पानी की भूख से संकट में भविष्य

By: Jun 14th, 2017 12:05 am

बचन सिंह घटवाल लेखक, मस्सल, नगरोटा से हैं

पेयजल की अनदेखी व नलों के अतिरिक्त जल को घर में व्यर्थ न बहाने की सोच पर आज पूर्णतया अंकुश लगाने की जरूरत है। जलीय स्रोत सिमट कर न रह जाएं और हमारी भावी पीढ़ी जल की विकट समस्या से जूझते हुए हमें कोसे न, इस हेतु जल स्रोतों व नदियों के संरक्षण हेतु एक अतिरिक्त कदम आगे बढ़ाना नितांत आवश्यक है…

जल प्रवृत्ति का अनमोल वरदान है। मानव हमेशा से इस बात पर बल देता रहा है कि जल है तो जीवन है। कवियों-लेखकों द्वारा भी जल को जीवन के साथ परिभाषित किया जाता रहा है, तभी तो रहीम जी कहते हैं कि ‘रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून’। इसमें संदेह नहीं है कि प्रकृति में पानी का महत्त्व जीवन दायिनी धारा के रूप में परिलक्षित होता है, जिसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं का जा सकती। पृथ्वी के कुल भू-भाग में 71 प्रतिशत भाग में जल का ही अधिपत्य है, परंतु पृथ्वी पर पीने योग्य जल की मात्रा केवल तीन प्रतिशत ही है। यह तीन प्रतिशत उपलब्ध जल की मात्रा का संचय 69 प्रतिशत ग्लेशियरों, 30 प्रतिशत भूमिगत जल व एक प्रतिशत नदियों व झीलों के रूप में हमारी पृथ्वी पर है। आज हमारे देश में उपलब्ध जल की मात्रा में भयावह गिरावट दर्ज की जा रही है। ग्रीष्म ऋतु के आगमन पर जल की समस्या और भी भयानक रूप ले लेती है, जिसके कारण मनुष्य, पशु, पक्षी व जल पर निर्भर जीवों पर संकट के बादल मंडराना शुरू हो जाते हैं। हिमाचल प्रदेश के संदर्भ में जल के भंडारों का आकलन करें तो हमारी नदियां, झीलें व प्राकृतिक जल स्रोतों का अथाह भंडार है। बांधों के रूप में भी प्रदेश में जल संचय भंडारों की कमी नहीं है। छोटे-छोटे जल प्रपात व ऊंची-ऊंची पहाडि़यों से बहती जल धाराएं हिमाचल के स्वरूप को सुंदरता का आवरण प्रदान करती हैं यह हमारे लिए सुकून की बात है।

इस बात के दूसरे पहलू के रूप में देखें तो हमारे कुछ जिले जल प्राप्ति हेतु नदियों के प्रवाह से दूर भी हैं, जहां मौसम परिवर्तन पर व्यक्ति बादलों और वर्षा की फुहारों का इंतजार करता रहता है। ऐसे में आज जीवन को सुलभ बनाने हेतु विभिन्न पेयजल योजनाओं के अंतर्गत उन प्यासे गांवों को जल आपूर्ति को सुनिश्चित करने का प्रयास जारी है। जहां विकास का पहिया नहीं घूमा है, वहां प्राकृतिक बावडि़यों और कुओं का सहारा यहां के जनमानस को तृप्ति प्रदान करता रहा है। वर्तमान समय में प्राकृतिक स्रोतों के अलावा नल का पानी हमारे जल की आपूर्ति का विकल्प बन गया है और इस पर आश्रित आज के मानव ने प्राकृतिक बावडि़यों और कुओं की तरफ से अपना ध्यान हटा लिया है, जिसकी वजह से अनदेखी का शिकार हो रहे ये जल स्रोत सिमटना प्रारंभ हो गए हैं। गांवों, कस्बों, वनों व सड़कों के किनारे व्यवस्थित बावडि़यों, तालाबों की दशा अधिकतर शोचनीय है, क्योंकि कहीं पर पुराना इतिहास समेटे कुओं और बावडि़यों पर लगे पुराने पत्थरों के गिरने से ही कुएं समतल होते जा रहे हैं और कहीं-कहीं तो कागज, प्लास्टिक और चिप्स तथा कुरकरों के लिफाफे अनमने से पड़े सरकते हुए उन्हें प्रभावित करते आ रहे हैं। अतः उचित देखरेख व कूड़े के मिश्रित प्रभाव का असर होने की वजह से उनका अस्तित्व खतरे में आ गया है।

वर्तमान समय में पेयजल आपूर्ति का अनूठा विकल्प हैंडपंपों के रूप में भी हमारे सामने प्रस्तुत हो चुका है, जो कि पृथ्वी के आंतरिक जल स्तर को दोहन करते हुए जल विस्तार की परिधि व गहराई को सीमित करता हुआ पाताल लोक की तरफ ले जाने का कार्य कर रहा है। मैं इस बात से इत्तफाक रखता हूं कि हम दोहन तो कर रहे हैं, परंतु अत्यधिक मात्रा में न करके सीमित स्तर पर करें तो उचित है। जरूरत से ज्यादा निर्भरता कहीं घातक परिणाम परिलक्षित न करे, इसका एहसास हमें अवश्य होना चाहिए। प्राकृतिक अवस्था में उपलब्ध पानी जो हमारी सतह के ऊपर नदियों, झरनों के रूप में बहता है, उनसे जरूरत का सांमजस्य बिठाने के उपरांत भीतरी जल स्रोत के उपयोग का समाधान श्रेष्ठ है। इसमें संदेह नहीं है कि हम उन्नति का दामन थामे पृथ्वी की गहराइयों को खंगालते जा रहे हैं और भूगर्भ से प्राप्त मीठे जल से स्वयं को तृप्त कर रहे हैं। दूसरी तरफ पृथ्वी की सतह पर उमड़ती जल धाराओं के रूप में नदियों व झीलों से खिलवाड़ व उनको प्रदूषित करने का क्रम न्यायसंगत नहीं है। आज हम नदियों- नालों के रूप में बह रही जल धाराओं को प्रदूषित करते जा रहे हैं, जिससे जलीय जीवों का जीवन भी संकटमय है। आज कई स्थलों पर जलीय जीवों के एक साथ मरने के समाचार हमारे कान खड़े कर देते हैं। पानी को जहरनुमा बनाने में मानव ही जिम्मेदार है, जो फैक्टरियों के रसायनों के प्रवाह जल धाराओं की तरफ मोड़ देते हैं।

जिस तरह हम अपने घर के वातावरण व गांव के सौंदर्य को निखारने के लिए उत्सुक हैं। हमें उसी निष्ठा और भावना से नदियों व अन्य जल स्रोतों की निर्मलता हेतु सोचना जरूरी है। हमारे जीवन को संपूर्णता और आनंद का संचार करने वाली जल धाराओं की मृदुलता व पवित्रता को भंग करने वाली अमानवीय सोच पर अंकुश लगाने की अथाह आवश्यकता है। वर्तमान जल व्यवस्था के प्रावधान स्वरूप नलों का फैला जाल जल वितरण का अहम स्रोत है। इस स्रोत का हमें जरूरत के अनुसार प्रयोग करते हुए अतिरिक्त जल को यूं नहीं बहाना चाहिए। आज बूंद-बूंद को सहेजने की आवश्यकता है। पेयजल की अनदेखी व नलों के अतिरिक्त जल को घर में व्यर्थ न बहाने की सोच पर आज पूर्णतया अंकुश लगाने की जरूरत है। जलीय स्रोत सिमट कर न रह जाएं और हमारी भावी पीढ़ी जल की विकट समस्या से जूझते हुए हमें कोसे न, इस हेतु जल स्रोतों व नदियों के संरक्षण हेतु एक अतिरिक्त कदम आगे बढ़ाना नितांत आवश्यक है। किसी दार्शनिक में कहा भी है कि अगला विश्व युद्ध पानी के लिए ही लड़ा जाएगा। और अगर हालात ऐस ही रहे, तो दार्शनिक का दावा सही हो सकता है।

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