हैं, जबकि ऊना के इंदिरा, हमीरपुर कालेज व धर्मशाला पुलिस मैदान की उपयोगिता खेलों की दृष्टि कुछ मायनों में बेहतर है। यह दीगर है कि हिमाचल के खेल विभाग की मिलकीयत में ढंग का एक भी खेल स्टेडियम नहीं जुड़ा और इसलिए यह अंतर करना मुश्किल है कि किस मैदान को बेहतर दर्जा दिया जाए। हैरानी तो यह कि विभिन्न विश्वविद्यालयों और कालेज परिसरों में भी खेल ढांचा इस लायक नहीं कि खिलाडि़यों का प्रोत्साहन हो सके। ऐसे में क्रिकेट संघ की बदौलत कुछ मैदान संवरे और धर्मशाला, नादौन, बिलासपुर तथा शिमला में उपयुक्त सुविधाएं मुहैया हुई हैं। यही वजह है कि पर्यटन सीजन के दौरान अकेले अपने दम पर धर्मशाला स्टेडियम रोजाना पांच हजार पर्यटकों को आकर्षित करता है। खेलों के प्रति हिमाचली प्रतिभा का विश्लेषण किसी प्रतियोगिता के मार्फत ही होगा, इसलिए सरकारी व गैर सरकारी सहयोग अभिलषित है। प्रदेश के कुछ प्रमुख सहकारी बैंकों, बोर्ड-निगमों व विद्युत परियोजनाओं के साथ खेल ढांचे की बुनियाद रखी जा सकती है, जबकि ग्रामीण व शहरी विकास मंत्रालयों को अपने स्तर पर यही खाका पुष्ट करना होगा। मंडी जैसे सांस्कृतिक शहर के लिए यह असंभव सी लकीर है कि पड्डल के किस भाग पर मेलों का तंबू या गोल पोल गाड़े। आश्चर्य यह कि फैलते शहर की योजना में पड्डल से नवनिर्माण जमीन तो छीनता रहा, लेकिन सांस्कृतिक, सामाजिक व व्यापारिक गतिविधियों के लिए कोई अन्य विकल्प नहीं ढूंढ पाए। हम पिछले एक दशक से शहरी भूमि बैंक के जरिए भविष्य को रेखांकित करती आवश्यकताओं का जिक्र कर रहे हैं, लेकिन राहत का कोई पैगाम नहीं मिला। इस चुनौती को समझते हुए हर शहर को अपनी चारों दिशाओं में कम से कम एक-एक सामुदायिक मैदान विकसित करने होंगे, ताकि खेल ढांचा सुरक्षित बचा रहे। हिमाचल के ऐतिहासिक व सामुदायिक मैदानों की प्रवृत्ति में यह तय करना होगा कि भविष्य में इनका कैसे इस्तेमाल किया जाए। अगर पड्डल शिवरात्रि समारोह की संपत्ति मानें, तो मंडी में अलग से खेल मैदान विकसित किया जाए, अन्यथा इस मैदान से मेलों की कीलें हटानी पड़ेंगी। प्रदेश में खेल संघों की निष्क्रियता और इनके भीतर सियासी मंचन अगर नहीं टूटता है, तो नुकसान खेल और खिलाड़ी का ही होगा। मंडी में फुटबाल प्रतियोगिता का न होना, उस जोश व जुनून के प्रति अपराध है, जो युवा खिलाडि़यों को मेहनत करते देखता है। प्रदेश सरकार पुलिस, व्यापारिक, शहरी व वित्तीय संस्थानों की मदद से खेल ढांचे को प्रश्रय दे सकती है। एक बार खेलों के राष्ट्रीय आयोजन का दावा अगर हिमाचल सरकार करे तो एक साथ आठ-दस स्थानों पर खेल ढांचा विकसित होगा। धर्मशाला पुलिस मैदान आसानी से चालीस-पचास हजार की क्षमता में मुख्य आयोजन का ढांचा खड़ा कर सकता है, जबकि कुल्लू, मंडी, हमीरपुर, बिलासपुर, ऊना, पालमपुर, चंबा तथा सोलन में विभिन्न खेलों के हिसाब से स्टेडियम विकसित हो पाएंगे। सरकार को चाहिए कि सबसे पहले वर्तमान मैदानों की मिलकीयत का स्पष्ट निर्धारण करे। अगर ये मैदान खेलों के लिए इस्तेमाल करने हैं, तो इनका वजूद केवल खेल विभाग की अमानत से ही तय होगा। बहरहाल चिंता का विषय यह है कि मंडी में राष्ट्रीय प्रतियोगिता न होने से जो नाक कटी है, उसकी भरपाई के लिए हिमाचल के पास कोई अन्य विकल्प नहीं है।

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