परदे पर भाषायी द्वंद्व

By: Jun 5th, 2017 12:05 am

‘हिंदी मीडियम’ ने यह साबित कर दिया है कि हिंदी मात्र भाषा नही है। यह एक जीवन-पद्धति है। इसमें एक-दूसरे के प्रति  सुख-दुख बांटने और सहानुभूति दिखाने की ही बात नहीं है, अपितु   एक-दूसरे के लिए जान तक दांव पर लगाने की प्रबलतम भावना विद्यमान है…

भाषायी द्वंद्व में फंसे करोड़ों मध्यमवर्गीय भारतीय परिवारों को फिल्म ‘हिंदी मीडियम’ ने भाषयी संदर्भ में सोचने के लिए विवश कर दिया है। भाषा को लेकर अपनी तरह की इस  पहली फिल्म में हिंदी के बहाने  भारतीय जीवन-दर्शन और भावना के संसार को भी सही परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया गया  है। 1934 में लार्ड मैकाले ने जहां भारतीय भाषा और संस्कृति को अत्यंत संपन्न बताया, वहीं उसको भ्रष्ट करने के उपाय भी सुझाए। उसने भारतीय भाषा और संस्कृति को  पाश्चात्य भाषा और संस्कृति से  घटिया आंक कर भारतीयों के  मस्तिष्क में इस बात को भर देने के कई उपाय किए।  भारतीयों को शासन व्यवस्था के साथ-साथ मानसिक रूप से भी इसका गुलाम बना देना उसका उद्देश्य था। अंग्रेजी शासन व्यवस्था ने इसी विचारधारा को प्रचारित और प्रसारित किया । यही कारण है कि आज  भारतीय जनमानस में भाषा के प्रति एक पूर्वाग्रह रच-बस गया है। भारत को एक सूत्र में पिरोने के लिए और मैकॉले प्रदत्त सोच को तहस-नहस करने के लिए एक समावेशी भाषा की कल भी आवश्यकता थी और आज भी है। इस आवश्यकता को स्वर देते हुए फिल्म  ‘हिंदी मीडियम’ ने यह साबित कर दिया है कि हिंदी मात्र भाषा नही है। यह एक जीवन-पद्धति है। इसमें एक-दूसरे के प्रति  सुख-दुख बांटने और सहानुभूति दिखाने की ही बात नहीं है, अपितु   एक-दूसरे के लिए जान तक दांव पर लगाने की प्रबलतम भावना विद्यमान है।  उपलव्ध आंकड़ों के अनुसार जापानी विश्व मे सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषाओं में,   लगभग नौ से दस करो? जनसंख्या के साथ नौवें स्थान पर है परंतु इस देश को प्रगति के लिए किसी अन्य भाषा की कोई आवश्यकता नहीं पड़ी। फ्रेंच मात्र साढ़े सात या आठ करोड़ जनसंख्या के साथ अठारहवें  स्थान पर है। इसी फ्रेंच भाषा में लिखा वाक्य ‘राज करना मेरा अलौकिक अधिकार’ अंग्रेजी साम्राज्य के सम्राट की पोशाक पर अंकित रहता है। क्या यह जानना कम रोचक नहीं कि जिस अंग्रेजी के पीछे अधिकतर लोगों की दौड़ है, वह अंग्रेजी इंग्लैंड और अमेरिका में प्रतिष्ठा का प्रतीक लैटिन रही है।  इंग्लैंड पर शासन करने वाले नॉर्मन राजाओं ने सैकड़ों वर्षों तक न तो स्वयं को अंग्रेज कहा और शायद उनको अंग्रेजी आती तक न थी ।  भारतीय सेना में अनेकों भाषाओं और बोलियां बोलने वाले सैनिक बिना किसी परेशानी से एक ही भाषा हिंदी द्वारा निर्देश लेते और देते हैं। इसी एक भाषा हिंदी के द्वारा निर्देशित होने पर ही समस्त सेना का समन्वय अत्यंत सफल और प्रभावी होता है। किसी भी अवस्था मे भाषा कोई बाधा नहीं बनती। शांति और युद्धकाल में सेना के आपसी संवाद में कोई समस्या उत्पन नही होती।  इसके बावजूद भी सैनिकों का अपनी स्थानीय भाषा और बोली से कोई दूरी या भटकाव नहीं होता। यह भी एक तथ्य है कि हिंदी शांति की भाषा है। इतिहास साक्षी है कि भारत ने कभी विस्तारवादी नीतियों को न अपनाया और प कभी किसी पर आक्रमण नहीं किया। इसके उलट मुस्लिम और अंग्रेज शासकों ने भारत और अन्य देशों पर पर बार -बार आक्रमण किए । इसका ही परिणाम था कि उन्नीसवीं शताब्दी में उपनिवेशवाद के कारण अंग्रेजी  का प्रचार-प्रसार हुआ। आज अधिकतर कामनवेल्थ देशों में अंग्रेजी का प्रभाव है। वर्तमान में एक राष्ट्र, एक मूल्य के सिद्धांत को अपनाते हुए लिए जीएसटी को एक जुलाई 2017 से लागू किया जा रहा है, ठीक इसी तरह एक राष्ट्र एक भाषा के सिद्धांत को भी लागू किया जाना चाहिए। इसके साथ-साथ स्थानीयों बोलियों और भाषाओं  को भी भरपूर सरंक्षण मिलना चाहिए। स्थानीय संस्कृति को स्थानीय बोलियां और भाषा मे ही सरंक्षित किया जा सकता है।  भारत में भाषायी विविधता, एकता की विरोधी नहीं बल्कि उसकी पूर्व शर्त है और इस विविधता को एक माला में पिरोने वाला भाषायी सूत्र हिंदी से बनाता है।

सत्येंद्र गौतम, धर्मशाला

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